Govardhan Puja Date: हिंदू धर्म में गोवर्धन पूजा का विशेष महत्व माना जाता है. इस पर्व का सीधा संबंध प्रकृति और मानव से है. गोवर्धन पूजा या अन्न कूट का त्यौहार हिंदू कैलेंडर के अनुसार कार्तिक मास में शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा यानि दिवाली के दूसरे दिन मनाया जाता है. यह त्यौहार पूरे भारत में मनाया जाता है लेकिन उत्तर भारत खासकर मथुरा, वृंदावन, नंदगांव, गोकुल, बरसाना में इसकी भव्यता और बढ़ जाती है. 

हर साल दिवाली के अगले दिन कार्तिक मास की शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को गोवर्धन पूजा की जाती है. इस बार कार्तिक माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि 13 नवंबर को दोपहर 02 बजकर 56 मिनट से शुरू होकर समापन अगले दिन 14 नवंबर दिन मंगलवार को दोपहर 02 बजकर 36 मिनट पर होगा. उदया तिथि के अनुसार गोवर्धन पूजा का पर्व 14 नवंबर को मनाया जाएगा.

श्री कृष्ण ने किया था इंद्र के अहंकार का नाश

पौराणिक कथा के अनुसार द्वापर युग में ब्रज में इंद्र की पूजा की जाती थी. श्री कृष्ण ने ब्रजवासियों से कहा कि वर्षा करना तो उनका कर्म और दायित्व है और वह सिर्फ अपना कर्म कर रहे हैं. गोवर्धन पर्वत हमारी गायों का संरक्षण और भोजन उपलब्ध कराते हैं. जिसकी वजह से वातावरण भी शुद्ध होता है. इसलिए हमें इंद्र देव की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए.

श्री कृष्ण की बात को समझते हुए सभी ने गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी शुरु कर दी. जिससे इंद्र क्रोधित हो उठे और मेघों को आदेश दिया की गोकुल का विनाश कर दो. इसके बाद गोकुल में भारी बारिश होने लगी. भगवान श्री कृष्ण ने सभी गोकुल वासियों को गोवर्धन पर्वत के संरक्षण में चलने के लिए कहा. जिसके बाद श्री कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी कनिष्ठिका ऊँगली यानी हाथ की सबसे छोटी उंगली पर उठा लिया और सभी ब्रजवासियों की इंद्र के प्रकोप से रक्षा की.

इंद्र ने अपने पूरे बल का प्रयोग किया लेकिन वो हार गए. जब इंद्र को ज्ञात हुआ कि भगवान श्री कृष्ण विष्णु भगवान का ही अवतार हैं तो उन्हें अपनी भूल का अहसास हुआ और वह भगवान श्री कृष्ण से क्षमा मांगने लगे. तब ही से गोवर्धन पूजा को विशेष महत्व दिया जाता है.

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