बिहार में शहाबुद्दीन के जेल से छूटने के पहले तक आरजेडी अध्यक्ष लालू यादव और नीतीश के बीच में खूब जम रही थी. सरकार में लालू जो चाहते थे उनकी मर्जी से काम होता था चाहे वो अफसरों का तबादला हो या फिर मनमानी नीतीश देर या सवेर लालू की हर बात मान लेते थे. महागठबंधन की गाड़ी सरपट दौड़ रही थी पर सरकार और सरकारी काम पटरी से उतर रहा था.
शहाबुद्दीन को मिली जमानत के बाद के खेल ने बिहार की राजनिति में एक नया बीज बो दिया. दरअसल सरकार ने शहाबुद्दीन को जमानत ना मिले इसके लिए ठीक से पैरवी नहीं की. इसका इल्जाम नीतीश कुमार पर लग गया जो वे सह गए. शहाबुद्दीन ने उन्हें ‘परिस्थितियों का सीएम’ बताया वो भी सह गए. पर नीतीश को अपने बूते 20 सीट नहीं जीत पाने वाले नेता के तौर पर शहाबुद्दीन ने सार्वजनिक बयान दे दिया. इतना ही नहीं नीतीश की तुलना झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा से कर दी. नीतीश हर ज़हर पी लेते पर लालू ने इन बयानों के लिए शहाबुद्दीन को शाबाशी दे दी. तमाम बयानों पर खामोश रहे. शहाबुद्दीन और आरजेडी नेताओं को लगा कि जो कुछ कहा गया वो ठीक कहा गया है.
आरजेडी कोटा के किसी मंत्री ने नीतीश का साथ नहीं दिया. उल्टे आरजेडी के नेताओं ने शहाबुद्दीन के मुद्दे पर लालू में अपनी भक्ति दिखाई. अब बारी थी नीतीश कुमार के एक्शन की. नीतीश ने भी अपने पुराने साथी और मंत्रिमंडल में सहयोगी ललन सिंह और बीजेन्द्र यादव दोनों को सामने खड़ा कर दिया और लालू से आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह के खिलाफ कार्रवाई करने की मांग करने लगे. शहाबुद्दीन पर सीधे हमला न बोल रघुवंश सिंह के बहाने लालू यादव पर चोट की. लालू तिलमिलाए जरूर पर अपने दोनों बच्चों के भविष्य को देखते हुए चुप्पी साध ली.
इधर नीतीश भी अपने पुराने फॉर्म में आ गए. अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाने के लिए खुलेआम एलान कर दिया कि उनके कार्यकर्ताओं को कोई कमज़ोर न समझे. दूसरी तरफ शहाबुद्दीन के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट जाकर ये जता दिया कि वो अब कानून व्यवस्था में कोई समझौता नहीं करेंगे. नीतीश के महागठबंधन के नेता बनने से पहले लालू ने कहा था कि वो नीतीश को नेता मानकर जहर का घूट पी रहे हैं. तब नीतीश ने जवाब दिया था कि “जो रहीम उत्तम प्रकृति, का करी सकत कुसंग, चन्दन विष व्यापत नहीं, लिपटे रहत भुजंग्.’’
मामला यहीं खत्म नहीं हुआ है. ये तो आगाज़ है. लालू सरकार की चाभी अपने 80 विधायकों के बल पर अपने हाथ में रखना चाहते हैं. लालू चाहते हैं कि उनके इशारे पर पूरे बिहार के डीएम और एसपी नाचे. विभाग के सचिव उनका कहा माने. यानी नीतीश सिर्फ नाम के सीएम हों और डीफैक्टो खुद हों. जैसे अपने दोनों बेटों के मंत्रालय को लालू खुद चला रहे हैं वैसे ही बिहार को चलाए. जैसे लालू अपनी पत्नी राबड़ी देवी के समय में सत्ता चलाते थे ठीक वैसे ही नीतीश सरकार का रिमोट कंट्रोल अपने हाथ में रखना चाहते हैं. ये बात भूलनी नहीं चाहिए कि लालू चारा घोटाला में सजायाफ्ता हैं और सरकारी कार्यक्रमों में वो ऐसे शिरकत करते हैं जैसे कोई सुपर सीएम हों. पर नीतीश की ये धोबिया पाट उनके कार्यशैली की एक बानगी है. आगे आने वाले समय में लालू को नीतीश से नहीं बल्कि बिहार के सीएम नीतीश कुमार और जनता दल युनाइटेड के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार से निपटना है. ये वही नीतीश कुमार हैं जिन्होंने लालू यादव को पंद्रह साल पहले हाशिए पर खड़ा कर दिया था.
नीतीश कुमार में धैर्य बहुत है और उनका लक्ष्य 2019 है. ऐसे में नीतीश कोई ऐसा कदम नहीं उठाना चाहते जिससे की महागठबंधन में किसी तरह की टूट का ठीकरा उनके सिर पर फोड़ा जाए. वहीं नीतीश अपनी छवि जो एक मजबूत प्रशासक के तौर पर बनी है उसपर कोई आंच आए ऐसा वो हरगिज़ नहीं होने देना चहते.
फिलहाल नीतीश नवम्बर महीने से बिहार के सभी अनुमंडलों में यात्रा पर निकलेंगे. वहीं लालू राबड़ी राज – पार्ट 2 की कोशिश 2019 तक करते रहेंगे. पर महागठबंधन की सरकार कछुए की चाल चलती रहेगी.
कांग्रेस की भुमिका इसमें तराजू के बट्खरे जैसी है जिस तरफ़ कांग्रेस झुकेगी पलड़ा उधर का भारी रहेगा.
नीतीश महागठबंधन के मुखिया ज़रूर बने पर सीटें कम आई. 118 सीट से घटकर 70 पर आ आ गए. लालू 22 सीट से बढ़कर 80 पहुंच गए. नीतीश की राज्नीतिक खुशी सिर्फ़ इस बात की थी को नरेन्द्र मोदी ने नीतीश को एक बार पटका था नीतीश ने भी उसका बदला ले लिया. अब तैयारी 2019 की है. ऐसे में नीतीश अगर पीएम के उम्मीदवार होते हैं तो बिहार का सीएम कौन बनेगा इसकी लड़ाई शुरू है.