शेख हसीना की चौथी बार जीत के बाद, बांग्लादेश के राजनीतिक परिदृश्य पर आशंकाओं के घेरे में हैं. 7 जनवरी को हुए चुनाव में अवामी लीग नेता के शासन की मनमानी का हवाला देते हुए विपक्ष ने चुनाव का बहिष्कार किया. विभिन्न रिपोर्टो के अनुसार 27.5 प्रतिशत (अन्य स्रोत में 40 प्रतिशत) तक कम मतदान का सुझाव दिया गया है, जो चुनावी प्रक्रिया की वैधता के लिए संभावित चुनौतियों का संकेत देता है.


तटस्थ चुनाव-समय प्रशासन की परंपरा को त्याग दिया गया, जिसने सैन्य तानाशाही से संक्रमण के बाद से चार चुनावों को सफलतापूर्वक आयोजित किया था. इससे विपक्ष के असंतोष गहराया. अपने भारत समर्थक रुख के बावजूद, शेख हसीना को कथित लोकतांत्रिक मानदंडों के उल्लंघन के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा है, जिसमें 8000 विपक्षी हस्तियों की गिरफ्तारी भी शामिल है. इन कारणों से संयुक्त विपक्ष ने चुनाव बहिष्कार का आह्वान किया. शेख हसीना ने विपक्ष को 'आतंकवादी' तक कह दिया.


भारी हंगामे और आशंकाओं के बीच चुनाव सम्पन्न


7 जनवरी के चुनाव में कई उम्मीदवारों, विशेषकर 62 सीटें जीतने वाले निर्दलीय उम्मीदवारों और जातिय पार्टी ने आरोप लगाया कि मतदान में हेरफेर किया गया और यहां तक कि बच्चों ने भी मतदान किया. अवामी लीग 2009 से सत्ता में है, और 2014 और 2018 के पिछले दो आम चुनाव भी विपक्ष के बहिष्कार और बड़े पैमाने पर धांधली के आरोपों से प्रभावित हुए थे. बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के पिछले कुछ वर्षों में चुनाव-समय प्रशासन को बहाल करने के प्रयासों ने नवंबर में राष्ट्रव्यापी नाकाबंदी की श्रृंखला का मुकाबला करने के लिए पुलिस की बर्बरता और कई अदालती मामलों को आमंत्रित किया है. भारी हंगामे और आशंकाओं के बीच चुनाव हुआ. अमेरिका ने इस प्रक्रिया पर यह कहते हुए आपत्ति जताई कि यह उचित नहीं है, हालांकि भारत को अमेरिकी हस्तक्षेप पसंद नहीं है. ऐसी आशंकाएं हैं कि अमेरिका प्रतिबंध लगाएगा जिससे यूरोप और अमेरिका के प्रमुख स्थलों पर उसका निर्यात प्रभावित हो सकता है.



दुर्गापूजा और अन्य उत्सवों में हिंदू पूजा स्थलों पर हमले 


चुनाव के बाद, बांग्लादेशी विपक्ष के बहिष्कार और 77.5 प्रतिशत मतदाताओं की अनुपस्थिति की ओर इशारा करते हुए, हसीना शासन में बदलाव की जोरदार मांग कर रहे हैं. बढ़ती कीमतों और बैंकिंग संकटों से जुड़ी आर्थिक चिंताएं, गैर-जिम्मेदारी के आरोपों के साथ मिलकर बढ़ते असंतोष में योगदान करती हैं. यह राजनीतिक परिदृश्य 1971 की उथल-पुथल वाली घटनाओं से समानता रखता है जब बांग्लादेश भारत के समर्थन से एक नए राष्ट्र के रूप में उभरा. बांग्लादेश ने पाकिस्तान की छाया से छुटकारा पाने के लिए कितना भी संघर्ष किया हो, आंतरिक कलह, तख्तापलट और सांप्रदायिक तनाव जारी रहे. चार वर्षों के भीतर शेख़ मुजीबुर रहमान की हत्या कर दी गई और देश कई तख्तापलट और सैन्य तानाशाही में चला गया, बांग्लादेश विरोधी रजाकारों और अन्य राजनीतिक ताकतों का पुनरुत्थान हुआ. अभी भी उग्र सांप्रदायिक हिंदू विरोधी ताकतें हावी हैं, जो विपक्ष के बड़े हिस्से को घेरती हैं. दुर्गापूजा और अन्य उत्सवों के दौरान हिंदू पूजा स्थलों पर हमले आम हैं. यहां तक कि हसीना शासन भी इसे रोक नहीं सका.


आर्थिक गिरावट का श्रेय हसीना सरकार को


बांग्लादेश अपनी अर्थव्यवस्था के साथ अच्छा प्रदर्शन कर रहा था. अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष तथा अन्य लोगों ने इसकी प्रशंसा की है. अब विश्व बैंक का कहना है कि बुनियादी ढांचा परियोजनाएं दुनिया में सबसे महंगी हैं. भारत से कुछ बिजली खरीद कार्यक्रम भी जांच के दायरे में हैं. ढाका अखबार डेली स्टार का कहना है कि 2023 में, बांग्लादेश ने हाल के वर्षों में सबसे खराब व्यापक आर्थिक स्थिति का सामना किया. नवंबर 2022 से आधिकारिक विनिमय दर में 30 प्रतिशत की गिरावट आई, विदेशी मुद्रा भंडार 20 अरब डॉलर तक गिरने से आयात पर प्रतिबंध लगा दिया गया. रेल, सड़क नेटवर्क और अन्य विकासों ने इसे उपमहाद्वीप में सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्था में शामिल कर दिया है. इसका निर्यात बढ़ा है और नौकरी के अवसर भी बढ़े हैं. पिछले एक साल के दौरान अर्थव्यवस्था का समग्र प्रदर्शन धीमा हो गया. उच्च मुद्रास्फीति और नौकरियाँ एक बार फिर समस्याएँ बन गईं. विशेषज्ञ वर्तमान आर्थिक गिरावट का श्रेय हसीना शासन में जमे हुए राजनीतिक कुलीन वर्ग को देते हैं.


अवामी लीग की जीत भारत के लिए अनुकूल


भारत को फायदा हुआ क्योंकि हसीना शासन ने रेलवे, सड़क और जलमार्ग के माध्यम से माल परिवहन के लिए अपने क्षेत्र तक पहुंच की अनुमति दी. हाल ही में वाराणसी से गुवाहाटी तक की यात्रा बड़ी सफल रही. बांग्लादेश में भारत विरोधी ताकतों को ऐसी उदारता से नफरत है. जहां अवामी लीग की जीत भारत के लिए अनुकूल है, वहीं हसीना शासन की अहंकारी कार्यप्रणाली मुसीबतें ला सकती है. हसीना विपक्ष से ज्यादा परेशान नहीं हैं, लेकिन जनता के विशाल समूह में असंतोष है. यह अगर बढ़ा तो उथल-पुथल हो सकती है, जो संभावित रूप से उस सामान्यीकरण प्रक्रिया को चुनौती दे सकती है, जिसमें भारत ने सक्रिय रूप से योगदान दिया है. यह भारत के लिए भी चुनौती होगी .



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