लोकसभा चुनाव का आगाज हो चुका है. आखिरकार हां-ना करते हुए अखिलेश यादव उतर प्रदेश के कन्नौज सीट से चुनाव मैदान में उतर गए है. लोकसभा चुनाव की 80 सीटों वाले उतर प्रदेश में विपक्ष कड़ी चुनौती से जूझ रहा है. सत्तारूढ़ दल भाजपा यूपी में 80 सीट जीतने का दावा कर रही है. पिछले चुनाव की अपेक्षा इस बार भाजपा का प्रदर्शन काफी अच्छा है, ऐसा अब तक आए सर्वे बताते हैं. अभी तक के आकलन के अनुसार भाजपा को 70-72 सीटें मिलती हुई दिख रही है. सपा के कर्ताधर्ता अखिलेश यादव और उनके सलाहकारों को ये लगता था कि अगर वो फ्री रहेंगे तो सभी सीटों पर अच्छे से समय देकर सभी सीटों पर बेहतर प्रदर्शन की गुंजाइश बनाएंगे, लेकिन आखिरकार अखिलेश यादव कन्नौज की सीट से चुनाव मैदान में उतर गए हैं.


पारिवारिक प्रतिष्ठा दांव पर


अखिलेश के परिवार के बाहर और किसी की तो अभी तक गुंजाइश नहीं बन पाई है. परिवार से ही चार से पांच कैंडिडेट चुनाव मैदान में आ गए है. बात तो ऐसी भी बन रही थी कि कन्नौज की सीट से तेजप्रताप चुनावी मैदान में आएंगे, लेकिन सपा को ये लगा कि तेजप्रताप के भरोसे ये सीट निकालना आसान नहीं है, इसलिए खुद अखिलेश यादव चुनाव मैदान में आ गए.  कन्नौज की सीट  वैसे भी प्रतिष्ठा की सीट बन गई है. पिछली बार इस सीट से डिंपल यादव चुनाव हार गई थी. अगर अखिलेश हारे तो सपा की हार होगी, इस बार ये टैग भी लग सकता है.



पहले बात तो तय हुई थी कि अखिलेश यादव चुनाव लड़ेंगे उसके बाद बात आई कि वहां से तेजप्रताप चुनाव लड़ेंगे. अंत में अखिलेश ने कन्नौज की सीट से नामांकन कर दिया. देख जाए को अखिलेश यादव के चुनाव लड़ने से थोड़ी गंभीरता आएगी. कांग्रेस की पूरे देश में हालत डांवाडोल है. किसी तरह यूपी में 17 सीटों पर बात सपा के साथ बनी. अभी तक कांग्रेस ये तय नहीं कर पाई कि रायबरेली और अमेठी से कौन चुनाव लड़ेगा? अभी तक कांग्रेस की ओर से कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी कि वहां से राहुल या प्रियंका में से कोई एक चुनाव लड़ेगा, या फिर कांग्रेस के परिवार से राबर्ट वाड्रा चुनाव लड़ेंगे?


कांग्रेस पर भी दबाव


हालांकि, अखिलेश यादव के चुनावी मैदान में आने से राहुल या प्रियंका चुनावी मैदान में आकर अपनी परंपरागत सीट को बचाने के लिए एक दबाव तो बन ही गया है. अखिलेश के चुनाव लड़नें से सपा के समर्थकों और जनता में चुनाव को लेकर एक मजबूत मैसेज भी जाएगा. समर्थकों की ओर से तो अखिलेश यादव को पीएम का चेहरा भी देखा जा रहा है. हालांकि, अभी तक चर्चा नहीं होती थी, लेकिन इस बार चुनावी मैदान में आने से 'हमारा नेता कैसा हो,अखिलेश यादव जैसा हो' ये नारा अब गूंजने लगा है. अभी तक महागठबंधन की ओर से पीएम पद के लिए चेहरा भी तय नहीं हुआ है तो लोगों ने ये अपने से तय कर लिया है. सपा की ओर से एक मजबूत चेहरा अगर रहेगा तो एक दावेदारी तो जरूर पेश हो सकती है. यूपी में दो ही बड़ी पार्टियां है एक भाजपा और दूसरा सपा. हालांकि, चुनाव में खोने के लिए सपा के पास कुछ खास नहीं है. अगर वो चुनाव हार भी जाते हैं तो विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष है. यूपी में सबसे मजबूत विपक्ष के नेता है. जीत जाएंगे तो उनकी सीट खाली हो जाएगी. शिवपाल यादव को जहां से चुनाव लड़ना था वहां से उन्होंने अपने बेटे को मैदान में उतार दिया है. इस तरह से सपा की दूसरी पीढ़ी इस समय चुनावी मैदान में है.


कन्नौज है सपा के लिए खास


कन्नौज की सीट से राम मनोहर लोहिया और मुलायम सिंह यादव चुनाव जीते थे. उसके बाद अखिलेश यादव ने चुनाव जीता. 2019 के चुनाव में डिंपल यादव भाजपा प्रत्याशी सुब्रत पाठक से चुनाव हार गई. अब फिर से अखिलेश यादव के उस सीट पर आने के बाद तो अब बीजेपी को उस सीट को बचाने की एक चुनौती बनी हुई है. लालू यादव के दामाद तेजप्रताप के सीट पर आने की बात से लग रहा था कि लड़ाई चुनाव में बराबर की होगी. डिंपल यादव के चुनाव हारने के बाद तेजप्रताप को निश्चित रूप से हार का सामना करना पड़ता, लेकिन अब अखिलेश यादव के आने से सीट पर एकतरफा चुनाव हो गया है. भाजपा की जीत की राह आसान नहीं दिख रही है. सपा के लिए कन्नौज की सीट से कोई और महत्वपूर्ण सीट नहीं हो सकती. 


अखिलेश यादव के चुनावी मैदान में आने से ना बल्कि कन्नौज बल्कि उसके आसपास के सीटों पर सीधे तौर पर प्रभाव पड़ेगा. पार्टी का सुप्रीमो जब चुनाव लड़ता है तो सब कुछ दांव पर लग जाता है. ऐसे में कन्नौज के अलावा आसपास के अकबरपुर, इटावा आदि सीटों पर भी सीधे तौर पर असर देखने को मिलेगा. कार्यकर्ता और समर्थकों पर एक मनोवैज्ञानिक असर पड़ता है. उनके मन में अपने नेता ही नहीं बल्कि नेता के पार्टी से खड़े हुए दूसरे प्रत्याशियों पर भी कृपा उमड़ती है. सपा भी यूपी में 80 और देश में 400 के पार के नारे को रोकने के लिए काम करेगी. सपा की चाह है कि वो यूपी में ही सीटों पर भाजपा को रोक दे. ऐसे में कार्यकर्ता और समर्थकों में एक उत्साह भी देखने को मिलता है. 


पीडीए के सहारे अखिलेश  


यूपी में अखिलेश यादव ने वोट समीकरण के लिए पीडीए का नारा दिया. जिसमें पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक शामिल हैं. टिकट के बंटवारे में भी सपा ने यादव और मुसलमान के अलावा अन्य जातियों के लोगों को भी टिकट दिया है. यूपी में अखिलेश ने पीडीए का नारा दिया. बिहार में लालू यादव की पार्टी राजद ने एमवाई के समीकरण पर काम करने का नारा दिया था. हालांकि, सभी जनाधारों को इकट्ठा करने में कोई कसर पार्टियां नहीं छोड़ रही है. जाट समुदाय का हटना एक तरह से सपा और अखिलेश यादव के लिए एक झटका जैसा ही है. पीडीए के अलावा सपा और अखिलेश यादव ने अन्य जातियों को भी जोड़ने का काम करते हुए टिकट दिया है और चुनाव में एक अवसर प्रदान किया है. इस बार यादवों को भी अच्छी संख्या में टिकट दिया गया है. उसमें से काफी संख्या में सपा के अपने ही लोग है. 


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