प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लेकर बीबीसी ने जो ये डॉक्यूमेंट्री बनाई है और जो तथ्य सामने आए हैं, उससे ये साफ पता चलता है कि फिक्शन को जोड़कर एक कहानी गढ़ने का प्रयास किया गया है. क्योंकि 2002 गुजरात दंगे को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने भी बता दिया है कि एडमिनिस्ट्रेशन का तो कोई हाथ नहीं था. ऐसे में उस वक्त की सरकार पर आरोप लगाना सही नहीं है. वहां के मुख्यमंत्री उस वक्त नरेन्द्र मोदी थे, तो उन पर आरोप लगाना सही नहीं है. इसकी व्यापक जांच हुई थी.


आपको याद होगा कि स्पेशल इन्वेस्टिगेशन टीम ने इसकी जांच की और किसी तरह का कोई रोल नहीं पाया गया था. इसके अलावा गुजरात दंगों के लिए जो लोग दोषी थे उन्हें सजा भी हो चुकी है. बहुत से लोग अभी भी जेल में हैं. इतनी व्यापक जांच के बाद आप उस मुद्दे को उठाते हैं, जिसे भारत में बंद किया जा चुका है, ये निश्चित तौर आपत्तिजनक बात है.



जब कोर्ट ने दी क्लिन चिट तो फिर क्यों सवाल?


हम लोग अगर चाहें तो ब्रिटेन के बहुत से ऐसे मुद्दे हैं, जिन्हें उठाया जा सकता है. कभी भी 2 आदमी को खड़ा कर उनसे बुलवा दीजिए, लेकिन उससे कोई फर्क नहीं पड़ता है. भारत का सुप्रीम कोर्ट बहुत क्रेडिबल इंस्टीट्यूशन है. डेमोक्रेसी का बहुत स्ट्रॉन्ग पिल्लर है. ऐसे में जब उसने सारे तथ्यों को देखकर कह दिया तो फिर मामला शांत हो चुका है.


फिर ऐसे कौन लोग हैं जो भारत में अराजकता फैलाने का काम कर रहे हैं, उन मुद्दों को उठाकर, जिनमें कोई तथ्य नहीं है. बीबीसी के बारे में आपको पता है कि वो एक कोलोनियल सेटअप का इंस्टीट्यूशन रहा है. क्रेडिबिलिटी गेन किया है लेकिन इसने भारत को हमेशा आजादी के बाद से नीचा दिखाने का प्रयास किया है.


ये अंतरराष्ट्रीय साजिश है


भारत का मतलब भारत के प्रधानमंत्री हैं. ऐसे में तथ्यों के आधार पर नहीं बल्कि मनगढ़ंत चीजों के आधार पर अगर हमारे समाज में वैमनस्यता फैलाने की कोशिश करेंगे तो ये काफी आपत्तिजनक है. यह एक अंतरराष्ट्रीय साजिश है. अगर व्यापक स्तर पर आप देखें तो ब्रिटेन की जो इंटरनल डायनामिक्स है, उसको प्रभावित करने का प्रयास है.


आपको पता है कि ब्रिटेन के पीएम ऋषि सुनक भारतीय मूल के हैं. वहां पर ब्रिटिश सोसायटी काफी डिवाइडेड है. रेस, एशियन सोसायटी... एशियन का पाकिज बोला जाता है. वैसे भी भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए अपनी मांग कर चुका है. शायद मिल भी जाए. ब्रिटेन खुद इसका बहुत बड़ा पक्षधर रहा है.


एक बात और बताऊं जो बहुत कम लोगों को पता है. ऋषि सुनक कंजर्वेटिव पार्टी से हैं. किंग डेविस, जो बीबीसी के डायरेक्टर हैं, वे खुद कंजर्वेटिव पार्टी में रह चुके हैं. एक समय था जब वे कंजर्वेटिव पार्टी के काउंसलर थे. इसलिए ऐसा भी नहीं कि वे इंट्रा पार्टी को वहां पर एड्रेस कर रहे हैं.


बहुत बार ऐसा भी हुआ कि बीबीसी ने अपनी सत्ता के ओपिनियन के खिलाफ भी काम किया है. तो वे बताना चाह रहे हैं कि वे अराजक तत्व हैं, इसलिए अगर ऋषि सुनक उनके साथ जाएंगे तो वे सही काम नहीं करेंगे. ये पीएम मोदी और ऋषि सुनक को अलग करने का प्रयास है, क्योंकि वे भारत को बहुत मजबूत से उड़ता हुआ नहीं देख सकते हैं.


बीबीसी की निष्पक्षता पर उठे सवाल


बीबीसी की निष्पक्षता पर बहुत बार सवाल उठे हैं. जब ब्रेग्जिट का इश्यू हुआ तो लोगों ने बोला कि बीबीसी पॉलिटिकल क्यों है. बीबीसी ने एक पक्ष को प्रमोट करने का प्रयास किया था. तो हर समय भारत को नीचा दिखाना सही नहीं है, क्योंकि भारत और इकॉनोमी के मामले में ब्रिटेन को पीछे छोड़कर चुका है. 


वैसे ही ब्रिटिश लोग भारत को उस दृष्टि से देखते हैं, कि वहां के लोगों ने भारत पर राज किया था. ये खुद डिवाइडेड हैं और दुनिया को दिखाना चाहते हैं कि भारत डिवाइडेड है. निश्चित तौर पर ये लगता है कि ये टूल किट का हिस्सा है, क्योंकि पहले वे बोलते हैं और उसके बाद कांग्रेस बोलती है. कम से कम कांग्रेस और विपक्ष को ऐसा नहीं बोलना चाहिए था क्योंकि उन्हें सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर विश्वास करना चाहिए था. तो जैसे-जैसे चुनाव आएगा इस तरह की वैमनस्यता से भरी हुई चीजें आप और देखेंगे. पीएम मोदी जी ने अपने एक भाषण में कहा ही था कि ये लोग शांत नहीं हुए, ये लोग और भी कोशिश करेंगे.


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार हैं. ये आलेख बीजेपी के सीनियर नेता सुदेश वर्मा से बातचीत के आधार पर लिखा गया है]