आपने तवांग सेक्टर में भारतीय सैनिकों के बिना हथियारों के ही चीनी सैनिकों को खदेड़ने के वीडियो और तस्वीरें देखी होंगी. लेकिन अगर 60 साल पहले तवांग से कुछ किमी के फासले पर नूरानांग पोस्ट पर हुई लड़ाई अगर कैमरे में कैद होती तो शायद चीन की कई पीढियां सरहद को लांघने की जुर्रत भी न करतीं.


क्योंकि 17 नवंबर 1962 को हुई इस लड़ाई में भारतीय सैनिकों ने वीरता की ऐसी दास्तान लिख दी जिसमें कम संख्या और सीमित साधनों के साथ सैकड़ों चीनी सैनिकों को मौत के घाट उतार दिया था.


इस वीर गाथा के नायक थे राइफलमैन जसवंत सिंह रावत और उनके साथी. उनकी याद में ही नूरानांग पोस्ट का नाम अब जसवंतगढ़ पोस्ट है. इस पोस्ट पर मृत्यु के बाद भी 56 साल तक सेवा में रहे ऑनरेरी कैप्टन जसवंत सिंह रावत का स्मारक अदम्य साहस और शौर्य की इस गाथा को सुनता है.


साथ ही इस जसवंत गढ़ स्मारक के करीब बाड़ से घिरा ज़मीन का छोटा टुकड़ा भी है जिसपर छोटी-छोटी घास लगी है. लेकिन यह कोई बगीचा नहीं बल्कि 300 चीनी सैनिकों की कब्रगाह है. क्योंकि भारतीय सैनिकों के हाथों मारे गए चीनी सैनिकों को यहीं दफनाया गया है. यहां उनका न कोई नाम है और ना ही कोई निशान. लिखा है तो बस इतना- चाइनीज़ ग्रेवयार्ड.


दरअसल, भारतीय सैनिकों की तवांग से वापसी की कड़ी में 4 गढ़वाल राइफल्स को इस इलाके की रक्षा का ज़िम्मा मिला था. यह सेला पर एक बड़ा डिफेंस बनाने की भी कवायद थी. 17 नवंबर 1962 को लगभग सुबह 5:00 बजे चीनी सैनिकों ने स्थानीय लोगों के भेष में नूरानांग पोस्ट पर कब्जा करने की कोशिश की थी जिसे नाकाम कर दिया गया.


इसके बाद चीन के सैनिकों ने तीन बार हमले का प्रयास किया लेकिन वह कामयाब नहीं हो सके. चीन के सैनिक जो बेहतर तैयारी और साधनों के साथ हमला करने पहुंचे थे उन्होंने चौथी बात धावा बोला. अबकी बार उन्होंने अपनी एक मीडियम मशीन गन को नूरानंग पोस्ट के बाई और 40 मीटर की दूरी पर तैनात कर दिया जो भारी फायरिंग कर रही थी. जाहिर तौर पर इसे रोकना बहुत जरूरी हो गया था.


ऐसे में ही राइफलमैन जसवंत सिंह रावत लांस नायक त्रिलोक सिंह और राइफलमैन गोपाल ने एक बेहद खतरनाक मिशन को अंजाम देने का फैसला किया. मिशन था पहाड़ी के ऊपर चढ़कर चीनी सैनिकों से उनकी मीडियम मशीन गन छीनना. 


भारतीय सैनिकों के इस दस्ते ने मोर्चाबंदी के बेहद करीब पहुंचकर हथगोले दाग दिए. हमले में एक सी चीनी सैनिक मारा गया और दूसरा घायल हो गया . लेकिन अब भी चीनी सैनिक मीडियम मशीन गन थामे हुए था . राइफलमैन जसवंत सिंह रावत ने मीडियम मशीन गन उस चीनी सैनिक से छीन ली और अपनी पोस्ट की ओर चल दिए. 


इस दौरान उन्हें कवर फायर दे रहे लांस नायक त्रिलोक सिंह नेगी को चीनी सैनिकों ने देख लिया और गोली मार दी. साथ ही उन्होंने जसवंत सिंह पर भी गोलीबारी तेज कर दी. इस हमले में राइफलमैन जसवंत सिंह गंभीर तौर पर घायल हो गए. लेकिन तब तक वह पोस्ट के काफी करीब पहुंच चुके थे. 


राइफलमैन गोपाल सिंह गुसाईं ने मीडियम मशीन गन आखिरकार पोस्ट तक पहुंचा दी. उसके बाद लड़ाई का रुख बदल गया क्योंकि मीडियम मशीन गन के साथ-साथ भारतीय सैनिकों की लाइट मशीन गन भी आग उगलने लगी. देखते ही देखते चीनी सैनिकों की लाशों के ढेर लग गए. आखिरकार चीनी सैनिकों का चौथा हमला भी नाकाम हुआ.


आज भी जसवंतगढ़ मेमोरियल में वो पेड़ मौजूद है जहां माना जाता है कि जसवंत सिंह ने अंतिम सांस ली थी. उनका यह पूरा मिशन यूँ तो केवल 15 मिनट का था. लेकिन इसने चीन को अपनी रणनीति बदलने पर मजबूर कर दिया. क्योंकि इस लड़ाई के महज़ तीन दिन बाद चीन ने एकतरफा युद्धविराम कर अपनी सेनाओं को लौटाने का ऐलान कर दिया था.


हालांकि भारत चीन सीमा पर न तो यह पहला वाकया था न ही अकेली घटना. बीते 60 सालों के दौरान क़ई बार चीन ने अपने नापाक मंसूबों में मुंह की खाई है.
सवाल तो इस बात के है कि क़ई बार नाकाम रहने के बाद भी करतूतों से बाज़ नहीं आता है.




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