अतीक अहमद के अंत के बाद उत्तर प्रदेश के बांदा जेल में बंद मुख्तार अंसारी अब निशाने पर है. मऊ पुलिस ने माफिया डॉन मुख्तार अंसारी के गाजीपुर स्थित पुश्तैनी घर पर उसकी पत्नी अफ्शा अंसारी की गिरफ्तारी के लिए छापेमारी की. शुक्रवार को पुलिस ने अफ्शा अंसारी के विरुद्ध लुकआउट नोटिस भी जारी किया है. मुख्तार की पत्नी अफ्शा और उसके परिवार के अन्य सदस्यों पर कई क्रिमिनल केस दर्ज हैं और सभी फरार चल रहे हैं. किसी ने भी पुलिस के साथ जांच में सहयोग नहीं किया है. 


मऊ पुलिस ने अफ्शा को पकड़वाने वाले के लिए 25000 रुपये और वाराणसी आईजी रेंज ने 50000 रुपये का इनाम घोषित कर रखा है. अभी अतीक अहमद का मामला शांत भी नहीं हुआ है और उसकी पत्नी शाइस्ता परवीन को भी पकड़ने के लिए पुलिस छापेमारी कर रही है. इसी बीच मुख्तार अंसारी की पत्नी को पकड़ने के लिए छापेमारी होती है. एक के बाद एक प्रमुख माफियाओं को सरकार अपने टारगेट पर ले रही है.


हमारा यह मानना है कि माफिया और अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई देश, समाज और प्रशासन के लिए अत्यंत आवश्यक है. लेकिन यदि यह टारगेटेड हो जाए, किसी खास व्यक्ति को चिन्हित करके, इंगित करके कार्रवाई की जाती है तो यह निष्पक्ष कार्रवाई नहीं रह जाती है. इसे अंग्रेजी में पर्सनल वेंडेटा यानी प्रतिशोध की भावना से किए गए कार्य कहते हैं. इसे मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अपना बनाम मुख्तार, अपना बनाम अतीक बना दिया.


उत्तर प्रदेश में अब मुद्दा शासन और सुशासन नहीं रह गया है. यह सब पूरी तरह राजनीतिक कारणों से हो रहा है. शायद वे इसमें सफल भी रहेंगे. ऐसा भी लगता है कि वोटरों को देखते हुए सारी कार्रवाई हो रही है. यह स्थिति दुखद है. चूंकि जिस विश्वास के साथ जनता ने उन्हें सत्ता की चाबी सौंपी थी वे अब उसका दुरुपयोग कर रहे हैं. हालांकि इसका एक पहलू यह भी है कि जो इनके अपने लोग हैं, उन्हें देखा जा रहा है. अपने वोटरों को देखा जा रहा है. बस मैं और मेरा वोटर, हमारी सत्ता और हमारी सीटें. इसमें हो सकता है कि ये सफल भी हो जाएं. कहा भी गया है कि डिवाइड एंड रूल एक सफल राजनीतिज्ञ की पॉलिसी होती है. लेकिन न्याय का निरंतर गला घोंटा जा रहा है.


हमारे मुख्यमंत्री स्टेटसमैन की तरह काम कर रहे हैं. हालांकि कभी हमने नहीं समझा कि वे स्टेट्समैन हैं. अब सीधे-सीधे किसी भी हद तक जाकर न्याय का गला घोंटने का काम किया जा रहा है. यह दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है. इतिहास गवाह है कि जब तक जिसके पास बहुमत रहता है वह आसमान में बेपरवाह होकर उड़ान भरता रहता है. निश्चित रूप से देर-सबेर यह भ्रम टूटता है लेकिन जो कुछ हो रहा है वह सत्ता का विकृत रूप है. जहां तक मुख्तार अंसारी और अतीक के अपराधों की बात है तो और भी नाम लिए जाने चाहिए. इनमें ब्रजेश, सुजीत सिंह, सुशील सिंह, विनीत सिंह, धनंजय सिंह, अभय सिंह, राजा भईया, हरिशंकर तिवारी, संजय राठी और कुछ दिन पहले तक नाम आते थे- बृजभूषण शरण सिंह, विनोद सिंह उर्फ पंडित सिंह (अब दिवंगत), डीपी यादव आदि का नाम भी मुख्यमंत्री के लिस्ट में होना चाहिए.


मैं यह कहूंगा कि उत्तर प्रदेश की धरती अब उतनी उर्वरक रही हो या नहीं रही हो, लेकिन माफिया का उदय कराने, उन्हें पुष्पित-पल्लवित करने, महिमामंडित करने में काफी उर्वरक है. सत्ता ने भी इन्हें पूरी ऊर्जा दी है. मैं पहले पुलिस में था. पुलिस में एसपी, एसपी क्राइम, डीएसपी कई पद होते हैं. उसी तरह माफिया में भी कई पद देखे जा रहे हैं. मुख्तार ने जो अपराध किए हैं उसे उसके लिए दंड मिलना चाहिए. अतीक ने जो अपराध किए उसका भी दंड मिलना चाहिए था. लेकिन अभी जो कार्य हो रहे हैं वे अपराध को समाप्त करने के लिए नहीं बल्कि व्यक्ति विशेष और एक खास समुदाय से जुड़े माफियाओं को समाप्त करने के लिए किये जा रहे हैं. मुख्तार अंसारी आज भी वही है, जो वह पहले था. अतीक भी वही अतीक था जो पहले था. ऐसे लोगों के खिलाफ एक्‍शन लिया जाना चाहिए था. किसी को भी लेना चाहिए था. अच्छा है कि आपने एक्शन लिया लेकिन सत्ता जब आपके पास है. सत्ता यानी शासन. आपको ईश्वरीय न्याय का अधिकार मिला तो आपको समदर्शी होना चाहिए था. लेकिन समदर्शिता पूर्णतया विलुप्त हो गई है.


सत्ता की चाबी जिस किसी के पास रही हो, अलग-अलग लोगों ने अपने मुताबिक अलग-अलग फार्मूले बनाए. उसी पर चलते रहे. अभी जो तरीका दिख रहा है वह यह कि हम मास को देखें, बड़े पक्ष को देखें और अपने लोगों को देखें. दूसरे वर्ग को न केवल दबाया जा रहा है बल्कि यह संदेश भी दिया जा रहा है कि हमने उसे दबा दिया. अभी यह फार्मूला हिट दिख रहा है. उसके परिणाम-दुष्परिणाम की चिंता किसी को नहीं है. हमारा मानना है कि सत्ता हर व्यक्ति की होनी चाहिए. सत्ता पाने के लिए सत्ता का उपयोग नहीं होना चाहिए. अभी सत्ता का सबसे घटिया स्वरूप दिख रहा है, ऐसा मेरा स्पष्ट मानना है. विष वमन करते-करते एक पक्ष अंध भक्ति में है. वाहवाही हो रही है. वहीं एक बड़ा वर्ग विचलित है, कष्ट में है, परेशान है. यह लोकतंत्र और उसकी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बनना चाहिए. इस पर रोक लगनी चाहिए.


(ये आर्टिकल निजी विचारों पर आधारित है)