AIMIM के प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने कहा है कि भारत के पहले आतंकवादी का नाम नाथूराम गोडसे है जिसने गांधीजी की हत्या की थी और हैदराबाद में लोग उसकी फोटो लेकर घूम रहे हैं. पुलिस खामोश क्यों बैठी है? अगर किसी के पास ओसामा बिन लादेन की तस्वीर होती तो पुलिस घरों के दरवाजे तोड़ देती. सवाल ये है कि महात्मा गांधी के हत्यारे की तुलना ओसामा बिन लादेन से उन्होंने क्यों की? बीजेपी से निष्कासित विधायक हैं टी राजा. उन्होंने रामनवमी का जुलूस निकाला था और उसमें कई लोगों ने नाथूराम गोडसे की तस्वीर को अपने हाथों में उठा रखी थी. गोडसे की तस्वीर को लेकर नाच-गाना कर रहे थे. ओवैसी का यह बयान उसी संदर्भ में है. जहां तक ओसामा बिन लादेन की बात है तो ओवैसी ने ये कहा कि अगर लादेन की तस्वीर लेकर मुस्लिम समुदाय के लोग बाहर निकलते तो पुलिस अब तक उनके घरों पर जाकर उन्हें गिरफ्तार कर ली होती. लेकिन रामनवमी जुलूस में गोडसे की तस्वीर को लेकर चलने वाले लोगों के खिलाफ पुलिस खामोश क्यों है?


असदुद्दीन ओवैसी ने अपने बयान से पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठाया है. मेरा अपना मानना है कि ये सवाल काफी हद तक वाजिब है. उसके पीछे की वजह है कि नाथूराम गोडसे तो एक हत्यारा था और इस बात को सिर्फ कांग्रेस पार्टी ही नहीं कहती है बल्कि भारत का एक विशाल जनमानस भी इस बात को मानता है. गोडसे को हत्यारा तो आरएसएस के लोग भी मानते हैं. जिस दिन 1949 में उसे फांसी दी गई थी, कई दक्षिणपंथी संगठन हैं, जो उस दिन को शौर्य दिवस के रूप में मनाते हैं. इसे लेकर आरएसएस के एमजी वैद्य ने कहा था कि जो लोग गोडसे का महिमामंडन हैं और शौर्य दिवस मनाते हैं ये बहुत ही निंदनीय कार्य है क्योंकि गोडसे ने गांधीजी की हत्या की थी और वो एक हत्यारा है. उन्होंने यह भी कहा था कि जो विचारों की लड़ाई है उसे हम विचारों से ही काट सकते हैं, उसमें हिंसा की कोई जगह नहीं होनी चाहिए.


गोडसे ने हिंसा का सहारा लेते हुए महात्मा गांधी की हत्या की थी. कहने का तात्पर्य यह है कि ओवैसी इसलिए गोडसे की तुलना लादेन से कर रहे हैं क्योंकि दोनों ही हत्यारे थे. लेकिन गोडसे को महिमामंडित किया जा रहा है तो कोई कार्रवाई नहीं हो रही है.


गोडसे ने कोर्ट में जो अपना बयान दिया था तो कहा कि उसने गांधी की हत्या इसलिए की क्योंकि उनका झुकाव मुसलमानों की तरफ था और वे देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार थे. 1904 के करीब मराठा के एक लेखक ने अपनी पुस्तक में लिखा था कि अंग्रेजों ने अपने आप को बचाने के लिए मुसलमानों के खिलाफ एक माहौल तैयार कर दिया है हिंदुओं के दिलों में. 1857 के बाद तो पूरी तरह से अंग्रेजों ने अपना शासन चलाया और इससे पहले और 1757 के बाद नवाब सिराजुद्दौला की जो हार हुई थी तो ये जो 100 साल का जो दौर था और फिर 1947 तक अंग्रेजों ने हिंदू और मुसलमान के बीच जो खाई पैदा किया उस लिगेसी को आज भी आगे बढ़ाया जा रहा है. नाथूराम गोडसे भी उसी का प्रतिनिधित्व करते हैं. मेरठ के पास तो नाथूराम गोडसे का मंदिर बना हुआ है. वहां पर एक दफा तो उस सीन को भी दोहराया गया. महात्मा गांधी की तस्वीर पर गोडसे को गोली मारते हुए दिखाया गया.


सवाल ये नहीं है कि सरकार कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है. राहुल गांधी का मानना है कि हिंदूवाद और हिंदुत्व दोनों अलग-अलग हैं और हिंदूवादी का एक समूह नाथूराम गोडसे को लंबे समय से महिमामंडित कर रहा है. ये जो विचार देश में फैल रहा है सही नहीं है. जुलूस में जिन लोगों ने तस्वीरें उठाई उसमें अधिकतर नौजवान शामिल हैं तो वो इतिहास कितना पढ़ते हैं. रोजगार भी मामला है. बेरोजगारी इस तरह के भीड़तंत्र को बढ़ावा देता है.


2016 में रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने भी कहा था कि नाथूराम गोडसे को लेकर जो शौर्य दिवस मनाया जाता है और जो लोग तस्वीरें लेकर घूमते हैं तो ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई होनी चाहिए. जब देश का एक बड़ा नेता और भाजपा का एक वरिष्ठ पदाधिकारी इस तरह की बात करता है तो उसके बावजूद भी अगर ऐसे लोगों के खिलाफ कार्रवाई नहीं होती है, पुलिस-प्रशासन खामोश रहता है, सत्ताधारी पार्टी या सरकार चुप है तो जाहिर सी बात है कि कहीं न कहीं राजनीतिक रूप से समर्थन दे रहे हैं. 


चूंकि उन्हें वोटों के ध्रुवीकरण से फायदा होगा. तेलंगाना में टी राजा सिंह को बीजेपी ने निष्कासित किया और फिर भी उन पर कोई बंदिश नहीं है. इसका साफ मतलब है कि कहीं न कहीं उन्हें समर्थन है. पिछले कुछ वर्षों में यह देखा गया है कि जो त्यौहार है उसमें अपने विचारों को प्रदर्शित करने के लिए उसका इस्तेमाल किया जाने लगा है. रामनवमी का जुलूस तो देश में कई सालों से निकल रहा है और शांतिपूर्वक निकलता था. लेकिन जब हम किसी एक समुदाय के विरुद्ध उतरेंगे, उसके खिलाफ बर्ताव करेंगे या नारे लगाएंगे और गांधी जी की जिसने हत्या की उसकी तस्वीरें लेकर हम घूमेंगे. इससे तो देश का जो सौहार्द वो और भी खराब ही होगा.


बीजेपी से निष्कासित विधायक टी राजा जिस भीड़तंत्र का नेतृत्व करते हैं वो लोग वोट किसे करेंगे. जिन पार्टियों को इससे फायदा होगा वो नहीं चाहती हैं कि इनके खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई की जाए या इनको रोक दिया जाए. टी राजा ने तो इसका बचाव भी किया. उन्होंने कहा कि जुलूस में लोग शिवाजी की भी तस्वीरें लेकर चल रहे थे हो सकता है कि कुछ लोग गोडसे की तस्वीर लेकर चल रहे हों. ऐसे में जो वहां पर सरकार है या पुलिस प्रशासन है उसको तो कार्रवाई करनी चाहिए. चूंकि ये लोग एक ऐसे व्यक्ति के विचारधारा को प्रदर्शित कर रहे हैं जिसने कट्टरतावाद की बुनियाद का बीज बोया है.


ऐसे में पुलिस का यह कर्तव्य बनता है कि वह पूछताछ करे और जो इसके नेतृत्वकर्ता हैं, मुखिया हैं या ऑर्गेनाइजर हैं, कम से कम उन पर तो केस दर्ज किया जाना चाहिए. मेरा कहने का मतलब है कि रिंग किसके हाथ में है. उसकी यह जिम्मेदारी बनती है कि इस तरह की घटना नहीं हो. ऐसे आयोजनों का जो लीडर होता है अगर उस पर कार्रवाई होती है तो ही इस तरह की घटना पर और समाज में बढ़ती हुई दुर्भावना को रोका जा सकता है. क्योंकि भीड़ के खिलाफ तो कार्रवाई नहीं की जा सकती है. मुझे लगता है कि ओवैसी ने भीड़ की तरफ इशारा करके यह बात इसलिए भी कही है कि जब लीडर पर कार्रवाई की बात आएगी तो लीडर तो वो भी हैं. मेरा मानना है कि ऐसे नेताओं के खिलाफ सरकार को सख्त कार्रवाई करनी चाहिए. तभी इस तरह से लोग सड़क पर नहीं उतरेंगे.


मेरा ये मानना है कि देश एक ऐसे दोराहे पर खड़ा है जहां गांधी जी की तुलना उनके हत्यारे के साथ की जा रही है. ये एक बहुत ही गंभीर और ट्रैजिक परिस्थिति है और इसे रोकने की जरूरत है. ये देश के लिए भी शर्मिंदगी की बात है क्योंकि इससे हमारी विदेशों में क्या पहचान बनेगी, यही न कि जो देश बुद्ध का है, गांधी का है, गुरु नानक का है वहां आज एक वर्ग गोडसे का गुणगान कर रहा है. विदेशों में हमारी क्या छवि बन रही होगी ये भी एक सोचनीय बात है. बुद्धिजीवी वर्ग के लिए ये सोचनीय बात है. इस तरह की विचारधारा को दबाने के लिए जितनी जल्दी कार्रवाई की जाए, ये भारत के लोकतंत्र और सामाजिक सौहार्द के लिए बेहतर होगा.


(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)