Shani Mahadasha: शनि देव को ज्योतिष शास्त्र में विशेष स्थान प्रदान किया गया है. शनि देव ने भगवान शिव की तपस्या की थी. शनि देव को भवगान शिव ने वरदान दिया हुआ है कि उनकी दृष्टि से कोई नहीं बच सकता है. देवता भी शनि की दृष्टि से नहीं बच सकते हैं. इसीलिए शनि देव अपनी दृष्टि को हमेशा नीचे करके रखते हैं.
शनि को ज्योतिष शास्त्र में न्याय करने वाला ग्रह माना गया है. शनि का स्वभाव क्रूर माना गया है. शनि की चाल अत्यंत धीमी है. शनि एक राशि से दूसरी राशि में प्रवेश करने में लगभग ढाई वर्ष का समय लेते है. शनि परिश्रम का कारक भी है. इसीलिए शनि प्रधान व्यक्ति जीवन में कठोर परिश्रम करते हैं. शास्त्रों में शनि देव को सूर्य पुत्र कहा गया है. शनि की माता का नाम छाया है.
शनि की साढ़ेसाती और शनि की ढैय्याशनि अपनी दशा के साथ साथ साढ़ेसाती और ढैय्या के दौरान भी व्यक्ति के जीवन को अत्याधिक प्रभावित करते हैं. शनि अशुभ होने पर प्रत्येक कार्य में बाधा प्रदान करते हैं. व्यक्ति का जीवन कष्टों से भर जाता है. जॉब, करियर, शिक्षा, बिजनेस और दांपत्य जीवन को भी प्रभावित करते हंै. इसलिए शनि को शुभ बनाए रखना बहुत ही जरूरी हो जाता है.
शनि की दशाशनि की दशा में व्यक्ति को उसके कर्मों के आधार पर फल प्राप्त होता है. न्याय के देवता होने के कारण शनि देव अपनी दशा में व्यक्ति को उसके अच्छे बुरे कर्मों के आधार पर फल देने का कार्य करते हैं. इसके साथ जन्म कुंडली में शनि की शुभ-अशुभ स्थिति भी प्रभाव पड़ता है.
इन कार्यों को नहीं करना चाहिएशनि की दशाओं में कभी भी निर्धन, रोगी, परिश्रम करने वालों का अपमान नहीं करना चाहिए. इसके साथ ही दूसरों के धन पर लालच करने से बचना चाहिए. पर्यावरण और पशु-पक्षियों को हानि नहीं पहुंचानी चाहिए.
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