दिल्ली के मुख्यमंत्री को कल यानी बुधवार 27 मार्च को भी राहत नहीं मिली. दिल्ली हाईकोर्ट में दो बार सुनवाई हुई और शाम को कोर्ट ने अपना फैसला सुना दिया. केजरीवाल को फिलहाल ईडी की हिरासत में ही रहना होगा. इस बीच जेल से ही जारी हुए उनके दो ऑर्डर की भी चर्चा है, जिसको लेकर ईडी ने सख्त आपत्ति जताई है और केजरीवाल पर मुकदमा भी दर्ज हुआ है. आम आदमी पार्टी इस बात पर अड़ी हुई है कि जेल से ही केजरीवाल सरकार चलाएंगे. दिल्ली के एलजी ने कल ही यानी बुधवार 27 मार्च को इसे लेकर कठोर टिप्पणी की है और कोर्ट में एक जनहित याचिका भी इसके लिए दायर की गयी है कि अरविंद केजरीवाल को दिल्ली के मुख्यमंत्री पद से हटाया जाए. 


दिल्ली हाईकोर्ट का स्पष्ट रुख 


कल एक नयी बात कोर्ट में देखने को मिली. अमूमन न्यायालय में किसी भी वादी या प्रतिवादी की तरफ से एक अधिवक्ता ही पेश होता है, लेकिन इस मामले में केजरीवाल की तरफ से तीन सीनियर एडवोकेट मौजूद थे. अंतरिम राहत और जमानत के लिए उन्होंने अपनी पेटिशन की बातें ही दुहराई. जब बहस हो रही थी, तो ईडी के वकील ए राजू इस बात पर नाराज भी हुए कि अगर केजरीवाल तीन वकील कर सकते हैं, तो ईडी भी 10 वकील कर सकते हैं, ये केवल कोर्ट का वक्त जाया करने जैसा है. कोर्ट ने अंतरिम राहत देने से मना कर दिया और उन्होंने कहा कि इस पर राहत देना तो ऐसा होगा कि वो 'मेन पेटिशन' पर ही फैसला दे रहे हैं, तो वह बिना ईडी के जवाब दिए यह नहीं कर सकती. ईडी का अनुरोध था कि वह पेटिशन उनको चूंकि शनिवार ( 23 मार्च) को मिली थी, इसलिए उन्हें पढ़ने और जवाब देने का समय नहीं मिला. इसीलिए, कोर्ट ने अंतरिम राहत नहीं दी और अगली तारीख 2 अप्रैल को दी है. तब तक ईडी को जवाब देने का निर्देश दिया है. 



वकीलों की हड़ताल


देश का इतिहास रहा है कि जब भी संवैधानिक संकट आया है, तो देश के वकीलों ने प्रतिरोध किया है. हालांकि, सुप्रीम कोर्ट ने साफ-साफ निर्देश कई जगहों पर दिया है कि आप हड़ताल (स्ट्राइक) कब कर सकते हैं, कैसे कर सकते हैं और कहां कर सकते हैं. स्ट्राइक या हड़ताल का अर्थ व्यवधान होता है, आप काम को रोक रहे हैं. ऐसी परिस्थित क्या आ गयी थी कि आज वकीलों को काम रोकना पड़ेगा? ऐसा लगता नहीं है, क्योंकि हाईकोर्ट ने तो संज्ञान लिया है, सुनवाई चल रही है. ऐसे में यह काम गलत है. बार काउंसिल ऑफ इंडिया के चेयरमैन मदन मिश्रका जी ने बाकायदा पत्र लिखकर यह कहा है कि उनके संज्ञान में यह बात आयी है और यह गलत है, गैर-कानूनी है. दिल्ली हाईकोर्ट में जो न्यायाधीश इस मामले की सुनवाई कर रही थीं, उनके सामने जब इसकी चर्चा हुई तो उन्होंने भी साफ कहा कि अगर किसी तरह के कानूनी हड़ताल की बाद होती है, तो उसके कानूनी परिणाम भी आम आदमी पार्टी की लीगल सेल को भुगतना होगा. 


जेल के अंदर से ऑर्डर गैर-कानूनी


अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी जो कर रही है, उसे इसी तरह देख सकते हैं कि घोटाले करनेवाला आदमी घोटालेबाज ही होता है. ये जेल के अंदर से भी स्कैम कर रहे हैं. जैसा ईडी ने कहा है, ये जेल के अंदर से कुछ भेज नहीं सकते हैं. इनके पास कलम और कागज की पहुंच नहीं है. इसके अलावा यह भी देखना चाहिए कि उन्होंने आदेश किस संदर्भ में भेजे हैं? पानी और सीवर के लिए. यानी, जब आप साढ़े 9 साल तक सत्ता में रहे, तब आपको इसकी याद नहीं आयी और आज आपको दिल्ली की फिक्र होने लगी है? वह दरअसल अपनी ही गलतियों को छुपाने के लिए और भी गलतियां करते जा रहे हैं.


इसकी वजह एक ही है और वह है- सुर्खियों में बने रहना. इसलिए, वह बड़े पत्रकारों से अपने बारे में लिखवा रहे हैं, उनकी पत्नी सुनीता केजरीवाल अपने रिकॉर्डेड संदेश प्रसारित कर रही हैं. वह टीवी पर आ रही है, मनीष सिसोदिया के पुराने रिकॉर्डेड वीडियोज अब शेयर किए जा रहे हैं. इसका सीधा सा अर्थ ये है कि सब कुछ प्रोपैगैंडा के लिए किया जा रहा है. सीबीआई ने जब से आबकारी नीति में मामला दर्ज किया था, तब से इन लोगों को पता था कि आज या कल ये हिरासत में लिए ही जाएंगे. इन्होंने उसकी व्यवस्था तैयार कर रखी थी. इस तरह के प्रोपैगैंडा पर सख्त कार्रवाई होनी चाहिए और केजरीवाल को सीएम बने रहने का कोई मौलिक, नैतिक और वैधानिक अधिकार नहीं है. आज (गुरुवार 28 मार्च) ही दरअसल उस जनहित याचिका पर भी सुनवाई है, जिसमें अरविंद केजरीवाल को बर्खास्त करने के लिए प्रार्थना की गयी है, तो आज उसका भी फैसला हम देखेंगे. दिल्ली के एलजी ने भी बुधवार को कहा था कि जेल से केजरीवाल को ऑपरेट करने की अनुमति नहीं दी जा सकती है. 


आतिशी की प्रेस कांफ्रेस में गलतबयानी


जब भी कोई आदेश किसी न्यायालय से दिया जाता है, तो उसका कानून है कि उसमें प्रार्थी यानी वादी (पेटिशनर) की बातों के साथ ही याचिका में उल्लिखित बातें और प्रतिवादी (रेस्पांडेंट) की भी बातें लिखी जाती हैं. इस मामले में चूंकि प्रतिवादी ने अभी तक जवाब नहीं दिया है, जो इस मामले में ईडी हैं, तो उसकी बातें होने का तो सवाल ही नहीं है. बहुत सारी चीजे उसमें लिखी गयी हैं.


सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी ने जो कहा है, जो दलीलें दी हैं, उनको भी उसमें लिखा गया है. आतिशी मार्लेना ने जो प्रेस कांफ्रेंस की है, उसमें जो दलीलें उनके वकील की तरफ से दी गयी हैं, उसको भी उन्होंने जान-बूझकर, गलत संदर्भ में, कोर्ट का नाम लेते हुए कहा है. जैसे कि एक जगह कोर्ट के आदेश में यह लिखा गया है कि कोर्ट दलीलों को लेकर साकांक्ष है और इसमें कुछ राजनीतिक बातें भी हो सकती हैं, लेकिन यह बात तो याचिका में दर्ज है. इसे सीधे कोर्ट के हवाले से पेश करना तो गलत है. एक और जगह उनके सीनियर एडवोकेट अभिषेक मनु सिंघवी की बातों का बाकायदा उनके नाम के साथ उल्लेख है. उसमें लिखा है कि अभिषेक सिंघवी ने बहुतेरे गंभीर सवाल उठाए हैं, क्या इस गिरफ्तारी का क्या राजनीति से कोई संबंध है? आतिशी ने इसको भी मिस-कोट किया है. उन्होंने इसको इस तरह पेश किया है, जैसे ये बातें कोर्ट ने कही हैं, या अपने आदेश में बतायी हैं. यह न केवल बरगलाने वाली, झूठी और आधारहीन बात है, बल्कि यह गंभीर आपराधिक मानहानि है, न्यायालय की, इसका कोर्ट को संज्ञान लेना चाहिए और आतिशी पर कार्रवाई होनी चाहिए. ऐसा ही राहुल गांधी ने तब किया था, जब वह राफेल को लेकर विवाद कर रहे थे. उन्होंने तब सुप्रीम कोर्ट को गलत तौर पर उद्धृत किया था और बाद में उनको बाकायदा माफी मांगनी पड़ी थी. आतिशी को भी माफी मांगनी चाहिए, अन्यथा यह मामला कोर्ट में ले जाना चाहिए. यह एक मंत्री से अपेक्षित नहीं है. 


केजरीवाल का भविष्य 


अभी तक तो केजरीवाल को इस्तीफा दे देना चाहिए था. पहले के भी सारे उदाहरण हैं. चाहे वह तमिलनाडु में जयललिता का हो, झारखंड में हेमंत सोरेन हों, बिहार में लालू प्रसाद हों, जब भी जो भी जेल गए हैं, तो उन्होंने इस्तीफा दे दिया और किसी और को मुख्यमंत्री बना दिया. दिल्ली की 70 में 62 सीटें चूंकि आम आदमी पार्टी के पास है, तो केजरीवाल और उनके दल को नया मुख्यमंत्री चुनने में भी इतनी समस्या नहीं होती. हालांकि, वह अड़े हुए हैं कि जेल से ही सरकार चलाएंगे, लेकिन अच्छा होता कि केजरीवाल परंपरा का पालन करते और जबरन रस्साकशी नहीं करते. इस संदर्भ में एलजी का बयान महत्वपूर्ण है. एलजी ने कहा है कि जेल से वह सरकार को नहीं चलाने देंगे. हाईकोर्ट केजरीवाल को राहत नहीं दे रही है और केंद्र सरकार भी सख्त है. खासकर, केजरीवाल को यह बात इसलिए भी समझनी चाहिए क्योंकि यह जो सरकार वह चला रहे हैं, वह पूर्ण रूप से राज्य की सरकार भी नहीं है, यह केंद्रशासित प्रदेश है. यहां केंद्र की काफी दखल है और चूंकि सेवा दिल्ली के एलजी के अंदर ही आता है और मुख्यमंत्री जो काम कर रहे हैं, वह भी सेवा (सर्विसेज) के तहत ही आएगा, तो यह दुखद भले हो, लेकिन केजरीवाल की बर्खास्तगी ही अब आगे दिख रही है. 


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