छत्रपति शिवाजी महाराज के विराट स्मारक का होवरक्राफ़्ट में बैठकर पहले जल पूजन और बाद में एक जनसभा को संबोधित करके पीएम नरेंद्र मोदी ने एक तीर से कई शिकार कर लिए. एक ओर तो उन्होंने महाराष्ट्र में आंदोलित मराठा समुदाय को भावनात्मक रूप से बीजेपी के साथ जोड़ने में सफलता प्राप्त की, वहीं दूसरी ओर ‘शिव-स्मारक’ की योजना बनाने का ढोल पीटने वाले कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन को निष्प्रभ कर दिया. यहां तक कि बीजेपी के विरुद्ध युद्धपथ पर चल रही शिवसेना को होर्डिंग लगाकर यह प्रचार करने पर मजबूर कर दिया कि शिवाजी की सबसे बड़ी मूर्ति लगाना मूलतः उसकी परियोजना है जो स्वर्गीय बालासाहेब ठाकरे का सपना था.


गौरतलब यह है कि मान और गठबंधन का रास्ता खुला रखने के लिए समुद्र में स्मारक स्थल तक ले जाने वाले होवरक्राफ़्ट पर शिवसेना कार्याध्यक्ष उद्धव ठाकरे को भी बिठाया गया, जिन्हें दादर में बनने जा रहे डॉ. बाबासाहेब आम्बेडकर स्मारक के शिलान्यास में बुलाया तक नहीं गया था.


बताते चलें कि मुंबई स्थित राजभवन से करीब 2 किलोमीटर धंसकर अरब सागर में बनने जा रहे इस शिव-स्मारक में यूएसए की स्टेच्यू ऑफ लिबर्टी से लगभग दोगुना ऊंची (192 मीटर) घोड़े पर सवार तलवार लहराते अपराजेय योद्धा शिवाजी की मूर्ति स्थापित होने वाली है. स्मारक परिसर इतना विशाल होगा कि इसके दायरे में संग्रहालय, सभागृह, एम्फीथिएटर, पुस्तकालय और छत्रपति शिवाजी की इष्ट देवी मां तुलजा भवानी का मंदिर भी अवस्थित होगा. बताया जा रहा है कि जब पूर्व सीएम पृथ्वीराज चव्हाण ने मूर्ति लगाने की परियोजना तैयार की थी तो इसकी अनुमानित लागत 1000 करोड़ रुपए थी जो अब 3600 करोड़ आंकी जा रही है.


लेकिन मोदी जी ने अरब सागर के जल से निकलते ही थल पर आयोजित जनसभा को चुनावी सभा में बदल दिया. शिवाजी का गुणगान करते हुए उन्होंने कहा कि वह संघर्षों के बीच भी ‘गुड गवर्नेंस’ की मशाल थे! इसके बाद सीधे वह नोटबंदी पर आ गए और अपनी ही स्टाइल में विरोधियों पर जम कर बरसे. उन्होंने कहा कि नोटबंदी से अब तक जितनी तकलीफ हुई है वह ईमानदार लोगों ने झेल ली है और अब बेईमानों की तकलीफ बढ़नी शुरू हो गई है. उन्होंने पिछले लोकसभा और विधानसभा चुनावों की याद दिलाते हुए कहा कि महाराष्ट्र के लोगों ने मुहर लगाकर दिखा दिया था कि सच्चे लोग किसके साथ हैं.


कांग्रेस पर हमलावर होते हुए वह बोले कि जिन लोगों ने 70 साल मलाई खाई है ऐसे तगड़े लोग सवा सौ करोड़ जनता के सामने नहीं टिक सकते. उन्होंने 18 हज़ार गांवों में बिजली पहुंचाने, गरीबों को सस्ती दवाइयां देने, गैस चूल्हे बांटने, बुजुर्गों की पेंशन राशि बढ़ाने आदि पर भी अपनी पीठ थपथपाई.


मोदी जी जानते थे कि महाराष्ट्र के स्थानीय निकाय चुनावों के मध्य मुंबई की उनकी यह यात्रा बेहद अहम साबित होगी. स्मारक के बहाने शिवसेना के मुख्य हथियार शिवाजी महाराज को उससे छीन लेने का दूरगामी असर होगा. शिवसेना से गठबंधन न हो पाने की सूरत में मुंबई महानगरपालिका और उसके बाद के चुनावों में भी बीजेपी को फ़ायदा होगा. घोटालों के चलते पहले ही बैकफुट पर खड़ी कांग्रेस और एनसीपी के स्मारक का श्रेय छिन जाने से और भी हाथ-पांव फूल जाएंगे...और सबसे बड़ी बात यह कि इन दिनों अग्निपथ पर चल रहा मराठा समुदाय कांग्रेस-एनसीपी के पाले में जाने से पहले कई बार सोचेगा. आख़िर शिवाजी महाराज द ग्रेट मराठा थे! जो उनकी श्रीवृद्धि करेगा, मराठों का मन उसकी ओर ही तो झुकेगा!


मराठों का मन क्षुब्ध होने की सामाजिक-राजनीतिक-आर्थिक तीनों वजहें हैं. अहमदनगर ज़िले में एक मराठा युवती का बलात्कार हो गया और उसे आज की तारीख़ तक न्याय नहीं मिला. मराठा समाज यह मानकर भी चल रहा है कि दलितों को मिले आरक्षण और एससी/एसटी क़ानून का उसके खिलाफ़ बेजा इस्तेमाल हो रहा है. राजनीतिक मोर्चे पर भले ही कांग्रेस और एनसीपी की कमान मराठा क्षत्रपों के हाथों में है लेकिन आजकल ये दोनों पार्टियां सत्ताच्युत और श्रीहीन हैं. दूसरी ओर बीजेपी के सत्तासीन मुख्यमंत्री देवेंद्र फड़नवीस ब्राह्मण हैं. केंद्र की राजनीति में भी मराठा नहीं बल्कि महाराष्ट्र के नितिन गडकरी और प्रकाश जावड़ेकर जैसे ब्राह्मणों का इक़बाल बुलंद है. फड़नवीस सरकार द्वारा कवि बाबासाहेब पुरंदरे को ‘महाराष्ट्र भूषण’ पुरस्कार दिए जाने में भी मराठा समाज को ब्राह्मणवाद की बू आई.


फड़नवीस सरकार ने सहकारी बैंकों के निदेशकों के चुनाव लड़ने पर पाबंदी लगा दी है और बैंक के निदेशक मंडल में सरकारी सदस्यों को शामिल करने का नियम बना दिया है. चूंकि मराठा समुदाय सहकारी बैंकों से ही आर्थिक शक्ति अर्जित करता रहा है इसलिए इस दखलंदाज़ी में भी उसे साजिश ही नज़र आ रही है. महान मराठा योद्धा शिवाजी के विरुद्ध महाराष्ट्र के ब्राह्मणों के षडयंत्र का तो इतिहास गवाह है कि वे उन्हें क्षत्रिय ही नहीं मानते थे और अपने राज्याभिषेक के लिए शिवाजी को बनारस से ब्राह्मण बुलाने पड़े थे!


ख़ैर, वह तो भूतकाल की बात है लेकिन वर्तमान सीएम फड़नवीस द्वारा मराठा समाज की कई मांगें मान लिए जाने के बावजूद आंदोलन ठंडा नहीं पड़ा है. शिव-स्मारक के जल पूजन की टाइमिंग को महाराष्ट्र में बढ़ रहे मराठा-ब्राह्मण तनाव को कम करने की कोशिश के तौर पर भी देखा जाना चाहिए. वरना तो इस स्मारक की ज़रूरत को लेकर कई जाने-माने पर्यावरणविद सवाल उठा चुके हैं. मछुआरे अलग चिल्ला रहे हैं कि स्मारक के लिए जो जगह चुनी गई है वह मछलियों का प्रजनन केंद्र है. समाज सुधारकों की टिप्पणी है कि यही हज़ारों करोड़ रुपए मुफ़्त अस्पतालों, कॉलेजों, मुंबई के जर्जर ट्रैफिक, सड़कों और सीवर लाइनों की दशा सुधारने में ख़र्च किए जा सकते थे!


मोदी जी के मुंबई से लौटते ही Change.org की याचिका पर करीब 50000 लोगों ने दस्तख़त करते हुए कहा कि पैसे और पर्यावरण की बरबादी के साथ-साथ सुरक्षा के लिहाज से भी यह स्मारक दुःस्वप्न साबित होगा. लेकिन एक तीर से कई शिकार करने निकले हुक्मरान अपनी रियाया की सुनते ही कहां हैं!


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