Herbal farming of Turmeric: भारत में हल्दी इस्तेमाल मसालों के साथ-साथ हर्बल दवाईयां और कॉस्मेटिक बनाने में किया जाता है. यही कारण है कि भारत में इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है. साथ ही कुछ किसान हल्दी को सह-फसल के रूप में भी उगाते हैं. फिल्हाल मानसून की सीजन चल रहा है, जहां बारिश के बीच हल्दी की बुवाई करना लाभकारी माना जाता है. विशेषज्ञों की मानें तो मई-जुलाई के बीच मेड़ बनाकर हल्दी की खेती करके डबल उत्पादन लिया जा सकता है.



  • हल्दी की अच्छी फसल के खेतों में जल निकासी की व्यवस्था कर लें, जिससे खेत में जल भराव से फसल को नुकसान न हो पाये.

  • हल्दी की बुवाई के लिये पहले उसके कंद में अंकुरण कर लें और फसल के थोड़ा पकने पर मिट्टी चढ़ाने का काम कर लें.

  • वैसे तो हल्दी की फसल में नमी बनाये रखना पहुंच जरूरी है, लेकिन फलों के बागों में पेड़ की छाया के बीच इसकी खेती करने पर ज्यादा पानी की जरूरत नहीं होती.


बीजों का चयन
हल्दी की खेती से अच्छा उत्पादन लेने के लिये जरूरी है कि उन्नत किस्म के बीजों का ही चुनाव करें, जिससे फसल में कीड़े और बीमारियों की संभावना न रहे. अकसर देखा जाता है कि कमजोर बीजों से बुवाई करने पर फसल कमजोर होती है और बाजार में उसकी सही भाव नहीं मिलता. इसलिये बीजों की खरीद के वक्त सावधानी बरतना बेहद जरूरी है. किसान चाहें तो हल्दी के बीज किसी रजिस्टर्ड सेलर से ऑनालाइन मंगवा सकते हैं या बीज भंडार से जांच-परखकर अच्छी कंपनी के बीज खरीद सकते हैं. खेत या बाग में हल्दी की खेती के लिये कम से कम 20 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर बीजदर की जरूरत होती है.


लागत और आमदनी
विशेषज्ञों की मानें तो एक हैक्टेयर जमीन पर हल्दी उगाने पर 1 लाख रुपये तक की लागत आ जाती है, जिसमें बीज, खाद, उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई और श्रम आदि की व्यवस्था शामिल होती है. इसमें 1 हैक्टेयर खेत के लिये 20 क्विंटल बीज की जरूरी है, जो बाजार में 25 रुपये किलो के भाव से मिल जाते हैं. इस तरह बीजों की लागत 40,000 रुपये के आसपास हो जाती है. हल्दी के 20 क्विंटल बीजों की बुवाई करके 7-8 महीने में ही 200-250 क्विंटल तक हल्दी का उत्पादन कर सकते हैं. दूसरी तरफ बाजार में हल्दी को 80 रुपये किलो के भाव पर बेचा जाता है. इस तरह हल्दी की पहली उपज से ही किसान 4-5 लाख रुपये की आमदनी कमा सकते हैं.


डबल कमाई का तरीका
फसलों से अधिक उत्पादन लेने के लिये किसान फसल में रसायनिक उर्वरकों का इस्तेमाल करते हैं, जिससे मिट्टी के साथ-साथ उपज की क्वालिटी भी खराब हो सकती है. इसलिये किसानों को औषधीय फसलों और मसालों की जैविक खेती करने की सलाह दी जाती है, जिससे आम हल्दी के मुकाबले जैविक हल्दी को दोगुना दाम मिल जायें और खेतों में मिट्टी का उपजाऊ स्तर भी कायम रहे. जैविक तरीके से हल्दी की खेती करने पर किसानों को अच्छा मुनाफा मिल जाता है, क्योंकि देश के साथ विदेशों में भी जैविक हल्दी की काफी मांग रहती है. 


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