America And China Sourness: हम लोग राहुल गांधी की सदस्यता के मुद्दे पर ही उलझे पड़े हैं, लेकिन इस तरफ जरा भी ख्याल नहीं है कि दुनिया की दो सबसे बड़ी ताकतों नें अपने म्यान से तलवार निकालने और आरपार की लड़ाई छेड़ने का एक तरह से बिगुल बजा दिया है. बेशक ये चीन और अमेरिका के बीच का झगड़ा है, लेकिन अगर हम ये मानकर चैन की नींद लेने लगें कि इससे हमें क्या फर्क पड़ने वाला है तो हमारी  इससे बड़ी गलती कुछ और ही नहीं सकती.


इन दोनों मुल्कों के बीच पनपी खटास अगर लड़ाई में तब्दील हो गई तो भारत उससे अछूता नहीं रहने वाला है और इस सच्चाई की तरफ घरेलू सियासी जंग में उलझे हमारे हुक्मरानों को ध्यान देना ही पड़ेगा. दरअसल, दुनिया के दो बड़े ताकतवर मुल्कों के बीच ये खटास तब और ज्यादा बढ़ गई, जब चीन ने शुक्रवार (24 मार्च) को अपने दुश्मन मुल्क अमेरिका को गंभीर नतीजे भुगतने की चेतावनी दे डाली है. इसकी वजह ये है कि अमेरिकी नौसेना के विध्वंसकारी युद्धपोतों ने लगातार दूसरे दिन दक्षिण चीनी समुद्र के विवादास्पद कहलाने वाले Paracel Islands में अपनी रेकी यानी गश्त की है.


अमेरिका की इस हरकत से भड़कते हुए चीन ने कहा है कि ये हमारे देश की सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा है और अगर उसने ये दोहराया तो उसे खतरनाक नतीजे भुगतने होंगे. दोनों देशों के बीच बढ़ते हुए तनाव की वजह ये है कि चीन इस सबसे अहम रणनीतिक जलमार्ग को अपनी मिल्कियत समझता है,जबकि अमेरिका का दावा है कि अकेले चीन इस पर कब्जा नहीं कर सकता है. दो दिन पहले यानी 23 मार्च को विध्वंसकारी मिसाइलों से लैस अमेरिकी जहाज को Paracel Islands के नजदीक  देखने के बाद चीन ने ये दावा किया कि उसकी नेवी और वायुसेना ने उन्हें वहां से भागने पर मजबूर कर दिया था. हालांकि अमेरिकी सेना ने चीन के इस दावे को पूरी तरह से नकार दिया, लेकिन अमेरिका चुप नहीं बैठा और उसने शुक्रवार को अत्याधुनिक मिसाइलों से लैस अपना जहाज दोबारा उस Paracel Islands के निकट भेज दिया. वैसे चीन ने एक तरह से इस पर जबरन अपना कब्जा जमाया हुआ है, लेकिन ताइवान और वियतनाम भी नौचालन ऑपरेशन की आजादी का हवाला देते हुए इस पर अपना दावा ठोकते हैं.


अमेरिकी सेना के प्रवक्ता Luka Bakic ने दक्षिण चीन सागर में चीन के इस एकाधिकार को गैरकानूनी बताते हुए इसे एक गंभीर खतरा बताया है, जिसका असर समुद्री स्वतंत्रता के कारोबार के साथ ही वहां की उड़ानों पर भी होगा. उनके मुताबिक अब अमेरिका को दुनिया में अत्याधिक समुद्री चुनौती से निपटना होगा,बेशक उस हिस्से पर कोई भी अपना हक जताता रहे. जाहिर है कि उनके इस बयान को चीन से आरपार की समुद्री लड़ाई छेड़ने के संकेत के तौर पर देखा जा रहा है, लेकिन ये भी सच है कि पानी में छिड़ी लड़ाई को हवा और जमीन में वैसी ही शक्ल लेते कोई बहुत ज्यादा देर नहीं लगती है. लिहाजा, सामरिक विशेषज्ञ अमेरिका की इस चेतावनी को भी गंभीर मान रहे हैं.


हालांकि चीन ने अमेरिका की इस करतूत को अपनी सर्वभौमिकता और सुरक्षा के लिए बड़ा खतरा बताते हुए इसे अंतरराष्ट्रीय नियमों का भी खुला उल्लंघन बताया है. उसका कहना है कि अमेरिका इस इलाके में अपना सैन्यीकरण करना चाहता है, जिसे चीन किसी भी सूरत में परवान नहीं चढ़ने देगा.चीन सरकार के प्रवक्ता ने कहा कि हम पूरी ताकत के साथ अमेरिका से अनुरोध करते हैं कि वह अपनी इन करतूतों को फौरन रोक दे,वरना इसके बेहद गंभीर नतीजे भुगतने के लिए तैयार रहे. दक्षिण चीन सागर पर बेशक अमेरिका का कोई दावा नहीं बनता है लेकिन उसने पिछले कई दशक से सामरिक दृष्टि से बेहद अहम समझे जाने वाले इस जल मार्ग पर अपनी नौसेना और वायु सेना के गश्ती जहाजों को तैनात कर रखा है.वह इसलिये कि इसी रास्ते से हर साल दुनिया में करीब 3 ट्रिलियन डॉलर का कारोबार होता है,जिसमें सबसे कीमती मछलियों के अपार भंडार के साथ ही समुद्र से निकलने वाले तमाम तरह के खनिज संसाधन शामिल हैं.


बता दें कि साल 2016 में संयुक्त राष्ट्र द्वारा बनाये गए Arbitration Tribunal ने चीन के इस दावे को ठुकरा दिया था कि उस पानी पर सिर्फ उसका ही हक है. उसने UN द्वारा 1982 में समुद्रों के लिए बनाए गए समझौते का हवाला देते हुए कहा था कि चीन के पास इसका कोई कानूनी आधार नहीं है.जबकि तब  अमेरिका ने दलील दी थी कि उस जलमार्ग पर नौचालन और उड़ानों की आजादी अमेरिकी जनता के हित में है,जिसे रोकना अंतराष्ट्रीय कानून का उल्लंघन होगा. अब सवाल ये है कि दो ताकतवर मुल्कों के बीच लड़ाई की शुरुआत क्या समुद्र से ही होने वाली है?


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