Holi 2024 Katha: होली का त्योहार भारत के प्रमुख त्योहार में से एक है. हिन्दू पंचांग के फाल्गुन मास की पूर्णिमा को मनाया जाता है. साल 2024 में होली 25 मार्च, सोमावार के दिन मनाई जाएगी. होली का महत्व रंगों की भरमार. इस खास दिन पर एस्ट्रोलॉजर से जानते हैं इस दिन से जुड़ी महत्वपूर्ण बातें और होली की कथा.


होली का अनुष्ठान एक दिन दही-हांडी, रंगों का खेल और परिवार के संग भोजन के साथ धूमधाम से मनाया जाता है. इसके अलावा, होली की रात को होलिका दहन का अद्वितीय अनुष्ठान होता है, जिसमें भगवान विष्णु की पूजा की जाती है.


होली फाल्गुन मास की पूर्णिमा के अगले दिन मनाई जाती है, जब लोग गुलाल (सूखे रंग), फूल और पानी से होली खेलते हैं. पूर्णिमा के दिन सूर्यास्त के बाद हर चौराहे, कॉलोनी, और मैदान में होलिका जलाई जाती है. इस साल होली सोमवार 25 मार्च 2024 को खेली जाएगी, जबकि होलिका दहन रविवार 24 मार्च 2024 को मनाया जाएगा. होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और कहा जाता है कि इससे समृद्धि और खुशियाँ आती हैं और सभी नकारात्मकता और बीमारियां नष्ट हो जाती हैं.


होली 2024 की तिथि (Holi 2024 Tithi)


होली सोमवार, 25 मार्च 2024 को
रविवार, 24 मार्च 2024 को होलिका दहन



पूर्णिमा तिथि प्रारम्भ – 24 मार्च 2024 को प्रातः 09:54 बजे
पूर्णिमा तिथि समाप्त – 25 मार्च 2024 को दोपहर 12:29 बजे


होलिका दहन 2024 का शुभ समय रात 11:13 बजे से रात 12:27 बजे तक है. 


भारत देश की चारों दिशाओं में, सभी राज्यों में, और भारत के बाहर कई देशों में होली का त्यौहार बड़े धूमधाम से मनाया जाता है. भारतीय नागरिकों के अलावा विदेशी नागरिक भी होली का त्यौहार मनाते हैं. वैष्णव संप्रदाय यानि भगवान विष्णु, भगवान श्री राम एवं भगवान श्री कृष्ण आदि की पूजा करने वाले लोगों के लिए यह एक विशेष दिन होता है. इस दिन कष्टों से मुक्ति और मनोकामना पूर्ति के लिए कई उपाय किए जाते हैं. हम यहां कुछ विशेष और मध्य भारत में सबसे ज्यादा प्रचलित उपायों के बारे में बता रहे हैं. 


होली से जुड़ी कथा (Holi Katha)


एक बार एक राजा हिरण्यकश्यप था. उसने भगवान शिव की पूजा की और वरदान प्राप्त किया कि उसे कोई नहीं मार सकता. भगवान शिव ने उसे वरदान दिया कि उसे कोई भी देवता, भगवान या मनुष्य नहीं मार सकता, उसे घर के अंदर या बाहर नहीं मारा जा सकता, उसे रात में या दिन में नहीं मारा जा सकता. यह वरदान मिलने के बाद, हिरण्यकश्यप ने सोचा कि यह अपरिहार्य है और वह अभिमान से भर गया. उसने सभी को केवल उसकी पूजा करने के लिए कहा, भगवान विष्णु या किसी अन्य देवता की नहीं.


उसका पुत्र प्रह्लाद भगवान विष्णु का बहुत बड़ा भक्त था. उसके पिता ने उसे भगवान विष्णु की पूजा न करने के लिए कहा लेकिन उसने जारी रखा. अब हिरण्यकश्यप इतना क्रोधित हो गया कि उसने अपने ही बेटे प्रह्लाद को प्रताड़ित करना शुरू कर दिया. उसने प्रह्लाद को मारने की कई बार कोशिश की लेकिन वह असफल रहा. एक दिन उसने अपनी बहन होलिका को इसके बारे में कुछ करने के लिए बुलाया. होलिका का शरीर अग्निरोधी था. वह चिता में बैठ गई और प्रह्लाद को अपनी गोद में ले लिया.


प्रह्लाद जप करता रहा और जल्द ही होलिका आग में जल गई और प्रह्लाद बच गया. बाद में भगवान विष्णु ने नरसिंह अवतार लिया और हिरण्यकश्यप का वध किया. इसीलिए होली को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है.


राधा-कृष्ण के शाश्वत प्रेम का होली के प्रारंभिक इतिहास में विभिन्न लोक कथाओं और पुराणों में चर्चा है,  इस उत्सव के दौरान, लोग एक-दूसरे पर रंग फेंककर खुशियों का प्रकटीकरण करते हैं और साथ में मिलकर मिठाई खाते हैं.


यह भगवान कृष्ण और राधा रानी के प्रेम की कहानी है. जब कृष्ण वृंदावन में रहते थे तो वे राधा से प्रेम करते थे. कृष्ण अपने काले-नीले रंग को लेकर असुरक्षित थे जबकि राधा का रंग गोरा था. उनकी माँ ने उन्हें राधा को जो भी रंग पसंद हो, रंगने के लिए कहा. भगवान कृष्ण ने अपना प्रेम दिखाने के लिए राधा को अपने रंग में रंग दिया. राधा पहले से ही कृष्ण से प्रेम करती थीं. तब से उनके प्रेम को हर साल होली पर रंगों और खुशियों के साथ मनाया जाता है.


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