अपने हक और हकूक की लड़ाई कितनी मुश्किल होती है इसकी बानगी है दिल्ली के जंतर मंतर पर बीते 21 दिनों से तमिलनाडु के किसानों का धरना. सरकारों की बेरुखी के साथ बढ़ती गर्मी और धरने के पास कंक्रीट की सड़कों से निकलती तपिश उनके हिम्मत का इम्तेहान भी ले रही है. यूं तो जंतर मंतर पर हमेशा विरोध-प्रदर्शनों का मेला लगा रहता है, लेकिन तमिलनाडु के किसानों का ये विरोध आम विरोध नहीं है. उनके धरने के तरीके न सिर्फ उनकी बेबसी की दास्तां हैं, बल्कि सत्ता के कानों तक अपनी जायज़ आवाज़ पहुंचाने के लिए ग़रीब और कमज़ोर लोगों को किस मुसीबत से गुजरना पड़ता है. कैसे अपनी मन: स्थिति को जख्मी करना पड़ता हैं. उसकी एक सच्ची मिसाल है.


किसानी की मार से जान गंवाने वाले साथी किसानों के नरमुंड के साथ तमिलनाडु के किसान.

जिन नरमुंडों को देखकर एक आम इंसान डर जाता है, जंतर-मंतर पर ये किसान उन्हें अपने गले में माला बनाकर पहनने को मजबूर हैं. किसानों ने बताया कि ये नरमुंड उनके हैं जिन्होंने किसानी से मिले ग़म कि वजह से मौत को गले लगा लिया. इन किसानों का दर्द ये है कि इन्होंने जिंदा रहने के लिए मरे चूहे और सांप का मीट तक खाने की बात कही है. किसानों का कहना है कि जब वे आए थे तब उन्हें सड़क पर ही सोना पड़ा और पहले पांच दिनों तक उन्होंने गुरुद्वारा बंगला साहिब में खाना खाकर बिताए. जब दिल्ली तमिल यूथ के कार्यकर्ता किसानों के समर्थन में जंतर-मंतर पहुंचे तब इनके भोजन और सोने के लिए टेंट का इंतज़ाम हुआ.

जब ये आए थे तब इन्हें सड़क पर ही सोना पड़ा और पहले पांच दिनों तक इन्होंने गुरुद्वारा बंगला साहिब में खाना खाकर बिताए.

क्यों हैं धरने पर किसान?
किसानों का दावा है कि बीते दो सालों से तमिलानाडु सूखे से जूझ रहा है और पिछले साल का सूखा बीते 140 सालों का सबसे भयानक सूखा था. धरने की अगुवाई कर रहे अयाकन्नु ने बताया कि कावेरी नदी का पानी भी काफी कम हो गया है. उन्होंने आगे कहा कि एक दौर था जब वहां के किसान कावेरी के पानी से 29 लाख एकड़ की खेती कर लेते थे लेकिन अब कावेरी के पानी से एक एकड़ की खेती करना भी मुश्किल है. अब हाल ये है कि अगर तमिलनाडु में 100 कुएं होंगे तो उनमें से 99 सूखे पड़े हैं.

गले में फंदा लगाकर अपनी दुर्दशा बयां करने की कोशिश करते तमिलनाडु के किसान.

सरकारी आंकड़े तो है ही लेकिन अयाकन्नु के मुताबिक बीते छह महीनों में सूखे की मार से 400 किसानों ने अपनी जानें गंवाई. वे आगे कहते हैं कि किसानों की आत्महत्या को लेकर राज्य सरकार ने ऐसे निर्देश दिए हैं कि इन्हें इस तरह के मामलों में बदलकर केस दर्ज किया जाए कि ये खेती-किसानी से जुड़ी मौतें ना लगें. अयाकन्नु ने बताया कि पिछले साल उन्होंने जब सूखे कि स्थिति को लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली से मुलाकात की थी तब उन्होंने मंत्री जी से कहा था कि नौबत यहां तक आ गई है कि बैंक किसानों की ज़मीन तक बेचने को तैयार है. उन्होंने आगे कहा कि अगर किसान की ज़मीन चली जाएगी तो उसके पास जान देने के अलावा क्या चारा रह जाएगा. इसपर जेटली ने उन्हें मदद का भरोसा दिया था. अयाकन्नु के मुताबिक वादे के बाद भी सरकार ने उनकी शिकायत को लेकर कोई कदम नहीं उठाया.

अयाकन्नु केंद्र से मिली 10,748 करोड़ की रकम की बात भी करते हैं लेकिन वे साथ में ये भी बताते हैं कि ये सूखा राहत के लिए मिली रकम नहीं है, बल्कि किसानों को मिलने वाली सब्सिडी का हिस्सा है जिससे वो बीज और खाद जैसी खेती से जुड़ी चीज़ें खरीद सकें. वहीं वो ये भी बताते हैं कि राज्य सरकार ने केंद्र सरकार से 21,708 करोड़ की मांग की थी. इस रकम को राज्य सरकार ने उन किसानों की छतिपूर्ति के लिए मांगा था जो पानी की कमी की वजह से खेती नहीं कर पाए. वे आगे बताते हैं कि केंद्र ने इसके लिए एक पैसा भी नहीं दिया.

सबसे दायीं ओर माइक पकड़े किसानों के इस आंदोलन के अगुआ अयाकन्नु और उनके साथ मुंह में सांप दबाए खड़े तमिलनाडु के किसान.

अयाकन्नु इसकी भी याद दिलाते हैं कि 2014 आम चुनावों के कैंपेन के दौरान पीएम मोदी ने वादा किया था कि जब वे पीएम बनेंगे तब किसानों को उनकी फसल की दोगुनी कीमत दिलवाएंगे. वहीं वे ये भी बताते हैं कि पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपयी के उसे वादे को भी मोदी ने कैंपेन के दौरान दोहराया था कि वे नदियों को जोड़ने का काम भी करेंगे. अयाकन्नु कहते हैं कि फसलों के दाम से लेकर नदियों को जोड़ने तक की दिशा में कोई कदम नहीं उठाया गया है.


क्या-क्या हैं किसानों की मांग


इस धरने में जो प्रमुख मांगे हैं उनमें नदियों को जोड़ना भी शामिल है. किसानों का कर्जा माफी, कावेरी वॉटर मैनेजमेंट बोर्ड, 60 साल के ऊपर के किसानों को हर महीने 5000 रुपए की पेंशन शामिल हैं. किसानों की कर्ज माफी को लेकर अयाकन्नु कहते हैं कि सरकार अगर कॉर्पोरेट्स का हज़ारों-करोड़ों रुपए का कर्जा माफ कर सकती है तो किसानों के साथ ऐसा करने में क्या परेशानी है. उनका कहना है कि कॉरपोरेट लोन में जितनी रकम माफ की जाती है अगर वैसी रकम का इस्तेमाल नदियों को जोड़ने में किया जाए तो यूपी, बिहार, ओडिशा, तेलंगाना जैसे राज्यों में आने वाली बाढ़ को रोका जा सकता है और जिन राज्यों में सूखा पड़ता है उन्हें पानी मुहैया कराया जा सकता है.

अपने बेबसी का एहसास कराने के लिए मुंह में ज़िंदा चूहे को दबाए इस प्रदर्शन में शामिल एक किसान.

एक सवाल के जवाब में अयाकन्नु ने कहा कि जलिकट्टू जैसे विरोध प्रदर्शन बड़े और सफल इसलिए हो जाते हैं क्योंकि उनमें हारने पर सरकार को अपनी जेब ढीली नहीं करनी पड़ती लेकिन किसानों की मांगों को दबाने का बड़ा कारण ये है कि इन्हें मान लेने के बाद सरकारी खजाने पर असर पड़ेगा. वे कहते हैं इसलिए ऐसे प्रदर्शनों को व्यापक नहीं बनने दिया जाता. जंतर मंतर पर मौजूद दिल्ली तमिल यूथ फोरम के मनोज ने बताया कि छात्रों और युवाओं ने जब किसानों को समर्थन देने के लिए चेन्नई के मरीना बीच पर पहुंचकर इसे भी जलिकट्टु जैसा विरोध प्रदर्शन बनाने की कोशिश की तो सरकार ने धारा 144 का लगा दी. मनोज का कहना है कि ऐसे किसी भी प्रयास को तेज़ गिरफ्तारियों से कुचलनें की कोशिश की जा रही है.

कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से लेकर पुडुचेरी के सीएम वी नारायणसामी तक इन किसानों से मिलने जंतर-मंतर पहुंचे. मोदी सरकार के सड़क एवं परिवहन विभाग के राज्यमंत्री पोन राधाकृष्णन भी इन किसानों से मिल चुके हैं. इस मुहिम को भारतीय किसान यूनियन, भारतीय किसान सम्मेलन, राष्ट्रीय जनता दल वर्कर्स यूनियन जैसे संगठनों का समर्थन हासिल है. किसानों ने बताया कि सरकार चाहती है के वे जंतर-मंतर से वापस चले जाएं और इसके बदले सरकार उनकी समस्या का समाधान कर देगी. लेकिन किसानों को लगता है कि सरकार बस जंतर-मंतर में उनके धरने की जगह खाली करवाना चाहती है और अगर वे यहां से चले गए तो उन्हें कुछ हासिल नहीं होगा. गुस्से से भरे किसानों का कहना है कि सरकार उन्हें अछूत समझती है और इसी वजह से उन्हें देखना भी नहीं चाहती. अयाकन्नु का कहना है कि वे और उनके साथी किसान तबतक जंतर-मंतर पर बने रहेंगे जबतक उनकी मांगे मान नहीं ली जातीं. किसान अपनी आखिरी सांस तक इस लड़ाई को लड़ने के लिए तैयार हैं.