Cow Dung: भारत में युगों-युगों से गाय पालन का चलन है. इस पशु में हिंदू देवी-देवताओं का वास माना जाता है. गाय के दूध में तमाम औषधीय गुण होते हैं, जो इंसान को स्वस्थ और निरोगी काया का वरदान देते हैं. गांव में गाय पालन का चलन बढ़ रहा है. सरकार भी देसी गाय पालन को प्रमोट कर रही हैं. इसी से जोड़कर जीरो बजट प्राकृतिक खेती का मॉडल इजाद किया गया है, जिससे खेती की लागत को कम किया जा सके. इस काम में गाय का गोबर और गौमूत्र काफी मददगार हैं. प्राकृतिक खेती के लिए इन्हीं से जैविक खाद और उर्वरक बनाए जाते हैं, जो मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बेहतर बनाने में मदद करते हैं.


आज गोबर से पेंट, दिए, खाद, अर्क, दंत मंजन, साबुन, सजावट के सामान, माला, चूड़ियां और ना जाने कितने ही उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं. रसोई में जलने वाले चूल्हे की गैस भी अब गोबर आधारित बायोगैस प्लांट से मिल जाती है.


कुछ समय पहले हुई एक रिसर्च से यह भी पता चला है कि पानी की अशुद्धियां दूध करने में भी गोबर का अहम रोल है. यह पानी से कैमिकल और हैवी मैटल्स को बाहर निकालकर दोबारा इस्तेमाल करने लायक बना सकता है.


पानी से बाहर निकल जाएंगे हैवी मैटल
आइआइटी-आइएसएम के साइंटिस्ट ने गाय के गोबर से ऊर्जा भंडारण करने वाले तकनीक इजाद की है, जो पानी का शोधन भी करेगी. दरअसल, इस तकनीक से पानी में मौजूद कैमिकल और हैवी मैटल्स को बाहर निकाला जा सकता है.


अपनी रिसर्च में वैज्ञानिकों ने पाया कि पानी से भारी धातु और कैमिकल का निस्तारण करने में गोबर बेहद अनुकूल है, जिसका इस्तेमाल प्राकृतिक ऊर्जा भंडारण में किया जा सकता है. इस रिसर्च  के लिए कई जगहों से गोबर के नमूने इकट्ठा किए गए और सुखाने के बाद उनसे पानी को प्यूरिफाई करने का काम किया गया.


जहरीले पानी का फिर होगा इस्तेमाल
गोबर से ऊर्जा भंडारण और जल शोधन को मुमकिन बनाने वाली इस रिसर्च का नेतृत्व करने वाले वैज्ञानिक और आइआइटी के इंवायरमेंट इंजीनियरिंग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर बृजेश कुमार मिश्रा के बताया कि औद्योगिक कार्यों में इस्तेमाल होने वाले पानी में कई विषाक्त पदार्थ और हैवी मैटल्स होते हैं.


इनमें कैडमियम सीडी, सीआर (क्रोमियम), पीबी (लीड), एनआइ (निकल), सीयू (कापर), जेडएन (जस्ता) आदि की काफी मात्रा होती है. वहीं उद्योगों से निकलने वाले हैवी मैटल्स के कारण पानी में लेड की मात्रा 500 मिलीग्राम प्रति लीटर तक हो जाती है.


इसके अलावा, डाई निर्माण धुलाई से 38.4 मिलीग्राम प्रति लीटर जिंक, टेक्सटाइल मिल से कपड़ा निर्माण के जरिए 45.58 मिलीग्राम/लीटर कापर अपशिष्ट और पेंट और पेपर मिल निर्माण उद्योग से 35.4 मिलीग्राम प्रतिलीटर पेपर मिल और पेंट निर्माण उद्योग से क्रोमियम को सीधा पानी में छोड़ दिया जाता है. 


वैज्ञानिकों ने अपनी रिसर्च में पाया कि गाय के गोबर में फास्फोरस, नाइट्रोजन और कार्बन जैसे कई खनिज पदार्थ होते  हैं, जो लिग्निन, सेल्यूलोज और हेमिकेलुलोज से निकलकर जहरीले पानी की साफ-सफाई करते हैं. एक बार गोबर से जल का शोधन हो जाए तो फिर इस पानी का इस्तेमाल घर पर भी किया जा सकता है. 


इन देशों में भी हो रहा इस्तेमाल
जाहिर है कि उद्योग धंधों से भी बड़ी मात्रा में दूषित पानी निकलता है, जो बाद में जमीन के अंदर जाकर जीवांशों को खत्म कर देता है, लेकिन यदि गोबर का सही इस्तेमाल किया जाए तो औद्योगिक कार्यों में ऊर्जा की बचत की जा सकती है, बल्कि पानी को भी रिसाइकल करके इस्तेमाल किया जा सकता है. भारत के अलावा, बांग्लादेश और मलेशिया भी गोबर की अहमियत समझते लगे हैं. भारत की तरह ही इन देशों ने भी गोबर और इससे बने उत्पादों को अपनाया है. 


गाय के गोबर से ऊर्जा
भारत में बड़े पैमाने पर पशुपालन किया जाता है. ये ग्रामीण अर्थव्यवस्था को आर्थिक मजबूती प्रदान करता है. गांव में हर बड़े मवेशो से 9 से 15 किलोग्राम तक गोबर मिल रहा है, जिसका इस्तेमाल सिर्फ खेती में हो रहा है, लेकिन इस गोबर का सही इस्तेमाल सुनिश्चित किया जाए तो ना जाने कितने ही गांव अपनी रसोई गैस का उत्पादन खुद कर सकते हैं.


गोबर पर हुई एक रिसर्च के मुताबिक, इसका इस्तेमाल ऊर्जा भंडारण में भी किया जा सकता है. इसके लिए वैज्ञानिकों ने पानी के शोधन वाली रिसर्च के दूसरे चरण में गोबर से मिले अधिशोषक का इस्तेमाल करके ऊर्जा भंडारण उपकरण के तौर पर प्रयोग होने वाले इलेक्ट्रोड का विकास किया.


वैज्ञानिकों ने बताया कि ऊर्जा भंडारण करने वाले इस उपकरण को अपशिष्ट पदार्थों से बनाया जा सकता है, जो सस्ता तो होगा ही, इसके साथ सोलर पैनल को भी जोड़ा जा सकेगा, जिससे गांव में रौशनी बढ़ेगी और पर्यावरण को भी लाभ होगा.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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