पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक़ डार ने पिछले दिनों ब्रिटेन में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान भारत के साथ व्यापारिक संबंधों की बहाली का संकेत दिया. इससे भू-राजनैतिक गलियारों और थिंक टैंक में सरगर्मियां तेज हो गई है. पाकिस्तान के विदेश मंत्री इसहाक़ डार ब्रुसेल्स परमाणु शिखर सम्मेलन में गए हुए थे. वहां से लौटने के क्रम में उन्होंने जियो न्यूज से लंदन में बातचीत के क्रम में कई बातें कहीं और भारत और पाकिस्तान के संबंधों में सुधार की इच्छा जाहिर की. उनका मुख्य उद्देश्य भारत से व्यापार को सुधारने और शुरू करने को लेकर थी.


पाकिस्तान हुआ लाजवाब और मजबूर


कुल मिलाकर भारत के साथ पाकिस्तान व्यापारिक रिश्तों को सही करना चाहता है. भारत और पाकिस्तान के बीच 2019 के अगस्त के बाद से व्यापारिक संबंध नहीं हैं. भारत ने तब अनुच्छेद 370 हटाया  था, क्योंकि जम्मू-कश्मीर भारत का अभिन्न अंग है और इसको पाकिस्तान बेवजह अपना बताता है. इस बात को लेकर पाकिस्तान ने यूएन सहित कई जगहों पर अपना दुखड़ा रोया, लेकिन अब उसे कोई भाव नहीं मिलता है. पाकिस्तान का हर बार यही कहना था कि भारत जम्मू कश्मीर में पहले की तरह स्थितियों को बहाल करे तभी पाकिस्तान किसी मुद्दे पर बात करेगा.


इस दौरान भारत का एक ही स्टैंड था कि भारत किसी भी हाल में आतंकवाद और बातचीत एक साथ नहीं कर सकता. अभी पाकिस्तान की हालत पूरी तरह से खराब है. वहां की आर्थिक व्यवस्था चरमरा गई है. 31 मार्च को आइएफएम की ओर से ऋण की किश्त मिलनी है, इस पर भी संशय बना हुआ है कि वह मिलेगा कि नहीं मिलेगा? पाकिस्तान में आर्थिक व्यवस्था को ध्यान में रखकर सोच बदल रही है. अब उनकी सोच है कि इन सब चीजों से बाहर आया जाए, इसलिए भारत के साथ व्यापारिक संबंध बनाए रखने की बात कर रहे है.



भारत ने 2019 के बाद जो- मोस्ट फेवर्ड नेशन- का दर्जा दिया था उसे भी वापस ले लिया है. इसका असर ये हो रहा है कि जो पाकिस्तान से इंपोर्ट कर रहे हैं, उसमें दो प्रतिशत टैरिफ रेट बढ़ा कर दिया जा रहा है. पहले उसको ट्रेड एंड टैरिफ ड्यूटी में छूट मिलती थी, लेकिन अब छूट को खत्म कर दिया गया है तो वस्तु काफी कीमती पड़ रही है. इन सब चीजों को ध्यान में रखकर पाकिस्तान के विदेश मंत्री ने ऐसा बयान दिया है कि भारत से व्यापारिक तौर पर रिश्तों  में सुधार होना चाहिए. शायद इससे पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था कुछ पटरी पर आ सके.


एकतरफा रिश्ते न होंगे मजबूत


एकतरफा ना रिश्ते मजबूत हो सकते हैं और ना ही परवान चढ़ सकते हैं. पाकिस्तान भले ही अर्थ व्यवस्था को लेकर लाचार हो या अफगानिस्तान के साथ उसके युद्ध जैसे हालात बने हुए हैं,  मुस्लिम राष्ट्र भी पाकिस्तान के साथ खड़े नहीं दिख रहे हैं. तो क्या इस बयान को हताशा से दिया हुआ बयान माना जाए. हाल में भी पाकिस्तान के पूर्व राजनायिक अब्दुल बासिद ने कहा है कि पाकिस्तान के विदेश मंत्री को ऐसा बयान अभी नहीं देना चाहिए और इसकी आलोचन भी की. इससे पाकिस्तान की स्थिति और भी खराब होगी. पाकिस्तान के विदेश मंत्री का बयान वहां के आर्थिक हालात को देखते हुए आया है, लेकिन जो संबंध सुधारने की बात आ रही है वो इतनी आसानी से संभव तो नहीं लग रहा है. अभी पाकिस्तान को आइएमएफ से 1.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर लोन की आखिरी किश्त 31 मार्च से पहले लेनी है. इसके लिए आइएमएफ की कई शर्तों को मानना भी था. दूसरी ओर जो नॉन स्टेट एक्टर्स हैं, जैसे तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान है, वो खैबरपख्तूनख्वा इलाके पर पूरी तरह से हावी है. ईरान की ओर से भी फ्रंट पूरी तरह से खुला हुआ है. इसलिए पाकिस्तान पूरी तरीके से घिरा हुआ है.


पाकिस्तान की सरकार को कई तरह की समस्याओं से जूझना पड़ रहा है, एक तो अर्थव्यवस्था है तो दूसरी ओर टेरेरिस्ट फ्रंट है. किसी तरह की मदद पाकिस्तान को कहीं से मिल भी नहीं रही है. एक समय था कि अमेरिका पूरी तरह से सपोर्ट करता था, अब अमेरिका भी पाकिस्तान की मदद उतनी नहीं कर रहा है. चीन लोन देकर कर्ज में फंसा रहा है, तो ये बयान एक तरह से परेशान होकर दिया गया है.


भारत की नीति स्थिर, प्रतिक्रियावादी नहीं  


आधिकारिक रूप से भारत की ओर से अभी तक कोई भी प्रतिक्रिया नहीं आई है. भारत में लोकसभा के चुनाव भी होने वाले है इस समय पाकिस्तान जैसे देश की ओर से बयान की टाइमिंग पर भी ध्यान देना चाहिए. पाकिस्तान में चुनाव संपन्न हो चुके है और वहां पर सरकार बन चुकी है. देश में चुनाव की प्रक्रिया शुरू है. पहले चरण का नामांकन शुरू हो चुका है. इस क्रम में पाकिस्तान से बयान आने के बाद भी,  सरकार चाहे तो भी फिलहाल कोई नीतिगत निर्णय नहीं ले सकती है. हालांकि ये राष्ट्रीय मुद्दा है, लेकिन भारत को पाकिस्तान को गंभीरता से देखना होगा कि जब भी बातचीत हुई है तो पाकिस्तान एक हाथ से अच्छी बातचीत जारी तो रखता है लेकिन दूसरे हाथ से नॉन स्टेट एक्टर्स आतंकवाद को बढ़ावा देते हैं.


जब तक पाकिस्तान की सरकार की ओर आतंकवाद पर कोई सार्थक कदम नहीं उठता, तब तक शायद भारत की सरकार किसी मुद्दे पर बात नहीं करेगी. जून माह में चुनाव तक तो किसी बातचीत के आसार भी नहीं लगते है. भारत की ओर से कोई पॉजिटिव सिग्नल भी अभी नहीं जाने वाला है. दक्षिण एशियाई देशों के समूह सार्क (SAARC) में, साफ्टा में अंतर-क्षेत्रीय व्यापार को बढ़ावा देने की बात बनी थी. उसमें सबसे अधिक भटकाने वाला देश पाकिस्तान ही है. उसने करीब 1200 प्रोडक्ट को साफ्टा में नेगेटिव लिस्ट में रखा है इससे कोई सकारात्मक हल नहीं निकल पा रहा है. चाहें वो सार्क हो या साफ्टा हो, दोनों जगहों पर गतिरोध ही पैदा किया है. शायद ही कोई सार्थक पहल इस पूरे प्रकरण से निकले. 


भारत, पाकिस्तान और अमेरिका 


अमेरिका ने अभी हाल फिलहाल में हुए केजरीवाल की गिरफ्तारी पर प्रतिक्रिया दी है, भारत ने भी उसके प्रभारी उप-प्रमुख ग्लोरिया बारबेना को बुलाकर कड़ी प्रतिक्रिया दी है. इसी तरह जर्मनी ने भी प्रतिक्रिया दी थी, तो भारत के विदेश मंत्रालय ने वहां भी कड़ी प्रतिक्रिया दी और साफ किया कि भारत के आंतरिक मामलों में वे न ही बोलें. पाकिस्तान के मामले में अमेरिका की चुप्पी है. भारत और अमेरिका के रिश्ते पाकिस्तान के संंदर्भ में किस प्रकार के रहेंगे ये भी देखने लायक होगा. अभी हाल में भारत और अमेरिका के रिश्ते बहुत ही अच्छे है.


इसका मुख्य कारण चीन भी है जो एशिया या साउथ एशिया में चीन का दखल बढ़ते जा रहा है चाहें वो श्रीलंका, मालदीव, बांग्लादेश आदि हों, दक्षिँ एशिया और हिंद महासागर में चीन का दखल बढ़ने के कारण अमेरिका और भारत के संबंध मजबूत हुए है. अमेरिका के लिए एशिया में जो मुख्य दुश्मन है वो चीन है. चीन को कन्नी देनी है इसलिए भारत और अमेरिका के रिश्तों में मजबूती आई है. अमेरिका अभी पाकिस्तान को कोई खास तबज्जो नहीं देगा. क्योंकि चीन और पाकिस्तान के रिश्ते तो जगजाहिर पहले से ही है. अगर पाकिस्तान के मामले में अमेरिका कुछ बयान देता है तो इससे भारत नाराज होगा. इसलिए पाकिस्तान के संदर्भ में अमेरिका कुछ भी बोलने या मदद करने से पीछे हट रहा है.


आतंकवाद और आतंकी, सभी के लिए खतरा                                                                                                 


अभी हाल में ही मॉस्को में जो हमला हुआ है उसमें इस्लामिक स्टेट ऑफ (खुरासान) नामक आतंकी संगठन ने इसकी जिम्मेदारी ली है. इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान का जो मुख्य इलाका है, वह पाकिस्तान और अफगानिस्तान का सीमाई इलााका है. यहीं वे सारे आतंकी पनाह पा रहे हैं. तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान, इस्लामिक स्टेट ऑफ खुरासान, लश्कर-ए-झंगवी इंटरनेशनल ये तीनों संगठन मिलकर जो कर रहे हैं, वो एक तरह से अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा के लिए सवाल उठता है. इसमें पुतिन का बयान भी आया है कि इसमें अमेरिका का हाथ है जबकि ऐसा नहीं है. जो पहले आईएसएस ग्रुप था अब उसकी जगह नए ग्रुप अपनी जगह बनाते जा रहे हैं. ये एक तरह से बहुत ही खतरनाक स्थिति अफगानिस्तान-पाकिस्तान के बार्डर पर बन रही है. ये पाकिस्तान के लिए और पूरी दुनिया के लिए ये खतरा है. इन सब चीजों को कंट्रोल करने पर पाकिस्तान को काम करना होगा उसके बाद ही वहां पर आर्थिक स्थिति सुधर पाएगी. भारत का स्टैंड एकदम साफ है कि पहले आतंक पर भारत नकेल कसेगा उसके बाद ही कोई बातचीत हो पाएगी. 


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