पाकिस्तान के पूर्व प्रधानमंत्री इमरान खान को तोशखाना मामले में तीन साल की सजा हुई और जेल भेज दिया गया है. इसके साथ ही पाकिस्तानी प्रधानमंत्रियों की जेल जाने की सूची में एक और नाम जुड़ गया है. इमरान खान को तोशाखाना मामले में सेशन कोर्ट से 3 साल की सजा सुनाई गई है. इसके साथ ही उन्हें पाकिस्तानी संविधान के आर्टिकल 63(1)(h) के तहत 5 वर्षों के लिए राजनीति से अयोग्य भी घोषित कर दिया गया है. सजा की घोषणा के बाद उन्हें गिरफ्तार किया गया और इसके साथ ही पाकिस्तान की राजनीति में हलचल और तेज हो गयी है. इमरान ने जेल जाते समय अपने संदेश में अपने फॉलोअर्स को कहा है कि वे चुप नहीं बैठें. भारत पूरे घटनाक्रम पर निगाह रखे हुए है. 


यह तो होना ही था


इमरान खान की गिरफ्तारी और उससे जुड़ा घटनाक्रम कोई बेहद अनपेक्षित नहीं है. यह अपेक्षित ही है. उनको जो तीन साल की सजा और उसकी वजह से गिरफ्तार किया गया है, इसको थोड़ा पीछे जाकर समझना होगा. 2022 अप्रैल में जब नो-कॉन्फिडेन्स मोशन पाकिस्तान की संसद में पेश हुआ था, तो यह समझना चाहिए कि वह भी आर्मी की वजह से ही पेश हुआ था. वहां का तो पूरा सिस्टम ही आर्मी की वजह से चलता है. इमरान खान को भी उसी ने बनाया है और बिगाड़ा भी है. तो, उस अविश्वास-प्रस्ताव में भी तीन विकल्प दिए गए थे. पहला, तो यह था कि इमरान खान उसका सामना करे. दूसरा, ये कि वह तुरंत चुनाव करवाएं और तीसरा ये था कि वह पद छोड़ दें. इमरान ने तीसरा विकल्प चुना था.


कोई पीएम नहीं पूरा कर सका कार्यकाल


चुनाव की बात हुई तो सेना को यह आभास था कि जनता के बीच इमरान की लोकप्रियता है. वह इमरान के समर्थन में है. इसलिए, उन पर 150 कानूनी मुकदमे दर्ज किए गए. हालांकि, ऐतिहासिक तौर पर देखें तो पाकिस्तान में आज की तारीख तक 31 प्रधानमंत्री हो गए और किसी ने भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं किया है. सात प्रधानमंत्री जेल में डाले गए और एक को तो फांसी भी दी गयी. 1979 में जुल्फिकार अली भुट्टो को सेना ने गिरफ्तार किया और फांसी पर भी चढ़ा दिया. इसलिए, इमरान के साथ जो हो रहा है, वह नयी बात नहीं है. वहां सेना के खिलाफ जो भी जाता है, उसे सजा भुगतनी ही पड़ती है.


सेना ही है वहां सब कुछ


इमरान खान भी सेना पर नकेल नहीं डाल सकते. वहां का जो संस्थागत ढांचा है, वही आर्मी के पक्ष में है. यही विडंबना है पाकिस्तान की, वहां सेना पर नागरिक प्रशासन का नियंत्रण नहीं है. वह नागरिक प्रशासन को कठपुतली की तरह देखती है और मनचाहे तरीके से उसका इस्तेमाल करती है.


इस समय आर्मी का मुख्य लक्ष्य है कि इमरान खान चुनाव न लड़ सकें. उन्होंने एक तरह से रोक भी दिया है. आप याद कीजिए कि 2010 में 18वां संविधान संशोधन पाकिस्तान में आया. उस समय यह सोचा गया कि मुशर्रफ के बाद सेना की ताकत में थोड़ी कमी की जाए. तो, इस संशोधन में यह व्यवस्था हुई कि संसद को भंग करने का जो अधिकार राष्ट्रपति के पास था, उसे खत्म किया गया. प्रत्यक्षतः उसकी मनाही हो गयी. पाकिस्तान का जो पॉलिटिकल सिस्टम है, उसे चेंज करने का सोचा गया, हालांकि व्यवहार में यह हो नहीं पाया. आर्मी के स्टेटस और उनके इंस्टॉलेशन पर जो इमरान खान के लोगों ने हमला किया, सेना उसी से खासी नाराज है. वह इसको हल्के में नहीं लेगी और पाकिस्तान का तो ढांचा ही ऐसा है कि जो सेना चाहेगी, वही होगा.


भारत को रहना होगा सावधान


भारत का तो मामला बिल्कुल साफ है, पाकिस्तान के संदर्भ में. हमारी विदेश नीति स्पष्ट है कि “टेरर एंड टॉक कांट गो टुगेदर” यानी बातचीत तब तक नहीं, जब तक आतंक का खात्मा नहीं होता है. हालांकि, अभी पाकिस्तान के जो पीएम हैं शहबाज शरीफ, उन्होंने बातचीत के लिए कई बार बात की है. भारत इन घटनाक्रम को गंभीरता से देख रहा है और उसे देखना भी चाहिए.


हालांकि, वहां जो नॉन-पॉलिटिकल ताकतें हैं, उन पर ज्यादा ध्यान देना होगा. जैसे, वहां तहरीके तालिबान-पाकिस्तान है, आइएसके है, तमाम जिहादी गुट हैं. आतंकी समूह हैं, जो पूरे अफगान बॉर्डर पर सक्रिय हैं. ये भारत के लिए सुरक्षा का खतरा पेश करेंगे. ये धीरे-धीरे अपनी पहुंच बढ़ा रहे हैं, क्योंकि वहां की सरकार इन पर ध्यान नहीं दे रही है. इस पर भारत को सुरक्षा के दृष्टिकोण से सोचने की जरूरत तो है ही. इसकी वजह ये है कि पाकिस्तान के उपद्रवी तत्वों पर वहां की सरकार का वश नहीं है.


आर्थिक संबंधों से लेकर राजनीतिक-सामरिक संबंधों पर भी असर पड़ेगा. पाकिस्तान की भी यही मंशा है कि वह राजनीतिक मसलों को छोड़कर आर्थिक मसलों पर बात करना चाहता है. दरअसल, पाकिस्तानी इकोनॉमी बहुत दिक्कत में है. वह आईएमएफ का फोर्स्ड बॉरोअर है. भारत का चूंकि स्टैंड क्लियर है, इसलिए ऐसा हो नहीं पा रहा है कि भारत उससे बातचीत शुरू करे.


लगभग 155 मिलियन डॉलर का तो आउटस्टैंडिंग कर्ज है पाकिस्तान पर. इसलिए, उसकी आर्मी और सरकार दोनों को ढंग से सोचना चाहिए. यह पूरे दक्षिण एशिया के लिए सही नहीं है. बाकी, यह नहीं लगता कि पाकिस्तान में समय से चुनाव हो पाएगा. नवाज शरीफ की भी वापसी संभव दिख रही है. इमरान को तो अभी जेल में ही रहना होगा. धीरे-धीरे लोगों की याददाश्त से भी इमरान उतर जाएंगे और यह संभव हो सकता है कि छह महीने के बाद ही चुनाव होगा और आर्मी की मदद से ही नयी सरकार बनेगी, क्योंकि पाकिस्तान में बिना सेना के कुछ भी संभव नहीं है.


[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]