Organic Farming: कैमिकल उर्वरकों-कीटनाशकों की बढ़ती लागत और पर्यावरण को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए अब किसान जैविक खेती और प्राकृतिक खेती का मंत्र अपना रहे हैं. इस काम में केंद्र और राज्य सरकारों की तरफ से तकनीकी और आर्थिक मदद भी मिल रही है, लेकिन किसानों का मानना है कि ये शुरुआती नुकसान की भरपाई के लिए काफी कम है, क्योंकि रसायनिक खेती छोड़कर पूरी तरह जैविक खेती या प्राकृतिक खेती अपनाने पर शुरुआत में उत्पादन से जुड़े कई रिस्क रहते हैं. इस मॉडल से अच्छा उत्पादन हासिल करने के लिए खेती मे समय का इनवेस्टमेंट बेहद आवश्यक है और इसी रिस्क को लेने से किसान कतराते हैं, इसलिए किसानों को उम्मीद हैं कि यूनियन बजट 2023 में पर्यावरण अनुकूल खेती को बढ़ावा देने के लिए सरकार की तरफ से आर्थिक मदद की राशि को बढ़ाया जाना चाहिए.


इसका फायदा यह होगा कि कम लागत में भी खेती करके किसानों को जैविक खेती और प्राकृतिक खेती का रकबा बढ़ाने में मदद मिलेगी. बेशक शुरुआत में पैदावार का कुछ रिस्क रह सकता है, लेकिv आर्थिक मदद बढ़ने से किसानों का मनोबल भी बढ़ जाएगा.  


इन दिनों देश-विदेश में जैविक फल, सब्जी, अनाजों की मांग बढ़ रही है, जबकि रकबा 40 लाख हेक्टेयर है. सरकार प्राकृतिक खेती पर भी पूरा फोकस कर रही है, जिसका रकबा अभी 8 लाख हेक्टेयर तक ही सीमित है. यदि इसे बढ़ावा देना है तो किसानों को आर्थिक सुरक्षा की गांरटी देना बेहद जरूरी है.


यह इसलिए भी जरूरी है कि क्योंकि जलवायु परिवर्तन के दुष्परिणामों से खेती में नुकसान बढ़ गया है. कई किसान खेती छोड़कर दूसरी गतिविधियों से जुड़ रहे हैं.आधुनिकता का दौर है तो नौकरी के लिए शहरों की तरफ पलायन कर रहे हैं.


इस बीच सिर्फ खेती को ही बचाना तो बड़ी चुनौती है ही, मिट्टी और इंसानों की सेहत की बेहतरी के फ्यूचर प्लान को एक्जीक्यूट करना भी अपने आप में बड़ा काम है, जिसे किसानों को आर्थिक और तकनीकी सहयोग देकर आसान बनाया जा सकता है.


सिर्फ बातों में ना रह जाए प्राकृतिक खेती
जानकारों का कहना है कि पिछले दिनों सरकार ने उर्वरकों पर सब्सिडी की दरों को बढ़ा दिया है, जिसका लाभ किसानों को मिल रहा है और खेती में रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करना भी आसान और सस्ता हो गया है तो किसान जैविक खेती और प्राकृतिक खेती करने का रिस्क क्यों ही लेंगे.


यदि किसानों को ऑर्गेनिक और नेचुरल फार्मिंग के मॉडल से जोड़ना है तो भाषणों से आगे निकलकर सब्सिडी, इंसेंटिव और तकनीकी मदद उपलब्ध करवाने के बारे में सोचना होगा, क्योंकि अभी किसानों के मन में जैविक-प्राकृतिक खेती से उत्पादन कम होने का चिंता कायम है.


बेशक विज्ञान कई सारी चिंताओं का खंडन करता है, लेकिन बिना फाइनेंशियल सपोर्ट के एकदम पर्यावरण अनुकूल खेती को अपनान किसानों के लिए आसान नहीं है. यदि यूनियन बजट-2023 में पारंपरिक कृषि पद्धतियों को अपनाने के लिए मदद का ऐलान हो जाए तो किसान खुद ही आगे आकर इससे जुड़ने लगेंगे. 


इस मॉडल से मिल सकती है मदद
जानकारी के लिए बता दें कि केंद्र सरकार की परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत देश में नेचुरल और ऑर्गेनिक फार्मिंग को प्रमोट किया जा रहा है. इस योजना की सब-स्कीम जीरो बजट प्राकृतिक खेती के तहत 12,200 रुपये हेक्टेयर की मदद का भी प्रावधान है, जो 3 साल के लिए दिया जाता है.


इसी के साथ-साथ यदि सरकार हरियाणा सरकार के प्राकृतिक खेती के मॉडल पर काम करेगी तो देश में नेचुरल उत्पादन को बढ़ाया जा सकता है. दरअसल, प्राकृतिक खेती का रकबा बढ़ाने  के लिए हरियाणा सरकार ने 3 साल तक नुकसान होने की  स्थिति में भरपाई करने का ऐलान किया है.


ऐसी स्थिति में जब इंसेंटिव, सब्सिडी या कॉपनसेशन के जरिए घाटे की भरपाई हो ही जाएगी तो किसान भी चिंतामुक्त होकर प्राकृतिक खेती को अपनाने के लिए आगे आएंगे.


जैविक-प्राकृतिक उत्पादों की ब्रांडिग की आवश्यकता
बिजनेस लाइन की रिपोर्ट के मुताबिक, कृषि मंत्रालय ने प्राकृतिक खेती पर राष्ट्रीय मिशन को लॉन्च तो कर दिया है, लेकिन अभी इसके क्रियान्वयन के लिए 2,481 करोड़ रुपये के प्रस्ताव को मंजूरी मिलनी बाकी है.


बता दें कि इस मिशन को चालू वित्त वर्ष से 2025-26 तक लागू किया जाना है, जिसका लक्ष्य 7.5 लाख किसानों को 7.5 लाख हेक्टेयर में कैमिकल मुक्त प्राकृतिक खेती से जोड़ना है. इस स्कीम के तहत भी किसानों को प्राकृतिक खेती पर स्विच करने के बाद आय में हानि के आधार पर (2025-26 तक) अधिकतम 15,000 रुपये/हेक्टेयर की मदद का प्रावधान है.


अधिकारियों का कहना है कि 7.5 लाख किसानों को नामांकित करने में ही कम से कम 4 साल का समय लग जाएगा, क्योंकि किसानों की क्षमता निर्माण की पूरी प्रक्रिया, क्लस्टर के गठन, प्राकृतिक उपज के प्रमाणन और एफपीओ के रूप में संगठित करने में ही काफी समय लग जाता है.


प्रमाणन के बावजूद प्राकृतिक और जैविक उत्पादों में लोगों को विश्वास बढ़ाने के लिए ब्रांडिंग की भी आवश्यकता होगी. जैसे आज अच्छी ब्रांडिंग वाले जैविक उत्पादों का ही विदेशों में निर्यात होता है.


यदि प्राकृतिक खेती को भी विश्वव्यापी बनाना है कि इसके निर्यात के लिए ब्रांडिंग और वैल्यू एडिशन पर भी जोर देना होगा, ताकि लोगों को मन में कोई भ्रम ना रहे, उपज को बाजार में पसंद किया, ताकि किसानों के अच्छे दाम मिल सकें. इसी से प्राकृतिक खेती का रकबा बढ़ाने में  मदद मिलेगी.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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