Millet Cultivation: पूरी दुनिया साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष के तौर पर मना रही है. कईयों के लिए मिलेट, मोटा अनाज या श्री अन्न शब्द एकदम नए ही होंगे, लेकिन भारतवर्ष में युगों-युगों से मोटा अनाज उगाया जा रहा है. कई पुराणों में इसका वर्णन मिलता है. देश के अलग-अलग इलाकों में किसानों की कई पीढ़िया मोटा अनाज उगा रही हैं, हालांकि आधुनिक दौर में गेहूं-चावल की बढ़ती खपत के बीच मोटा अनाज हमारी थालियों से गायब हो गया था, लेकिन अब इसे वापस लाने की कवायद चल रही है. हमारे देश को ही मोटे अनाज के सबसे बड़े उत्पादन का खिताब प्राप्त है, लेकिन पिछले कुछ साल में खपत काफी कम है, जिसे बढ़ाने के लिए जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं.


देश के लाखों किसान भी मिलेट अभियान से जुड़ रहे हैं और कम लागत में मोटा अनाज उगाकर अच्छी आय ले रहे हैं. हाल ही में मोटा अनाज को श्री अन्न के तौर पर पहचान मिली है. आज हम आपको एक ऐसे किसान से मिलवाएंगे, जो देश में मोटा अनाज की उपयोगिता बढ़ाने में अहम रोल अदा कर रहे हैं.


4 बीघा खेत से 23 क्विंटल उत्पादन
यूपी में आम उत्पादन के लिए मशहूर मलीहाबाद में श्री अन्न की धाक जम रही है. यहां के भतोइया गांव के किसान रणधीर सिंह अपनी 4 बीघा जमीन से सर्वाधिक ज्वार का उत्पादन लेने के कारण चर्चा का विषय बने हुए हैं.


खबरों की मानें तो हर साल रणधीर सिंह अपनी 4 से 5 बीघा जमीन पर ज्वार उगाते हैं, जिससे परिवार के 22 सदस्यों का पालन पोषण हो रहा है. वर्षों से परंपरागत खेती करते आ रहे रणधीर बताते हैं कि ज्वार की खेती में गेहूं-धान के मुकाबले एक-चौथाई खर्च आता है और फायदे भी कहीं ज्यादा होते हैं.


वो बताते हैं कि इस खेती से अच्छी आमदनी हो जाती है, जिससे प्रेरणा लेकर गांव के दूसरे किसान भी अब ज्वार उत्पादन की ओर रुख कर रहे हैं.


इस कीमत पर बिक जाता है ज्वार
श्री अन्नदाता रणधीर सिंह बताते हैं कि पिछले साल जून में अपनी चार बीघा जमीन पर ज्वार की बुवाई की थी, जिसके बाद अक्टूबर के पहले सप्ताह में फसल पककर कटाई के लिए तैयार हो गई. इस उपज को बेचने के भी दो तरीके हैं, जब सरकार नहीं खरीदती तो खुले बाजार में 18 से 20 रुपये प्रति किलोग्राम के भाव ज्वार बेच दिया जाता है.


पिछले साल भी रणधीर सिंह ने 20 क्विंटल ज्वार बेच दिया और अगली खेती के लिए कुछ बीजों का भी संरक्षण किया है. ये बीज भी बाजार में 80 से 100 रुपये प्रति क्विंटल के भाव बिक जाते हैं. 


रणधीर सिंह का कहना है कि यदि सरकार आर्थिक तौर पर प्रोत्साहन देगी तो ज्वार का रकबा बढ़ाने के लिए भी तैयार हैं. बता दें कि ज्वार, बाजरा, मक्का की खेती रबी सीजन यानी सर्दी में की जाती है और इसका सेवन भी सर्दी में किया जाता है.


श्री अन्न की तासीर गर्म होती है, इसलिए गर्मियों में इसका सेवन कम ही किया जाता है, लेकिन मिलेट का दाना और चारा पशुओं के लिए सालभर संतुलित आहार के तौर पर काम करता है.


श्री अन्न को लेकर क्या है सरकार की योजना
बजट 2023-23 में मोटा अनाज को श्री अन्न के तौर पर पहचान मिली है. इसके उत्पादन और उपभोग को बढ़ाने के लिए श्री अन्न योजना की भी शुरुआत की गई है. भारत के ही प्रस्ताव पर संयुक्त राष्ट्र ने साल 2023 को अंतर्राष्ट्रीय मिलेट ईयर घोषित किया है.


अब सरकार का मेन फोकस है मिलेट उत्पादन के साथ-साथ इसके इस्तेमाल को भी प्रोत्साहित करना, जिसके लिए अलग-अलग राज्यों में अगले 5 साल के अंतर्गत किसानों को मिलेट के उन्नत बीजों का निशुल्क वितरण किया जाएगा.


श्री अन्न की खरीद के लिए हर ब्लॉक में खरीद केंद्र चिन्हित किए जाएंगे, ताकि किसानों को बिक्री में किसी भी तरह की समस्या ना आए. वैसे तो मिलेट की उत्पादन लागत कम ही है, लेकिन उत्पादन बढ़ाने के लिए वैज्ञानिक कार्यशालाएं आयोजित करने की प्लानिंग है. किसान पाठशालाओं में भी मोटा अनाज की वैज्ञानिक खेती के प्रशिक्षण से लेकर भंडारण तक की जानकारी किसानों तक पहुंचाने की योजना है.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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