Profitable Farming: बाढ़, बारिश और सूखा किसानों की फसलों को बर्बाद कर देता हैं. ऐसे में किसान हमेशा कोशिश करते हैं कि लागत के सापेक्ष अधिक मुनाफा देने वाली फसलों की बुआई की जाए. इससे चंद सालों में किसानों की आर्थिक स्थिति मजबूत हो जाती हैं. आज हम उन खेती के बारे में जानने की कोशिश करते है, जिनसे किसान मुनाफा अधिक ले सकते हैं.


मोटे फायदे का सौदा है मशरूम की खेती 
बिहार, झारखंड में मशरूम की खेती बड़े पैमाने की जाती हैं. विशेषज्ञ बताते हैं कि मशरूम की खेती यदि ढंग से की जाए तो इसमें मोटा मुनाफा है. लागत यदि एक लाख रुपये है तो कमाई 10 गुना यानि 10 लाख रुपये तक हो जाती है. मशरूम की खेती अक्टूबर से मार्च के बीच की जाती है. मशरूम बनाने के लिए गेहूं या चावल के भूसे का कुछ केमिकल्स के साथ मिलाकर 6 महीने में कपोस्ट तैयार किया जाता है. ठोस जगह पर 6 से 8 इंच मोटी परत बनाकर मशरूम के बीज लगा दिए जाते हैं. इस प्रक्रिया को स्पॉनिंग कहा जाता है. बाद में बीजों को कंपोस्ट से ढक दिया जाता है. 40 से 50 दिन में मशरूम को काटकर बेच सकते हैं. इसमें रोज मशरूम होंगे और रोज ही बेचा जा सकेगा. मशरूम के लिए अधिक बजट की जरूरत नहीं होती है. एक किलो मशरूम के उत्पादन में 25 से 30 रुपये खर्चा आता है, जबकि बाजार में मशरूम 250 से 300 रुपये किलो के हिसाब से बिक जाता है. अच्छे होटल, मॉल में 500 रुपये प्रति किलोग्राम तक कीमत मिल जाती है. अक्टूबर से मार्च के बीच इसकी खेती की जाती है. मशरूम के अलावा अन्य खेती के बारे में भी जान लेते हैं.


चंदन की खेती
चंदन की खेती पूरी तरह से लीगली होती है. इसके लिए वन विभाग से लाइसेंस लेना होता है. कितने बीघा में चंदन की जा रही है. बुवाई और उत्पादन की सारी स्थिति डिपार्टमेंट को बतानी होती हैं. चंदन के एक पेड़ से किसान 5 से 6 लाख रुपये तक की कमाई कर सकते हैं. एक एकड़ में करीब 600 चंदन के पौधे लगाए जा सकते हैं. यदि 12 साल में इन पेड़ों से कमाई का आंकड़ा जोड़ें तो 20 से 30 करोड़ रुपये कोई भी किसान आसानी से कमाई कर सकता है. चंदन का पौधा परजीवी होता है. इसके साथ एक होस्ट पौधा लगाना जरूरी होता है, ताकि चंदन सर्वाइव कर ले. इस पौधे को किसी भी मौसम में लगाया जा सकता है. चन्दन की खेती सबसे अधिक महाराष्ट्र,गुजरात, मध्यप्रदेश और राजस्थान में होती है. 


ईसबगोल की खेती 
भारत में ईसबगोल की खेती उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात,हरियाणा और पंजाब में होती है. यह औषधीय गुणों से भरपूर है. पेट की बीमारी में इसे दवा के तौर पर प्रयोग किया जाता है. केंद्र व स्टेट गवर्नमेंट इसबगोल की खेती करने के लिए सब्सिडी देती है. किसान ईसबगोल की खेती से कर अच्छा मुनाफा कमा सकते है. इसकी औसतन पैदावार प्रति हेक्टेयर करीब 10 से 12 क्विंटल होती है. इसके अलावा दानो से मिलने वाली भूसी करीब 20  से 30  प्रतिशत मिल जाती है. इसके दाने और भूसी का भाव अलग अगल है. दानें 8 हजार रुपये प्रति किलो तक बिक जाते हैं. वहीं, ईसबगोल की कीमत इसकी मांग के आधार पर तय होती है. 



एलोवेरा की खेती
एलोवेरा का इस्तेमाल सौन्दर्य प्रसाधन बनाने वाली चीजों में सबसे अधिक होता है. कुछ लोग इसका प्रयोग दवा के तौर पर भी करते हैं. इसी कारण बाजार में इसकी मांग बहुतत अधिक होती है. एक बार लगाने पर 5 साल तक इस पौधे से कमाई कर सकते हैं. एक एलोवेरा पौधा से तीन से 4 महीने में बेबी प्लांट देता है. बेबी प्लांट को दूसरी जगह बोया जा सकता है. एलेावेरा की अच्छी उपज के लिए रेतीली भूमि अधिक उपयोगी है. इसकी लोकप्रिया प्रजातियों में बार्बाडेन्सीस शामिल हैं. एक बीघा खेत में किसान 12 हजार पौधे लगा सकते हैं. एक पौधे की कीमत लगभग 4 रुपये होती है. एक बीघा पर 40 हजार रुपये तक का खर्चा आ जाता है. अब कमाई की बात करें तो एक एलोवेरा पर साढ़े तीन किलोग्राम तक के पत्ते हो जाते हैं. एक पौधे पर करीब 18 पत्ते हो जाते हैं. एक पत्ते की कीमत 5 से 6 रुपये होती है. इस तरह एक पौधा करीब 90 से 100 रुपये में बिक जाता है. 40 हजार के पौधे लगाकर किसान 8 से 10 लाखा की कमाई कर सकता है.



Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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