Ramal Astrology: भारतीय टेलीविजन के इतिहास में रामायण (Ramayan) और महाभारत (Mahabharat) के बाद यदि कुछ ऐसे भव्य दिव्य और अद्भुत शो आए तो उसमें एक थी नीरजा गुलेरी (Nirja Guleri) की तिलिस्मी प्रेम गाथा चंद्रकांता (Chandrakanta). इस सीरियल में दर्शकों को राजा-महाराजाओं की रंजिश, विश्वासघात, प्रेम और कुर्बानियां समेत कई चीजें देखने को मिली.


चंद्रकांता रामायण और महाभारत की तरह ही ऐसा सीरियल था, जिसे देखने का लोग बेसब्री से इंतजार करते थे और बाकी कामों को टाल दिया करते थे. आपको बता दें कि ‘चंद्रकांता’ को बाबू देवकीनंदन खत्री (Devaki Nandan Khatri) के इसी नाम के उपन्यास पर बनाया गया था. सीरीयल देखने के साथ ही इस उपन्यास को पढ़ने में भी लोगों की खूब रुचि थी.


चंद्रकाता सीरियल में कई किरदार थे, जिसमें एक थे पंडित जगन्नाथ (Pandit Jagannath) जोकि महाविद्वान, ज्योतिष ज्ञाता और खासकर रमल विद्या में पारंगत थे. ये पांसा फेंककर भूत-भविष्य बताया करते थे. पंडित जगन्नाथ राजा शिवदत्त के प्रश्नों का उत्तर देने के लिए पासे का प्रयोग किया करते थे.


वैसे तो टीवी या सिनेमा में कई चीजें काल्पनिक तौर पर भी दिखा दी जाती है. लेकिन आपको बता दें कि रमल विद्या (Ramal Vidya) का गहरा इतिहास रहा है. ज्योतिष शास्त्र (Jyotish Shastra) की कई शाखाएं हैं, जिसमें रमल शास्त्र भविष्य जानने की अद्भुत विद्या है. रमल शास्त्र (Ramal Shastra) या रमल विद्या ज्योतिष की विधि अंकगणितीय संकल्पनाओं पर आधारित है. अंकगणित में प्रत्येक अंक का खास महत्व होता है और इसी संकल्पना ज्योतिष के इस विधि का आधार है.


भविष्य जानने की अद्भुत विधि है रमल विद्या


रमल विद्या ज्योतिष की ऐसी विधि है जिसमें विभिन्न पासों को फेंककर भविष्य से जुड़े प्रश्नों के उत्तर प्राप्त होते हैं. खास बात यह है कि इसमें जन्मकुंडली, माता-पिता का नाम, दिन, वार, समय, पंचांग, ग्रह-नक्षत्रों की गणना तक की आवश्यकता नहीं होती और ना ही इसमें किसी गणित या फिर सूक्ष्म विज्ञान का प्रयोग होता है.


इस विद्या में केवल ब्रह्मांडीय ऊर्जा के द्वारा खास तरह के बिंदुयुक्त पासों के आधार पर उत्तर प्राप्त किए जाते हैं. ज्योतिष में ऐसा माना जाता है कि, ब्रह्मांडीय ऊर्जा हर पल हमें हमारे प्रश्नों के उत्तर देती है और भविष्य में होनी वाली घटनाओं के बारे में आगाह करती है.


रमल ज्योतिष विद्या का विकास और इतिहास


रमल विद्या के विकास को लेकर कई तरह की मान्यताएं हैं. कहा जाता है कि बहुत समय तक भारत में इस विद्या का विकास हुआ. लेकिन मुगलों (Mughals) के आगमन के बाद अरब देशों में रमल विद्या को आश्रय मिला और फिर अरब में ही इसका विकास हुआ. इसलिए रमल ज्योतिष विद्या का विकास अरब से माना जाता है.


इसे अरब में इल्म-ए-रमल कहा जाता है. वहीं कुछ मुसलमान ज्योतिषी रमल विद्या को भारत के प्राचीन बिंदु विज्ञान का भाग मानते हैं, जोकि हजारों सालों से लुप्त है. भारत में रमल विद्या बहुत समय तक विकसित हुई और बाद में दूर-दूर तक फैली. लेकिन काल प्रभाव के कारण भारत में ही इसका महत्व कम हो गया.


रमल विद्या से शिव ने भी पूरी की अधूरी इच्छा


शिवजी (Lord Shiva) जब माता सती की खोज कर रहे थे. तब वे बहुत ही क्रोधित होकर अपने रौद्र रूप में आ गए और इसी रूप से उन्होंने सती को ढूंढने के लिए भैरव (Bhairav) की उत्पत्ति की. भैरव को उन्होंने सती को ढूंढने का आदेश दिया. भैरव ने शिवजी के सामने कुछ बिंदु बनाए और विशेष विधान से बने इन बिंदुओं में सती को ढूंढने को कहा. तब शिव को उन बिंदुओं में सातवें लोक पर सती को देखा. माना जाता है कि इसके बाद से ही बिंदु और रेखा शास्त्र का जन्म हुआ.


रमल शास्त्र में कैसे मिलता है प्रश्नों का सटीक उत्तर


रमल शास्त्र या रमल विद्या में प्रश्नों अनुसार उत्तर जानने के लिए अरबी पासों (कुरा) की आवश्यकता होती है. कुरा को प्रश्नकर्ता के हाथ से एक विशेष क्षेत्र में डाला जाता है. पासे की प्राप्त आकृति और बिंदु से एक प्रस्तार का निर्माण होता है, जिसे अरबी भाषा में जायचा कहा जाता है. जायचा में 16 घर होते हैं. जायचा में 1,5,9 और 13वां घर अग्नि तत्व, 2,6,10,14वां घर वायु तत्व का, 3,7,11 और 15 वां घर जल तत्व का और 4,8,12 और 16 वां घर पृथ्वी से संबंधित होता है. रमल विद्या के अनुसार, कुरा से 16 तरह की आकृति बनती हैं और इसी के आधार पर कुछ विशेष नियमों का पालन करते हुए प्रश्नों का सटीक उत्तर और भविष्य के बारे में जाना जाता है.


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