पश्चिम बंगाल का संदेशखाली इन दिनों खूब सुर्खियों में हैं. टीएमसी और ममता बनर्जी भी उन सुर्खियों का ही हिस्सा है. संदेशखाली में क्या कुछ हुआ, इसकी अभी जांच चल रही है. पहले सीआईडी ने जांच की. भ्रष्टाचार का आरोप होने के कारण इडी ने भी इसमें हस्तक्षेप किया.डी पर हमला भी हुआ.  सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई के इंकार करने और हाइकोर्ट के आदेश पर मामला सीबीआई को सौंपा गया. उसके बाद बंगाल पुलिस ने शेख शाहजहां की गिरफ़तारी कर सीबीआई को सौंपी. अब यह एक बड़ा मुद्दा बन गया है. खुद प्रधानमंत्री मोदी ने इसका जिक्र कर संकेत दे दिया है कि बंगाल में लोकसभा प्रचार का प्रस्थान बिंदु तय हो गया है. तो क्या संदेशखाली टीएमसी के लिए नंदीग्राम बनते जा रहा है. क्या यह ममता बनर्जी के सफर की ढलान का संकेत है, अंत की शुरुआत है?


संदेशखाली नहीं बनेगा दूसरा नंदीग्राम




जिस तरह से नंदीग्राम तत्कालीन सीपीएम सरकार के लिए बड़ा मुद्दा बन गया, जो बाद में इस मुद्दे को हैंडल नहीं कर पाई और आखिरकार उसको सत्ता से बेदखल होना पडा, वैसा इस बार ममता बनर्जी के साथ नहीं जा रहा है. इस बार लोकसभा चुनाव का एपिसेंटर पश्चिम बंगाल में संदेशखाली होगा, लेकिन वह टीएमएसी के पतन का वायस होगा, ऐसा कहना जल्दबाजी होगी. दरअसल संदेशखाली मुख्य रूप से बंगाल की भूमि स्थल से कटा हुआ है. संदेशखाली तक पहुंचने के लिए कई कठिन रास्तों से होकर जाना होता है. अब जरा बात सीएम की. ममता बनर्जी का वोट बैंक एमएम है. जिसमें एक एम - महिला और दूसरा एम मुस्लिम है. महिलाएं और 27 प्रतिशत मुसलमान ही उनका वोटबैंक हैं. लोकसभा चुनाव में संदेशखाली का मामले से वोट पर असर जरूर पड़ेगा. लेकिन इसे टीएमसी पार्टी के खात्मा से देखना सही नहीं होगा. यह देखना होगा कि पश्चिम बंगाल में विपक्ष की भूमिका अदा कर रही बीजेपी के अलावा वामदल इन मुद्दों को कैसे व्यापक रूप से उठाते हैं. उस पर ज्यादा परिणाम निर्भर करेगा. पहले जो सीपीएम के पास वोट कैडर थे. वही वोट कैडर वर्तमान में टीएमसी के पास में  है. लेकिन टीएमसी ये जानती है कि मुद्दे को मैनेज कैसे करना है, इन्ही चीजों को ध्यान में रखकर टीएमसी के कई नेता संदेशखाली का दौरा कर चुके हैं.

 

हरेक चुनाव के पहले ऐसा माहौल

 

ऐसा पहली बार नहीं हुआ है. हर चुनाव के आसपास ऐसी घटनाएं सुनने को मिलती है. इससे पहले मथुरापुर कांड की घटना सामने आई थी, विधानसभा चुनाव से पहले मूर्ति तोड़ने का भी मामला सामने आ चुका है. हालांकि यह मामला अलग है. भ्रष्टाचार का भी मामला इसमें जुड़ा है. खेती युक्त जमीन पर सैलाइन पानी (खारा जल) भरकर जमीन पर कब्जा करना आदि शामिल है. यह मामला तब भड़का जब ममता बनर्जी की सद्भावना रैली हुई, उसमें संदेशखाली से भी महिलाएं गई थी. जहां कुछ महिलाओं ने जमीन पर कब्जा वाली बात बताई, दूसरी ओर टीएमसी समर्थक महिलाओं का कहना है कि ये विपक्ष की एक चाल है. हालांकि बाद में ये मामला कोर्ट में चला गया. जानकारों का मानना है कि बीजेपी ने इसे संप्रदायिक रूप दिया. इसमें बताया गया कि जो महिलाओं के साथ हुआ है वो हिंदू जाति से आती है और जो अपराधी है वो मुस्लिम जाति से आता है. उसके बाद टीएमसी समर्थक नेता बृजभूषण सिंह और मणिपुर की घटना से जोड़कर इसे देखने और दिखाने लगते हैं. उसके बाद ही मामले ने सांप्रदायिक रंग पकड़ लिया.  अगर पार्टी के आधार पर बात करें तो इतनी आसनी से टीएमसी खत्म नहीं होने वाली है.. इसको खत्म करना इतना आसान नहीं होगा . अगर बात की जाए कि राजनीति में हमेशा कोई परमानेंट रहें तो यह गलत हैं. क्योंकि जब मार्क्सवादी की सरकार थी तो उनको भी लगता था कि वो अजेय है. जैसे अभी केंद्र में भाजपा की सरकार है, पहले इंदिरा गांधी की सरकार थी. इन सभी वक्त ऐसा लग रहा था कि वो नहीं जाएंगे. बाद में धीरे-धीरे सभी सत्ता से चले गए. मता बनर्जी भी जाएंगी, लेकिन यह ढलान संदेशखाली बनेगी, ऐसा नहीं कह सकते. 

 

गलती हुई ममता बनर्जी से

 

जानकारों की मानना है कि संदेशखाली ने एक तरह से टीएमसी पार्टी के चरित्र पर दाग तो लगा ही दिया है. हालांकि, इसकी नंदीग्राम से तुलना नहीं कर सकते. उस वक्त वामदल की सरकार थी और ममता बनर्जी ने नंदीग्राम में अड्डा जमा लिया, बाद में गोली कांड भी हुआ. किसानों के साथ जो हुआ था उसको ममता ने खुद ने लीड किया था. उस समय आइटी सेल और मीडिया उतना सक्रिय नहीं थी.. पार्टी के बात करें तो टीएमसी किस प्रकार इन चीजों को मैनेज करती है, विपक्ष को कैसे हैंडल करती हैं ये देखना होगा.  जो टीएमसी का वोट कैडर था अब वो डिजिटल हो चुका है, जो आरोप डिजिटली लगाए जाते हैं उसपर काउंटर भी आता है.  लेकिन संदेशखाली का मुद्दा एक तरह से बड़ा धब्बा हैं. इससे पहले भ्रष्टाचार आदि के आरोप  लगते रहते हैं. बंगाल में एक कुछ लोगों की भावनाएं हैं, जिनको लगता है कि टीएमसी एक खास समुदाय के लिए ही काम करती है. और जो बड़ी संख्या के लोग है उनके साथ अनदेखी की जा रही है. और माना जाता है कि इसमें कहीं न कहीं पश्चिम बंगाल में विपक्ष की भूमिका है.

 

नहीं बदला है संदेशखाली में कुछ

 

शाहजहां शेख के जेल जाने के बाद संदेशखाली में कुछ खास बदलाव नहीं आया है. वहां के लोग दो खेमा में बंट चुके हैं. इस मुद्दे को हिंदू -मुस्लिम का भी रूप दिया जा रहा है. बहरहाल जो भी हो वर्तमान में संदेशखाली पूरी तरह से पुलिस छावनी में तब्दील हो चुका है. और अब लोग इस मुद्दे पर बोलने से भी कहीं न कहीं कतरा रहे हैं. आगे क्या होगा इसका आकलन करना थोड़ा सा अभी जल्दबाजी होगी. लेकिन कुछ लोगों का गुस्सा भी है. अभी हाल में पीएम पश्चिम बंगाल आकर इस मुद्दा को उठा चुके हैं. और ममता बनर्जी भी खुद एक महिला है . कहीं न कहीं टीएमसी से ये गलती हुई है कि उसने शाहजहां शेख को बचाने की कोशिश की. और जमीन पर कब्जा का मामला नया नहीं है बल्कि सीपीएम के समय का है. ये पुराना मामला है और टीएमसी ने इसे इगनोर किया. इस कांड में जो पुलिस प्रशासन की भूमिका आई है वो भी प्रश्नचिह्न खड़ा करता है. महिला आयोग ने भी दौरे के बाद राष्ट्रपति शासन लगाने की अनुशंसा की थी. हालांकि अभी चुनावी मौसम है. चुनाव की तिथि आने के बाद कैंपेन किस तरह से होता है ये देखना होगा. शायद संदेशखाली का जो मुद्दा है उससे टीएमसी डिस्टर्ब होगी. सुरक्षा की दृष्टि को ध्यान में भी रखकर अभी से ही सेंट्रल की फोर्स को तैनात किया जा रहा है, ताकि चुनाव में किसी तरह का परेशानी ना हो. लेकिन एक खास समुदाय के लोगों में संदेशखाली के मुद्दा को लेकर अभी भी नाराजगी देखी जा सकती है.

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