अगले तीन दिन में अफगानिस्तान में तालिबान की नई सरकार बन जाएगी, जिस पर भारत समेत दुनिया के कई मुल्कों की निगाहें लगी हुई हैं. सबकी फिक्र इस बात को लेकर ही है कि यह सरकार वही पुराने आतंकी चेहरे वाली होगी या फिर तालिबान इस बार दुनिया के सामने ऐसी सरकार पेश करने वाला है, जिस पर भरोसा किया जा सके. हालांकि तालिबान की राजनीतिक बागडोर संभालने वाले दूसरे नंबर के नेता शेर मोहम्मद अब्बास ने दावा किया है कि यह एक समावेशी सरकार होगी जो सभी वर्गो का प्रतिनिधित्व करेगी.


अगर उनका दावा सच साबित हुआ तो ये सबके लिए बेहद राहत देने वाली खबर है कि इस सरकार में महिलाएं भी शामिल होंगी. मतलब साफ है कि तालिबान अपनी 'आतंकी इमेज' को बदलकर एक नई तस्वीर दुनिया के सामने पेश करने की तैयारी में है. शेर मोहम्मद अब्बास कतर में अफगान तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के उप-प्रमुख हैं और अमेरिका समेत दूसरे मुल्कों के साथ होने वाली वार्ता दल के सदस्य भी हैं. लिहाजा, उनकी बात को हल्के में नहीं लिया जा सकता और जाहिर-सी बात है कि उन्होंने ये दावा किसी बुनियाद पर ही किया होगा.


'इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान'


लेकिन इतना लगभग साफ है कि तालिबान की सरकार ईरान की तर्ज पर नहीं बनेगी बल्कि वो कतर और कुवैत की तरह ही 'इस्लामिक अमीरात ऑफ अफगानिस्तान' सरकार कहलाएगी यानी मुल्क की हुकूमत अब शरिआ कानून के मुताबिक ही चलेगी. वैसे भी तालिबान पिछले कई बरस से खुद को इसी नाम से ही परिभाषित करता आया है. फरवरी 2020 में अमेरिका के साथ हुए 'दोहा समझौते' पर भी तालिबान ने इसी नाम से दस्तखत किए थे.


हालांकि सरकार के गठन को लेकर तालिबान के अलग-अलग धड़ों की संयुक्त काउंसिल की मीटिंग में मंथन शुरू हो गया है. बताया गया है कि नई सरकार में उन लोगों को शामिल नहीं किया जाएगा जो पिछले 20 वर्षों से सरकार में रहे हैं. इसका मतलब साफ है कि हामिद करजई और अशरफ गनी जैसे उदारवादी विचारधारा वाले नेताओं को इसमें जगह नहीं मिलने वाली है. हो सकता है कि उनके द्वारा सुझाए गए कुछ नामों को इसमें शामिल कर लिया जाए लेकिन शेर अब्बास ने पश्तो रेडियो को दिए इंटरव्यू में फिलहाल इसका खुलासा नहीं किया है.


उनके मुताबिक नई सरकार में "पवित्र और शिक्षित" लोग शामिल होंगे. इससे संकेत मिलता है कि सरकार में दोनों तरह की विचारधारा वाले लोग शामिल होंगे. इसीलिए इतने यकीन के साथ कहा जा रहा जा कि अफगानिस्तान की इस्लामी अमीरात एक ऐसी सरकार बनाएगी, जिसे अफगानिस्तान के अंदर और बाहर दोनों से समर्थन प्राप्त होगा. चूंकि तालिबान महिलाओं को घरों में कैद रखने और उन पर जुल्म ढाने के लिए कुख्यात रहा है, इसलिए शेर अब्बास से पूछा गया था कि नई सरकार में महिलाओं की भी कोई भूमिका होगी कि नहीं? इसके जवाब में उन्होंने कहा, "इसमें कोई शक नहीं कि नई सरकार में बड़ी संख्या में महिलाएं होंगी, लेकिन ये अभी साफ नहीं है कि वे वरिष्ठ पदों पर रहेंगी या नहीं."


हालांकि दावा तो ये भी किया गया कि उनकी सरकार में महिलाओं को लेकर समस्या नहीं है और महिलाएं दफ्तरो में काम करेंगी. दरअसल, तालिबान भले ही एक चरमपंथी समूह है लेकिन उसके कई धड़े ऐसे हैं जिनमें पढ़े-लिखे वर्ग की जमात भी ठीकठाक है जो अंतर्राष्ट्रीय समुदाय में खुद को मान्यता दिलाने के लिए आतंकी तस्वीर बदलने में यकीन रखती है. यही वजह है कि अंतर्राष्ट्रीय समुदाय द्वारा ऐसी सरकार को मान्यता देने के सवाल पर शेर अब्बास ने कहा, "हमें यकीन है कि हर कोई इस सरकार को मान्यता देगा क्योंकि 20 साल बाद अफगानिस्तान में शांति स्थापित हुई है और एक समावेशी सरकार बन रही है. साथ ही पूरे अफगानिस्तान में अब कोई युद्ध जैसी स्थिति नहीं है."


सरकार बनने से पहले जिस तरह से ये दावे किए गए हैं, अगर तालिबान सरकार इन पर खरा उतरती है, तब भारत समेत दुनिया के किसी भी मुल्क को इसे मान्यता देने में शायद ही कोई दिक्कत पेश आए. दुनिया के मुल्कों के साथ तालिबान की राजनीतिक लाइन तय करने वाले इस नेता ने ये भी भरोसा दिलाया है कि उनकी सरकार यूरोपीय संघ और संयुक्त राज्य अमेरिका सहित दुनिया के सभी देशों के साथ अच्छे संबंध रखना चाहती है और हम ये भी चाहते हैं कि अफगानिस्तान के पड़ोसियों को भी इस स्थिति का लाभ उठाना चाहिए.


वैसे कतर की राजधानी दोहा स्थित तालिबान के राजनीतिक कार्यालय के सदस्यों ने विभिन्न देशों के प्रतिनिधियों के साथ बातचीत शुरू कर दी है. उसी कड़ी में मंगलवार को कतर में भारत के राजदूत दीपक मित्तल ने शेर मोहम्मद अब्बास से पहली बार आधिकारिक स्तर पर बातचीत की थी.


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