देश भर में मंहगाई के मार से लोग पीड़ित हैं. आंकड़े बताते हैं कि अर्थव्यवस्था के हालात ठीक नहीं चल रहे हैं. बुधवार को जारी कुछ सरकारी आंकड़ों के मुताबिक जनवरी के महीने में सब्जियों की कीमत पिछले साल की तुलना में 50 फीसदी बढ़ी है. इससे ठीक एक महीना पहले यानि दिसंबर में सब्जियों की कीमत में 60 फीसदी का उछाल आया था. विशेषज्ञों के मुताबिक 50 से 60 परसेंट की बढ़ोतरी मामूली तो बिल्कुल नहीं है.


इसके अलावा दालों की कीमत में जनवरी में करीब 17 फीसदी का उछाल आया. दिसंबर में भी इसकी कीमत में जोरदार तेजी आई थी और कीमतें 15 फीसदी बढ़ी थीं. मीट, मछली और अंडों की कीमतें जनवरी में करीब 11 फीसदी बढ़ीं. दिसंबर में भी तेजी का यही ट्रेंड था. ये सीजनल हो सकता है. पूरा फूड बास्केट जनवरी में करीब 14 परसेंट महंगा हुआ. दिसंबर में भी महंगाई की दर इससे थोड़ी ज्यादा था. लेकिन गिरावट इतनी मामूली है कि इसमें राहत मिलने जैसी कोई बात नहीं है.


कुल मिलाकर खुदरा महंगाई की दर जनवरी में उतनी ही है जितनी मई 2014 में दिखी गई थी. मतलब फिलहाल महंगाई की दर 68 महीने में सबसे ज्यादा है. इसी के साथ एक और आंकड़ा आया है जो बताता है कि दिसंबर के महीने में फैक्ट्री के उत्पादन में 0.3 फीसदी की कमी आई. इससे पहले नवंबर के महीने में इसमें 1.8 फीसदी की बढ़ोतरी आई थी. मतलब ये कि अप्रैल से नवंबर के बीच फैक्ट्री के उत्पादन में 0.5 फीसदी की बढ़ोतरी हुई जो पिछले साल के इसी समय के 4.7 फीसदी से काफी कम है. मतलब जिस फैक्ट्री आउटपुट में रिकवरी का अंदाजा लगाया जा रहा था वो दूर-दूर तक दिख नहीं रहा है. इस फेज को टेक्निकल भाषा में स्टैगफ्लेशन कहते हैं- स्टैगनेशन (सुस्ती) और इनफ्लेशन (महंगाई). मतलब आमदनी बढ़ी नहीं है.


खाने के सामानों में महंगाई की चोट सबसे ज्यादा गरीबों पर


सरकारी आंकड़े बताते हैं कि गरीब परिवारों के कंजप्शन बास्केट का काफी बड़ा हिस्सा खाने-पीने के सामान ही होते हैं. उनकी कमाई का एक बड़ा हिस्सा इसी में खर्च होता है. ऐसे में ऐसी महंगाई का सबसे बुरा असर इसी तबके पर पड़ता है.


हाल ही के दिनों में रेलवे का टिकट महंगा हुआ है, रसोई गैस की कीमत में भारी उछाल आया है, एफएमसीजी कंपनियों ने कीमतें बढ़ाने के संकेत दिए हैं. महंगाई दर पर आगे इसका असर भी पड़ने वाला है. एक ही राहत की बात है कि अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चा तेल थोड़ा नरम पड़ा है. लेकिन उस हिसाब से अपने देश में डीजल-पेट्रोल फिर भी सस्ता नहीं हुआ है ताकि आम आदमी को राहत मिले.


रिजर्व बैंक की मुश्किलें बढ़ीं


देश में फिलहाल ऐसे हालात बन गए हैं कि बढ़ती महंगाई से जल्दी राहत मिलेगी, इसकी संभावना काफी कम है. ऐसे में अर्थव्यवस्था की दशा-दिशा क्या रहने वाली है? क्या रिजर्व बैंक विकास को पटरी पर लाने के लिए ब्याज दर में कटौती कर पाएगा? रिजर्व बैंक की मॉनेटरी पॉलिसी कमेटी का सबसे बड़ा टास्क होता है महंगाई पर काबू पाना. इसका काम होता है कि महंगाई दर को 2 से 6 परसेंट के दायरे में रखा जाए. पिछले दो महीने से जिस तरह से महंगाई दर ने इस दायरे को लांघा है, रिजर्व बैंक के लिए मुश्किलें बढ़ने वाली हैं.


फिलहाल ये तो ऑप्शन नहीं है कि ब्याज दर बढ़ाकर महंगाई पर लगाम लगाई जाए क्योंकि इससे स्लोडाउन और भी गहरा सकता है. लेकिन अगले कुछ महीने तक रिजर्व बैंक ब्याज दर में तो कटौती नहीं ही करने वाला है. और ये कंज्यूमर के लिए अच्छी खबर नहीं है. कई सेक्टर जैसे ऑटो, रियल एस्टेट ऐसे हैं जिनमें ब्याज दर में बड़ी कटौती कर राहत पहुंचाई जा सकती थी, कंज्यूमर सेंटिमेंट को सुधारा जा सकता था. लेकिन बढ़ती महंगाई ने ऐसी रिकवरी के रास्ते बंद कर दिए हैं.


हमें यह भी ध्यान रखना चाहिए कि अभी जो महंगाई बढ़ रही है उसकी बड़ी वजह है सप्लाई साइड में गड़बड़ी. प्याज की बढ़ती कीमत को ही ले लीजिए. इसके सप्लाई को ठीक से मैनेज नहीं किया गया और इंपोर्ट के ऑर्डर तब दिए गए जब काफी देरी हो गई थी. इंपोर्टेड प्याज से किसी का भला तो दूर सबको नुकसान ही हुआ. ऐसे हालात में अगर डिमांड में थोड़ी सी भी रिकवरी होती है तो महंगाई दर पर और दवाब पड़ेगा. ऐसे माहौल में रिजर्व बैंक कोई भी रिस्क लेना नहीं चाहेगा. मतलब ब्याज दर में कटौती करके रिकवरी के फिलहाल कोई आसार नहीं हैं.


(नोट- उपरोक्त दिए गए विचार व आंकड़े लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.)