'मोदी सरनेम' केस में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को सूरत कोर्ट से गुरुवार को बड़ा झटका लगा है. कोर्ट ने राहुल को मिली 2 साल की सजा के खिलाफ अर्जी को खारिज कर दी है. ऐसे में सवाल है कि राहुल गांधी के पास अब क्या विकल्प हैं. वे कहां अपील कर सकेंगे? क्या उन्हें इस मामले में 2 साल जेल भी जाना पड़ सकता है? जेल की बात जब होती है, यह किसी के लिए भी दुखद है. कांग्रेस पार्टी के लिए दुखद है. राजनीतिक एजेंडे की तरह से देखें तो हो सकता है कि उन्हें आगे देश में काम करने के लिए मौका मिलेगा. लोगों के बीच जाकर बताने के लिए कि मेरे साथ अन्याय हो रहा है. ये पहलू तो सुखद है. लेकिन व्यक्तिगत रूप से सोनिया जी, प्रियंका जी और भी परिवार के लोगों के लिए यह दुखद है. चूंकि यह फैसला डिस्ट्रिक्ट कोर्ट का है, अब उन्हें अहमदाबाद स्थित हाई कोर्ट में बेल के लिए अपील करनी पड़ेगी.


मुझे लगता है कि लीगल टीम की कमियां शुरू में ही रही क्योंकि जब ये कन्विक्शन अनाउंस हुआ था, उसी दिन अपील की जानी चाहिए थी. ऐसा हुआ होता तो न इनकी सदस्यता जाती और नहीं सदस्यता रद्द करनी किए जाने का नोटिफिकेशन जारी हुआ होता. हमारे देश का संविधान और सीआरपीसी का सिस्टम बहुत ही क्लीयर है. जब भी किसी व्यक्ति को आरोपित बताया जाता है चाहे उसे थोड़ी सजा हो या ज्यादा सजा सुनाई जाती हो लेकिन उसे तुरंत कॉपी, सर्टिफाइड  कन्विक्शन, जजमेंट, ऑर्डर सारे पेपर दे दिये जाते हैं. 



लेकिन राहुल गांधी के मामले में ये सारे दस्तावेज रहने के बावजूद तुरंत अपील फाइल नहीं की गई. लेकिन फिर भी उन्होंने जिला सूरत अदालत में अपील की लेकिन माननीय जज साहब को नहीं लगा होगा कि इन्हें बेल दिया जाना चाहिए इसलिए उसे डिसमिस कर दिया. अब आगे हाईकोर्ट में क्या होगा उसकी अलग सुनवाई होगी. चूंकि जिला अदालत से बेल नहीं मिली तो उन्हें अब ऑनरेबल हाईकोर्ट में इसकी अपील करने के लिए चला जाना चाहिए. वहां पर अपील आज ही फाइल कर देनी चाहिए. 


क्षमा मांगने पर हो जाती माफी


राजनीतिक प्रतिद्वंद्विता के दौरान चुनावी भाषणों में राजनीतिक लोग ऐसी बातें कह देते हैं. लेकिन उसके बाद वे क्षमा मांग लेते हैं फिर दूसरा पक्ष उसे माफ कर देता है तो मामला खत्म हो जाता है. मानहानि के मामले में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल जी ने न जाने कितने मामलों में क्षमा मांगी है और भी कई नेता है जिन्होंने इस तरह के मामले में क्षमा मांग ली और मामला खत्म हो गया. लेकिन राहुल गांधी का मामला थोड़ा बड़ा था और उन्होंने कहा कि मैं सावरकर नहीं हूं जो माफी मांगू और उन्होंने इसे अपने गुस्से से जोड़ लिया. इस पर फिरा आरोप-प्रत्यारोप का दौर चला. माफी मांगने वाली बातपर भी सावरकर का नाम लेने के लिए भी केस हो गए हैं.


मुझे लगता है कि उन्हें अब लीगल तरीके से ही चलना चाहिए. चुनाव और राजनीति तो अपनी जगह हैं. लेकिन इस तरह के मामलों को पॉलिटिकल एजेंडे में कैश करना और इसे राजनीति के मंच से उठाना अपनी जगह पर है. लेकिन राहुल गांधी के एडवोकेट को इसे गंभीरता के साथ अहमदाबाद हाईकोर्ट में सूरत सेशन कोर्ट के फैसले को चैलेंज करने के लिए अपील दाखिल कर देनी चाहिए नहीं तो फिर जेल जाने की नौबत तक आ जाएगी.  


अब हाईकोर्ट जाना बचा विकल्प


मुझे लगता है कि उन्हें पहले हाई कोर्ट जाना चाहिए. ये दो साल की सजा सुनाई गई है. उन्हें हाई कोर्ट पर भरोसा रखना चाहिए. ये कोई हिनियस नेचर का केस नहीं है. माननीय कोर्ट के नजर में राजा हो, रंक हो, अमीर हो या कोई गरीब उसके लिए सभी एक बराबर हैं. सभी के लिए एक ही फॉर्मूला है वो है जस्टिस फॉर ऑल. शिकायत कर्ता को न्याय अगर सजा देकर मिल सकता है तो फिर राहुल गांधी के लिए न्याय की अवधारणा, न्याय की उम्मीदें, न्याय की संरचना, परिकल्पना और संवैधानिक संरक्षण उनके आरोपित सिद्ध होने के बाद भी उपलब्ध है. मुझे लगता है कि इस मामले को लेकर राहुल गांधी ने भी कभी नहीं सोचा होगा कि ऐसा भी हो जाएगा. लेकिन राजनीति में कभी भी कुछ हो सकता है. मैं आपके चैनल के माध्यम से यह कहना चाहता हूं कि कभी किसी को भी आईपीसी, सीआरपीसी और संवैधानिक संरचना को हल्के में नहीं लेना चाहिए. उसे गंभीरता पूर्वक लिया जाना चाहिए. उसके लिए  गंभीरतापूर्वक सारे कार्य किए जाने चाहिए. 


राहुल गांधी की लीगल टीम को शुरुआत से ही मजबूती के साथ केस को लेकर अपील करनी चाहिए थी. इतनी लापरवाही नहीं की जानी चाहिए थी. वे कोई राहुल गांधी, सोनिया गांधी और प्रियंका की तो टीम है नहीं. वे तो पीढ़ी दर पीढ़ी राजनीति करते आ रहे हैं, लेकिन लीगल टीम को भी पार्टी की टीम की तरह आगे रहना चाहिए था. कोर्ट में मामले को मेरिट पर लड़ा जाना चाहिए था. अगर मैं उनकी लीगल टीम में होता तो पहले से ही अपील करने की तैयारी कर लेता. तुरंत अपील फाइल कर दिया जाता. आपको याद होगा कि सलमान खान को सजा सुनाई जाती है और सजा का आदेश प्रिंट होने से पहले ही अपील लगा दी गई. इसी तरह से निर्भया के मामले में भी किया गया था. इसे कानूनी पैंतरे कहे जाते हैं. ये बताये नहीं जाते हैं, किये जाते हैं. इन सभी बातों को जगजाहिर नहीं किया जाता है. ऐसे तो सभी सीख लेंगे. पैंतरा अपनाया जाता है. निर्भया मामले में एक के बाद एक अपील की जा रही थी. ये पहले से गंभीर रचनाएं की जाती है.


[ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है.]