प्रयागराज में शनिवार (15 अप्रैल) की रात पुलिस कस्टडी में अतीक अहमद और उसके भाई अशरफ पर तीन युवकों ने पुलिस और मीडियाकर्मियों की मौजूदगी में ताबड़तोड़ गोलियां मारकर दोनों को मौत के घाट उतार दिया. चूंकि दोनों हाई प्रोफाइल अपराधी थे और पुलिस की रिक्वेस्ट पर कोर्ट ने उन्हें रिमांड पर सौंपा था. ऐसे में पुलिस की आंखों के सामने कुछ सेकेंड्स में इस तरह की भयावह घटना हो गई. ऐसे में सवाल है कि पुलिस से कहां चूक हो गई? पुलिस और प्रशासन इसके लिए कितना जवाबदेह माना जाएगा?


मुझे लगता है ये पुलिस के लिए ही नहीं पूरे समाज के लिए भी बहुत बड़ा चैलेंज है. पुलिस उसका एक हिस्सा है. जब इस तरह की घटना होती है तो पुलिस की जवाबदेही बहुत बढ़ जाती है. चूंकि अतीक अहमद और उसका भाई ज्यूडिशियल रिमांड में था और पुलिस की कस्टडी में था. ऐसी स्थिति में जवाबदेही बहुत बढ़ जाती है. चूंकि  पुलिस की ही रिक्वेस्ट पर कस्टडी में लेकर उसके ऊपर लगे आरोपों और गुनाहों की जांच-पड़ताल करने की इजाजत दी गई थी, ऐसे में पुलिस की जवाबदेही तो अल्टिमेट है. प्रशासन के ऊपर काम का दबाव होगा. राजनीतिक दबाव फैक्ट-टू-फैक्ट पर डिपेंड करेगा. पुलिस के पास अपना खुफिया विभाग जरूर होता है. कई बार वे सूचना सटीक दे भी देता है. लेकिन इस मामले में मुझे लगता है कि कहीं न कहीं चूक हुई है. अगर हर बार सही सूचना मिल जाए तब तो देश और समाज में कहीं कोई घटना हीं नहीं होगी.



मुझे जो बात समझ में आती है वो ये कि अतीक अहमद को लेकर मीटिंग हुई होगी. उसे लेकर ब्रिफिंग हुई होगी कि क्या करना है. जो भी सीनियर अधिकारी होंगे एसपी और डीआईजी रैंक के वो एंटीसिपेट अगर कर पाए होंगे तो ठीक है और अगर नहीं कर पाएंगे तो इससे स्पष्ट है कि कहीं न कहीं कुछ कमी तो रह गई.


फिर इस तरह की घटना में जवाबदेही तो बहुत बड़ी हो जाती है और जब जिम्मेवारी बड़ी होती है तो प्लानिंग उससे भी बड़ी होनी चाहिए. अगर इंसिडेंट इट सेल्फ को आप फेल्योर मानते हैं तो यह बिल्कुल फेल्योर माना जाएगा. किसी अपराधी को मेडिकल चेकअप के लिए ले जाने के लिए अलग से कोई प्रोटोकॉल नहीं होता है. चूंकि एक अपराधी पुलिस रिमांड पर कस्टडी में आरोपित है और वो भी आपके रिक्वेस्ट पर कस्टडी में आया है. ऐसे में आप उसे चाहे जहां ले जाइए. मान लिया जाए कि वो रास्ते में ही उतर कर रोड के किनारे खड़ा हो जाए और वहां कोई घटना हो जाए या फिर उस अस्पताल परिसर में घटना हो गई. सभी तरह के मामलों में पुलिस की जवाबदेही समान होती है.


इस घटना से उत्तर प्रदेश में संवेदनशीलता तो बहुत ज्यादा बढ़ गई है. ये बात आम आदमी भी समझ सकता है. मैं सभी से यही अपील करना चाहूंगा कि इस स्थिति में शांति से कोई काम करना, सोचना ये अनिवार्य हो जाता है. अगर कोई भी पक्ष उत्तेजित हो जाएगा तो सभी के लिए परेशानी और बढ़ जाएगी. ये सिर्फ उत्तर प्रदेश की ही बात नहीं है. अगर वहां कुछ भी गड़बड़ी होगी, उससे पड़ोसी राज्यों में चुनौतियां बढ़ सकती हैं. मेरा यही मानना है कि समय और परिस्थितियों को देखते हुए लोगों को अपने विवेक से काम लेना होगा.


(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)