सफलता के अक्सर विभिन्न फॉर्मूले और तरीके धर्म गुरुओं और मोटिवेशनल स्पीकर्स से सुनने को मिलते हैं. इनसे हमें प्रेरणा अवश्य मिलती है लेकिन यह सीख व्यक्तिगत अनुभव की न होने से बहुत प्रभावी नहीं होती. सफलता का सर्वाेत्तम तरीका हर वस्तु, व्यक्ति और प्राकृतिक व्यवहार से सीखना होता है. यह व्यक्तिगत अनुभव से प्राप्त ज्ञान होता है. अधिक प्रभाव और स्मरणीय होता है.


भगवान दत्तात्रेय इस तरह की सीख से सफलता पाने के सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं. उन्होंने अपने जीवन में अकादमिक तरीके से किसी को कभी गुरु नहीं बनाया था. उनके गुरु मधुमख्खी, कबूतर से लेकर पृथ्वी एवं सूर्यादि हैं. उन्होंने धर्म और साधना के मार्ग पर आगे बढ़ते हुए निज अनुभव से 24 गुरु बनाए और महत्वपूर्ण सीखें पाईं. सफलता के सीखना और सकारात्मक अनुभव हासिल करना आवश्यक है.


दत्तात्रेय जी ने वायु से सीखा कि वह अच्छी या खराब जगह पर होकर भी पूर्ण पवित्र रहती है. इसी प्रकार व्यक्ति पर भी परिस्थिति का प्रभाव नहीं होना चाहिए. हिरण से उन्होंने सीखा की उछल कूद की मस्ती में इतना नहीं खो जाना चाहिए कि शेर व बाघ जैसे हिंसक जीवों की नजदीक में उपस्थिति होने पर भी उन पर ध्यान न जा पाए.


मधुमख्खी से दत्तात्रेय ने सीखा कि संग्रह इतना नहीं करना चाहिए कि अन्य कोई आपका संग्रह छीनकर या चुराकर ले जाए. इसी प्रकार मछली से सीखा की स्वाद के चक्कर में काटें में नहीं फंसना चाहिए. बच्चे से सीखा कि हमेशा चिंतामुक्त और प्रसन्न रहना चाहिए. इस प्रकार सभी 24 गुरुओं से उन्होंने कुछ न कुछ सीखा और जीवन आध्यामिक बनाया. यह ढंग हमें परिस्थितियों को बेहतरी से देखने और समझने की शक्ति देता है. सफलता सुनने से ज्यादा से अनुभव पर अमल से आती है.