Guru Nanak Dev Ji Motivational Stories: सिख धर्म के संस्थापक और पहले गुरु, गुरु नानक देव जी थे. आज हम आपको उनसे जुड़ा एक रोचक किस्सा सुनाने जा रहे हैं, जो आपके सोचने समझने के तरीके को बदलकर रख देगा.
एक बार की बात है, जब एक सुबग गुरु नानक देव जी एक गांव में पहुंचे, जहां पहुंचने के बाद उन्होंने देखा कि, गांव का वातावरण शांत था.
गांव का हर व्यक्ति किसी न किसी समस्या के कारण मन से हारा हुआ था. कोई गुरु नानक देव जी को गरीबी की शिकायत कर रहा था, कोई अपने पारिवारिक रिश्तों को लेकर तनाव में था, कोई बीमारी की समस्या से तो कोई किसी न किसी कमी के कारण अपनी जिंदगी को बेकार बता रहा है.
गांव के सभी लोगों को अपना जीवन काफी दुखदायी लगता था.
गुरु नानक देव जी सभी की समस्याओं को सुन रहे थे और शांति से मुस्कुराए, क्योंकि उन्हें किसी के जीवन में समस्या नहीं, बल्कि नकारात्मक मानसिकता नजर आ रही थी. उन्होंने गांववालों से कहा कि, आज हम आप सभी से एक अभ्यास कराएंगे. हर कोई अपने जीवन की सबसे बड़ी समस्या को कागज पर लिखाकर मेरे पास ले आए.
गांव के सभी लोगों उनकी बातों से हैरान हुए लेकिन उन्होंने नानक साहब की बात मान लीं.कुछ ही देर बाद उनके पास सौ से अधिक कागज इकट्ठा हो गए. हर कागज पर दुख, दर्द, डर, अपमान, आर्थिक परेशानी,बीमारी, अकेलापन, पारिवारिक समस्या और मन की जड़ता से जुड़ी बातें लिखी हुई थी.
अब गुरु नानक ने कहा,सभी लोग अपने कागज इस कमरे में रख दो. फिर अंदर आकर अपनी पर्ची छोड़कर दूसरों की पर्ची को पढ़ों.
सभी गांववाले कमरे के अंदर गए. उन्होंने दूसरों के कागज को पढ़ना शुरू किया.
पहला व्यक्ति जो कर्ज की समस्या से जूझ रहा था और उसे ही सबसे बड़ी विपत्ति मानता था, जब उसने दूसरे के बेटे की मौत, लाइलाज बीमारी और घरेलू हिंसा के बारे में पढ़ा, तो काफी हैरत में पड़ गया. उसे लगा मेरी समस्या इससे तो काफी छोटी है.
दूसरा आदमी, जो अपने व्यापार में घाटे को जिंदगी की सबसे बड़ी हार मान रहा था, जब उसे मालूम हुआ कि, एक परिवार बीते तीन सालों से बिना भोजन और कपड़ों के संघर्ष कर रहा है, उसका दिल सिहर गया.
एक-एक करके सभी लोगों ने एक दूसरे के दुख पढ़ें और हर किसी की आंखें खुलती चली गईं. हर किसी को यही लगा कि, भगवान ने उनके हिस्से में चाहे कितनी ही कठिनाई क्यों न दी हो, पर दूसरों की तुलना में यह कम है.
आखिर में गुरु नानक देव जी बोलें-दुनिया में ऐसा कोई भी नहीं है, जिसके पास दुख न हो, लेकिन तुम अपनी चिंता को इसलिए बड़ा मानते हो क्योंकि तुम्हें बाकी लोगों के जीवन के दुखों का ज्ञात नहीं है. दूसरों का दुख तुम्हारे दुख की तुलना में काफी कम है.
उस दिन गांव वालों ने सीखा-समस्याएं बड़ी नहीं, बस नजरिए का फर्क है.
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