बॉलीवुड के सुपर स्टार शाहरुख खान के बेटे आर्यन की ड्रग मामले में गिरफ्तारी पर लेकर देश में तमाम तरह की सियासत हो रही है लेकिन उनमें से शायद कम ही लोग होंगे,जिन्हें ये पता हो कि इसी केंद्र सरकार के एक महत्वपूर्ण मंत्रालय ने पिछले दिनों एक अहम सिफारिश की है. हालांकि इस सिफारिश को सरकार मानेगी भी या नहीं, कोई नहीं जानता. लेकिन उसने अन्तराष्ट्रीय नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड की तरफ से दी गई हिदायतों के मुताबिक ही ये सिफारिश की है. इसमें कहा गया है कि ऐसा कोई भी शख्स जो ड्रग लेने का आदी हो चुका है और अगर उसके कब्जे से थोड़ी मात्रा में वह बरामद होती भी है, तब भी उसे जेल भेजने से बचा जाना चाहिए.


दरअसल, अधिकांश लोग ये ही मानते हैं कि देश की सरकार में सबसे ज्यादा ताकतवर व अहम सिर्फ तीन ही मंत्रालय हैं- गृह, वित्त व रक्षा मंत्रालय. बेशक ये तीनों ही हर देश की रीढ़ होते हैं लेकिन इनके अलावा भी एक और मंत्रालय है,जिसके कंधों पर सरकार की हर योजना को अंतिम व्यक्ति तक पहुंचाने के साथ ही समाज को हर लिहाज़ से बेहतर बनाने की भी जिम्मेदारी है और वो है-सामाजिक न्याय व अधिकारिता मंत्रालय यानी Ministry of Social Justice and Empowerment.


एक अंग्रेजी अखबार में छपी रिपोर्ट के मुताबिक इसी मंत्रालय ने पिछले दिनों सरकार को अपनी जो रिपोर्ट भेजी है, उसमें साफतौर पर कहा गया है कि जो भी व्यक्ति अपने निजी इस्तेमाल के लिये किसी ड्रग का सेवन करता है और उसके कब्जे से थोड़ी मात्रा में अगर वो बरामद हो भी जाती है, तो उसे अपराधियों की श्रेणी से बाहर रखा जाना चाहिए. इस सिफारिश में नशीले पदार्थों के लिए बने कानून Narcotic Drugs and Psychotropic Substances (NDPS) Act में संशोधन करने की जरुरत बताते हुए जोर दिया गया है कि ऐसे मामलों में मानवीय रुख़ अपनाने की ही जयाद आवश्यकता है. इसमें कहा गया है कि जो लोग ड्रग के आदी हो चुके हैं और जिनका उसके बगैर गुजारा ही नहीं है, तो ऐसे लोगों को जेल की सलाखों के पीछे भेजने की बजाय नशामुक्ति व पुनर्वास केंद्र में भेजा जाना चाहिए, ताकि हम और नए अपराधी पैदा करने की जगह उन्हें एक सभ्य समाज की मुख्यधारा में वापस ला सकें.


वैसे हमारे देश में नशीले पदार्थो के खिलाफ जो कानून है,उसे लागू करने वाली प्रशासनिक नोडल एजेंसी राजस्व विभाग है,जो कि वित्त मंत्रालय के अधीन है.लिहाज़ा,शाहरुख के बेटे की गिरफ्तारी से जोड़कर इस मामले को नहीं देखा जाना चाहिए क्योंकि सामाजिक न्याय मंत्रालय ने पिछले महीने ही अपनी ये सिफारिश संबंधित विभाग को भेज दी थी. हालांकि इसी नोडल एजेंसी ने केंद्रीय गृह और स्वास्थ्य मंत्रालय के अलावा नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो समेत सीबीआई से भी इस मसले पर अपनी सिफारिश देने को कहा है लेकिन अभी तक ये खुलासा नहीं हो पाया है कि इस पर उनका नज़रिया क्या है.


दरअसल, दुनिया के तकरीबन दो सौ देशों के हालात पर नज़र रखने वाले संयुक्त राष्ट्र ने ड्रग कंट्रोल को लेकर एक इकाई बनाई हुई है, जिसे नारकोटिक्स कंट्रोल बोर्ड कहते हैं और इसे अर्ध न्यायिक शक्तियां मिली हुई हैं. उसका मानना है कि अगर ड्रग का सेवन करने वालों का अपराधीकरण ऐसे ही होता रहा,तो इससे समस्या का समाधान तो होगा नहीं, बल्कि उस देश और समाज की मुश्किलें और ज्यादा बढ़ जाएंगी और पिछले कुछ सालों में इसमें लगातार इजाफा होता देखने को मिल रहा है. लिहाज़ा, ऐसे लोगों को अपराधी मानने की बजाय उन्हें बेहतर ईलाज की ज्यादा जरुरत है क्योंकि वे मानसिक रुप से इतने बेबस हो जाते हैं कि उसके बगैर वे जी नहीं सकते. इसीलिये बोर्ड सभी सदस्य देशों को लगातार ये सलाह देता रहता है कि ड्रग्स के आदी हो चुके ऐसे पीड़ित को अपराधी करार देने से बचा जाना चाहिये.


हमारे देश में किसी भी प्रतिबंधित नशीले पदार्थ का सेवन करना या उसे अपने पास रखना एक जुर्म है, जो पुलिस या नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो यानी एनसीबी को ऐसे किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार करने का अधिकार देता है. और, यही इस कानून का सबसे बड़ा लोचा है जिसे अतीत में भी कई मौकों पर बदले की भावना से इस्तेमाल होते देखा गया है. NDPS ACT की धारा 27 सबसे ज्यादा खतरनाक है जिसमें किसी भी तरह की ड्रग का इस्तेमाल करने या रखने पर एक साल तक की सजा या 20 हजार रुपये का जुर्माना या फिर दोनों ही तरह के दंड का प्रावधान है.


मुम्बई जोनल के एनसीबी ने शाहरूख के बेटे आर्यन खान पर मुख्य धारा यही लगाई है. लेकिन हैरानी की बात ये है कि इस कानून में इसका कोई फर्क नहीं किया गया है कि कौन ड्रग एडिक्ट है, किसने उसे पहली बार लिया है और कौन इसे कभीकभार लेता है. यानी इस कानून के चाबुक की मार सबके लिए बराबर है और उसकी निगाह में पहली बार ड्रग लेने वाला भी बेकसूर नहीं है. ये कानून हमारे यहां 1985 में बना था लेकिन संसद के दोनों सदनों से पास होते वक़्त किसी भी सांसद ने इस बड़ी खामी की तरफ गौर नहीं किया कि एक ड्रग एडिक्ट और पहली बार उसका सेवन करने वाले को आखिर कैसे एक समान गुनहगार ठहराया जा सकता है. पिछले 36 बरसों में कानून की इस खामी का शिकार अनगिनत अनाम लोग हुए होंगे और उनमें से न जाने कितनों ने अपनी आज़ाद जिंदगी जीने के लिए मोटी रकम की भेंट भी चढाई होगी,जिसका न कोई खाता होता है और न ही बही, क्योंकि जो पुलिस या एनसीबी की डिमांड हो, वही सही.


लिहाज़ा, सामाजिक न्याय मंत्रालय ने अपनी सिफारिश में सबसे ज्यादा जोर इसी धारा में बदलाव करने पर दिया है.उसके मुताबिक इस धारा से जेल की सजा और जुर्माने का प्रावधान खत्म किया जाए. इसकी बजाय ऐसे मामलों में ड्रग के शिकार व्यक्ति के लिए सरकार द्वारा संचालित पुनर्वास व सलाह केंद्र पर 30 दिनों तक उसके ईलाज को अनिवार्य बना दिया जाये.


इस सोच की तारीफ इसलिये भी की जानी चाहिए कि अगर इस पर ईमानदारी से अमल हुआ,तो मानसिक रुप से बीमार व्यक्ति को हम सिर्फ स्वस्थ ही नहीं करेंगे, बल्कि उसे जुर्म की दुनिया का एक नया खिलाड़ी बनने से भी रोक पाएंगे.लेकिन बड़ा सवाल ये है कि सरकार ऐसा साहसिक फैसला लेने की हिम्मत जुटा पाएगी?



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