Astrology: हर किसी को जीवन में सफलता, श्रेष्ठता और उन्नति के लिए शिक्षा एवं ज्ञान अनिवार्य है. आधुनिक समय में तो इसके लिए उच्च स्तर की शिक्षा, बौद्धिक कुशलता विशेषरूप से अनिवार्य है.


प्रत्येक माता-पिता की इच्छा होती है कि उनकी सन्तान को उच्च शिक्षा प्राप्त हों,क्योंकि उच्च शिक्षा के माध्यम से ही व्यवसाय, काम-काज आदि में सफलता मिल सकती है लेकिन यदि सन्तान मंद बुद्धि है, उसकी स्मरण शक्ति कमजोर है, भूलने का रोग है तो निश्चित रूप से समझिए कि इसका कारण ग्रह बाधा है.  उचित होगा कि इसकी जन्म कुंडली तथा विद्या के मुख्य स्थान पंचमभाव में ग्रहों की स्थिति, उनकी दशा एवं प्रभाव के बारे में जाना जाए.  


साल 2023 शुरू हो चुका है. बोर्ड परीक्षाओं की परीक्षा तिथियां घोषित की जा रहीं हैं. परीक्षाओं का समय मार्च-अप्रैल नजदीक आ रहा है. ऐसे में हमें चिंता उनकी नहीं जो बुद्धि से तेज, शिक्षा, ज्ञान, विद्या को ग्रहण करने में कुशल हैं, बल्कि चिंता उनकी है जिनका शैक्षिणक स्वास्थ्य ठीक नहीं है, मंद बुद्धि के हैं.  कठिन श्रम के बावजूद जिनके दिमाग में कुछ नहीं घुसता है. जो समझाया गया हो, जो पढ़ा-पढ़ाया गया हो वह दिमाग में नहीं ठहरता, वह मंदबुद्धि या भूल जाने वाले रोग के कारण बहुत कम याद रहता है. स्मरण शक्ति कमजोर होने से सब कुछ भूलने लगता है. 


कई बार तो इससे सम्बंध तक प्रभावित होते हैं. परीक्षा में असफल या अनुतीर्ण होने के आघात तथा ग्लानि से पीड़ित कुछ छात्र-छात्राओं द्वारा की जाने वाली आत्महत्या की घटनाएं दिल दहला देती हैं. सभी को यह पता नहीं होता कि यह स्मरण शक्ति कमजोर होने या भूलने का रोग है.


बुध की खराब स्थिति स्मरण शक्ति को करती है कमजोर


अगर ज्योतिष शास्त्र की दृष्टि से देखा जाए तो यह किसी छात्र-छात्रा की कुंडली के 12वें भाव तथा 12वीं राशि का प्रभावित होना इस रोग को जन्म देता है.  कुंडली का पांचवां भाव, पंचमेश ग्रह की स्थिति भी कई बार इस समस्या को जन्म देती है. किसी की कुंडली में मंगल या सूर्य का बारहवें या पांचवें भाव में होना भी मंदबुद्धि या भूल जानें वाले रोग को जन्म दे सकता है.


बुध की खराब स्थिति भी स्मरण शक्ति को कमजोर करती है. बुध का बारहवें भाव में विराजमान होना भी भूलने वाले रोग को जन्म दे सकता है. इसी तरह लग्नेश का छठे, आठवें या बारहवें भाव में जाना भी इस रोग की ओर इशारा करता है.  बारहवें भाव का स्वामी ग्रह अगर खराब स्थिति में हो, उस पर राहु, मंगल या सूर्य की दृष्टि पड़ रही हो तो भी व्यक्ति की स्मरण शक्ति कमजोर हो जाती है.


राहु का 12वां और पंचम भाव का प्रभाव


राहु का किसी जातक की कुंडली के बारहवें या पांचवें भाव में विराजमान होना भी इस रोग को जन्म दे सकता है. अगर किसी की कुंडली में बारहवें भाव में चन्द्रमा या गुरू विराजमान हो तो यह अच्छी स्मरण शक्ति की ओर इशारा करते हैं. बारहवें भाव में शुक्र का आना भी अच्छी स्मरण शक्ति प्रदान कर सकता है. अगर किसी की कुंडली में बुध या गुरू अस्त हों तो ऐसे लोग अकसर कमजोर स्मरण शक्ति का शिकार हो सकते है.  बारहवें भाव में अग्नि तत्व के ग्रह के आने पर अकसर यह समस्या जन्म ले सकती है.  कुंडली में लग्न भाव, पंचम भाव या बारहवें भाव में अगर कोई ग्रह नीच राशि में हो तब भी यह रोग उत्पन्न हो सकता है. 


ग्रहों की इस स्थिति से स्मरण शक्ति होती है कमजोर


अगर कुंडली के पांचवें भाव में मंगल विराजमान हो तथा बुध भी पीडि़त अवस्था में हो तब स्मरण शक्ति कमजोर होने की बहुत ज्यादा आशंका रहती है. अगर किसी की कुंडली में बारहवें भाव में कई ग्रह विराजमान हों, साथ में चन्द्रमा, बृहस्पति पीड़ित हो रहे हों तब भी यह रोग अपनी जगह बना सकता है. दो से अधिक पापी ग्रहों का लग्न में आना भी इस रोग को जन्म देता है. अमावस्या का जन्म हो, लग्न तथा लग्नेश भी पीडि़त अवस्था में हों तथा छठे भाव का स्वामी ग्रह बलवान अवस्था में हो तब भी स्मरण शक्ति कमजोर होने का रोग होने की बहुत ज्यादा संभावना बनती है. 


ग्रहों की इन स्थिति में बच्चों की बुद्धि होती है तेज


ज्योतिषीय मतानुसार जन्म कुंडली के पंचम भाव से शिक्षा का विचार किया जाता है.  पंचम भाव तथा पंचमेश की स्थिति जितनी अच्छी होगी, बच्चे की शिक्षा भी अच्छी होगी.  पंचम भाव में शुभ ग्रह हो, पंचम भाव पर शुभ ग्रहों की दृष्टि हो, पंचमेश शुभ भाव में बैठा हो, पंचम भाव का कारक ग्रह भी पंचम भाव या किसी भी केन्द्र या त्रिकोण में हों तो बच्चे की शिक्षा भी उतनी ही उच्च दर्जे की होती है. 


ग्रहों की ये स्थिति बनाती है मंद बुद्धि


इसके विपरीत यदि पंचम भाव में पाप ग्रह मौजूद हों, पंचम भाव पाप ग्रहों से घिरा हो, पंचमेश पाप प्रभाव में या छठे, 8वें, 12वें भाव में हो तो विद्या में बाधा आती है.  किसी भी भाव का स्वामी यदि व्यय भाव में बैठ जाए तो शिक्षा में कमी रहती है. हालांकि शिक्षा का विचार करते समय गुरू की स्थिति भी देखना चाहिए. यदि पंचम भाव में गुरू उच्च का होकर वक्री हो गया हो तो उसका उच्चत्व समाप्त हो जाता है तथा वह साधारण हो जाता है.


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