Top Varieties of Manure & Fertilizer: खेती में बेहतर उत्पादन (Crop Production) लेने के लिये खाद और उर्वरकों (manure & Fetilizers)का प्रयोग किया जाता है. इनसे पौधों को पोषण, अच्छी बढ़वार और क्वालिटी उपज लेने में खास मदद मिलती है. खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल करने से पहले ये जानना जरूरी है कि उर्वरकों का इस्तेमाल फसल और मिट्टी की जरूरतों के हिसाब से करना चाहिये. भारत में कई प्रकार की खाद और उर्वरकों का इस्तेमाल फसल में किया जाता है, जिनमें सबसे ज्यादा उपयोगी उर्वरकों का जानकारी यहां दी जा रही है.


फिश इमल्शन और हाइड्रोलाइज्ड लिक्विड फिश
ये उर्वरक मछली और इनके बायो एंजाइम्स की मदद से बनाये जाते हैं, जिसमें एसिड ट्रीटमेंट विधि का प्रयोग किया जाता है. इस प्रोसेस से बदबूदार प्रोडक्ट बनता है, जिसे फिश इमल्शन कहते हैं. बता दें कि ये ही बदबूदार उर्वरक सूक्ष्म पोषण तत्वों से भरपूर होता है, जिसमें नाइट्रोजन, फॉस्फोरस और पोटेशियम यानी एनपीके क्रमश 5:2:2 के अनुपात में होते हैं. इसके इस्तेमाल से मिट्टी और में पोषण की कमी को पूरा कर सकते हैं.




 
बोन मील (Bone Meal)
बोन मील को उच्च फास्फोरस उर्वरक कहते हैं, जो जानवरों की हड्डियों से बनाया जाता है. इस उर्वरक के जरिये फसल में फास्फोरस और कैल्शियम की कमी को पूरा कर सकते हैं. हालांकि इस उर्वरक से पौधों तक पोषण पहुंचने में कुछ महीने लग जाते हैं. इसका इस्तेमाल करने से पहले मिट्टी की जांच और विशेषज्ञों की सलाह जरूर लेनी चाहिये.


कंपोस्ट (Compost)
कंपोस्ट को जैविक और कार्बनिक पदार्थों के मिश्रण से बनाया जाता है, जिससे मिट्टी को पोषण तो मिलता ही है, साथ ही उसमें पानी को सोखने की क्षमता भी बढ़ती है. कंपोस्ट को खाद या बायोसॉलिड्स से बनाया जाता है, इसमें लवण की मात्रा ज्यादा होती है, जिससे पौधे झुलस सकते हैं, लेकिन जैविक तरीके से बनी कंपोस्ट खाद में ये समस्या भी नहीं आती, इसलिये भारत में ज्यादातर किसान कंपोस्ट खाद का प्रयोग करते हैं.




कॉटनसीड मील (Cottonseed Meal)
ये नाइट्रोजन के भरपूर पोषण वाला उर्वरक है, जिसे बिनौला मील भी कहते हैं. वैसे तो कॉटनसील मील को फसल पोषम का बेहतरीन स्रोत होते हैं, लेकिन इस मिट्टी में पूरी तरह मिलने में कुछ महीने का समय लग जाता है. इसलिये फसल में थोड़ी-थोड़ी मात्रा में इसका बुरकाव किया जाता है. इस उर्वरक के साथ कीटनाशकों का इस्तेमाल भी किया जाता है.


अल्फाल्फा मील (Alfalfa Meal)
मिट्टी की समस्याओं को दूर करके अल्फाल्फा मील फसलों में पोषक तत्वों की कमी को पूरा करती है. खेतों में इसकी ट्रेसिंग करने के बाद मिट्टी में मिलने के लिये काफी समय लगता है , लेकिन मृदा रोगों के निदान के लिये अल्फाल्फा मील काफी असरकारी उर्वरक है.




जीवामृत (Jeevamrit) 
प्राकृतिक खेती करने वाले किसानों के लिये जीवामृत किसी अमृत से कम नहीं है. यो सही मायनों में फसल के लिये संजीवनी का काम करता है. जीवामृत को सबसे सस्ता और देसी उर्वरक भी कहते हैं, जिसे बनाने में किसी कैमिकल का प्रयोग नहीं किया जाता है, फिर भी इसके इस्तेमाल से फसलों को कैमिकल से ज्यादा शक्ति मिलती है. इसे गुड़, गौ मूत्र, गाय के गोबर, बेसन, मिट्टी और नीम से बनाया जाता है.


देसी खाद (Manure)
फसल पोषण के रूप में प्रयोग देसी खाद का प्रयोग युगों-युगों से खेती में किया जा रहा है. भारत में खाद बनाने के लिये गाय, भैंस, बकरी, मुर्गी आदि के अपशिष्ट-गोबर का प्रयोग किया जाता है. विशेषज्फञों की मानें तो फसलों से अच्छा उत्पादन लेने के लिये हमेशा 180 दिन पुरानी खाद का ही प्रयोग करना चाहिये. पुरानी खाद वो सभी जरूरी पोषक तत्व होते हैं, जो पौधों के विकास में सहायक होते हैं. 




 


नीम लेपित यूरिया (Neem Coated Urea)
फसल में नाइट्रोजन की कमी को पूरा करने में नीम लेपित यूरिया का बड़ा योगदान है. नीम की कोटिंग के कारण इसमें नीम का पोषण भी शामिल हो जाता है, जो फसल की सुरक्षा और विकास में मदद करते हैं. फसलों में इसका प्रयोग पूरा तरह से सुरक्षित है, लेकिन इसका इस्तेमाल फसलों की जरूरत के हिसाब से ही करना चाहिये.



Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. ABPLive.com किसी भी तरह की जानकारी की पुष्टि नहीं करता है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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