Surya Grahan 2020: सूर्य ग्रहण को ज्योतिष शास्त्र में एक प्रमुख घटना के तौर पर देखा जाता है. हिंदू धर्म में सूर्य ग्रहण को शुभ नहीं माना जाता है. ऐसा माना जाता है ग्रहण के समय राहु और केतु सूर्य को जकड़ लेते हैं. ग्रहण के समय ये दोनों ग्रह सूर्य को परेशान करते हैं, जिससे सूर्य पीड़ित हो जाते हैं.


वैज्ञानिक भी मानते हैं ग्रहण के समय कई क्रियाएं होती हैं जिनके कारण सूर्य पर तेज आंधी और ऐसी ऊर्जा का संचार होता है जो नकारात्मक प्रभाव डालती है. इसलिए हिंदू धर्म में सूर्य ग्रहण के दौरान सूतक के नियमों का पालन करने की सलाह दी जाती है.


कब सूर्य ग्रहण लग रहा है
साल का आखिरी सूर्य ग्रहण 14 दिसंबर को भारत के समय के अनुसार शाम 7 बजकर 3 मिनट से 15 दिसंबर को रात 12 बजकर 23 मिनट तक लगेगा. इस सूर्य ग्रहण की कुल अवधि लगभग 5 घंटे रहेगी. इस सूर्य ग्रहण का चरम रात 9:43 बजे पर होगा. इसलिए इस दौरान विशेष सावधानी बरतनी चाहिए.


सूतक काल नहीं लगेगा
सूर्य ग्रहण का भारत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि इस ग्रहण को खंडग्रास सूर्य ग्रहण माना जा रहा है. रात्रि और खंड़ग्रास होने से इस सूर्य ग्रहण में सूतक काल मान्य नहीं है. पूर्ण सूर्य ग्रहण जब लगता है तो सूतक मान्य होता है. पूर्ण सूर्य ग्रहण पर सूतक काल 12 घंटे पहले लग जाता है. लेकिन कुछ मामलो में सूतक काल के नियमों का पालन करना उत्तम बताया गया है. सूर्य ग्रहण के दौरान गर्भवती महिलाएं और छोटे बच्चों का विशेष ध्यान रखना चाहिए.


राहु और केतु का सूर्य ग्रहण से संबंंध
सूर्य ग्रहण को लेकर एक पौराणिक कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार जब देवताओं और दैत्यों के बीच समुद्र मंथन शुरू हुआ तो उसमें से अमृत का कलश भी निकला. देवताओं और दैत्यों में अमृत कलश को लेकर विवाद शुरू हो गया. देवताओं को चिंता थी कि यदि अमृत दैत्यों ने पी लिया तो दैत्य अमर हो जाएंगे और हर जगह इनका राज्य हो जाएगा. तब भगवान विष्णु ने मोहिनी का रूप रखा और दैत्यों से अमृत का कलश लेकर देवताओं को अमृतपान कर दिया. लेकिन देवताओं की पक्ति में स्वरभानु नाम का एक राक्षस भी रूप बदलकर छिप कर बैठ गया. चंद्रमा और सूर्य ने स्वरभानु को पहचान लिया और भगवान विष्णु को पूरी बात बता दी, यह बात सुनकर तुरंत विष्णु भगवान ने सुर्दशन चक्र से स्वरभानु का सिर धड़ से अलग कर दिया. लेकिन तब तक अमृत की बूंद गले से नीचे उतर चुकी थी. इसलिए सिर और धड़ अलग हो जानें के बाद भी जीवित रहा. बाद में सिर राहु और धड़ केतु बन गए. राहु केतु इसी बात का बदला लेने के लिए चंद्र और सूर्य पर समय समय पर आक्रमण करते हैं. इसी क्रिया को ग्रहण कहते हैं.


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