Indian Agricultural Techniques: भारत एक कृषि प्रधान देश है, जहां अनाज, फल, सब्जी, औषधि, जड़ी-बूटियां समेत कई फसलों की खेती की जाती है. यहां खेती में बेहतर उत्पादन लेने के लिये बदलती जलवायु और उपजाऊ मिट्टी ही किसानों की मदद करती है. विशेषज्ञों की मानें तो भारत में पुराने समय प्रचलित जैविक खेती और प्राकृतिक खेती के कारण ही विदेशों में भारतीय फल और सब्जियों की अलग पहचान है, क्योंकि जैविक खेती और प्राकृतिक खेती ही अपने आप में शुद्धता और बेहतर क्वालिटी का प्रतीक है.


लेकिन खेती के इन दोनों तरीकों के अलावा भी भारत में कई तकनीकों के जरिये खेती की जाती है, जिन्हें उत्पादन बढ़ाने और लागत कम करने वाली तकनीकों के तौर पर जानते हैं. आइये जानते हैं इन तकनीकों के बारे में.....


निर्वाह खेती या आजीविका खेती
आज भी भारत के कई इलाकों में किसान अपनी दैनिक जरूरतों के साथ-साथ अपनी रसोई के लिये भी खेती पर ही निर्भर करते हैं. आम भाषा में कहें तो आजीविका खेती के तहत किसान अपने भरण-पोषण के लिये अपनी जमीन के एक छोटे से टुकड़े पर परंपरागत तरीके से खेती करते हैं, जिससे उनके खान-पान की व्यवस्था खेत में उगने वाली फसल से ही हो जाये. इसके लिये जलवायु के अनुसार फसलों का चुनाव किया जाता है. एक बार जमीन से फसल कट जाने के बाद जमीन के दूसरे टुकड़े पर खेती की जाती है.ताकि पुरानी जमीन की उर्वरता जलवायु के अनुरूप लौट आये. ये मुख्यरूप से प्राकृतिक और और जैविक तरीके से की जाती है, ताकि ज्यादा नुकसान की आशंका कम ही रहे.


बागवानी खेती
जैसी कि नाम से ही साफ है, बागवानी के तहत लंबी अवधि वाली फसलों की खेती की जाती है, जिसमें रबड़, चाय, नारियल, कॉफी, कोको, मसाले, फल और सब्जियां आदि शामिल है. हालांकि बागवानी खेती में लागत और श्रम दोनों ही काफी खर्च होता है, लेकिन आमदनी की बात करें तो सबसे ज्यादा कमाई बागवानी फसलों के जरिये ही हो जाती है. इसकी खेती के लिये कांट्रेक्ट फार्मिंग और पट्टे पर जमीन देना भी काफी प्रचलन में है. बागवानी फसलों की खेती के लिये विशेषज्ञों की सलाह के साथ अच्छे मैनेजमेंट की जरूरत होती है. बागवानी फसलों से कम लागत में अच्छी आमदनी के लिये कृषि मशीनरी और तकनीकों का भी इस्तेमाल किया जाता है. 


व्यावसायिक खेती
अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बढ़ती भारतीय खाद्य पदार्थों की मांग को देखते हुये अब भारत में भी व्यावसायिक खेती को बढ़ावा दिया जा रहा है. बाजार की मांग और क्वालिटी के हिसाब से लाभ कमाने के लिये किसान कई फसलों की व्यावसायिक खेती करते हैं. ये किसानों के लिये अच्छा पैसा कमाने का जरिया भी बनती जा रही है. व्यावसायिक खेती के तहत उत्पादन बढ़ाने और लागत को कम करने के लिये नई किस्मों और नई तकनीकों का प्रयोग किया जाता है. व्यावसायिक खेती में बाजार मांग के हिसाब से ऑर्गेनिंग खेती और रसायन आधारित खेती करना भी शामिल है.


मिश्रित खेती
मिश्रित खेती को वैज्ञानिक भाषा में एकीकृत खेती के नाम से भी जानते हैं. इस मॉडल के तहत अतिरिक्त आमदनी कमाने के लिये किसान एक ही जमीन पर सह-फसली खेती करते हैं. इसमें अनाज, सब्जियों और फलों की बागवानी, मसालों की खेती और जड़ी बूटियों की खेती के अलावा, पशुपालन, मछलीपालन और मधुमक्खी पालन  करना भी शामिल है. ज्यादा आबादी वाले इलाकों में एकीकृत खेती करने का प्रचलन बढ़ता जा रहा है और किसानों को कम जमीन में अतिरिक्त आमदनी कमाने का मौका भी मिल जाता है. आमतौर पर इस प्रकार की खेती को बाजार मांग के हिसाब से किया जाता है, जहां उपभोक्ता ज्यादा और उत्पादक कम होते हैं.


संरक्षित खेती
इसे आधुनिक कृषि का मॉडल भी कहते हैं, जिसके तहत किसान एक संरक्षित ढांचे में प्राकृतिक आपदाओं की चिंता से मुक्त खेती करते हैं. बता दें कि दुनियाभर में संरक्षित खेती मशहूर हो रही है. संरक्षित खेती में पॉलीहाउस और ग्रीनहाउस में बागवानी फसलों की खेती की जाती है. आमतौर पर बाजार में बागवानी फसलों की मांग और कीमत ज्यादा होती है, क्योंकि प्रदूषण के दौर में लोग स्वस्थ और पोषणयुक्त आहार लेना चाहते हैं और संरक्षित ढांचे में उगाई गई सब्जियां बीमारियों और प्रदूषण से मुक्त बेहतर क्वालिटी की होती हैं, जो बाजार में हाथोंहाथ बिक जाती हैं. बता दें कि संरक्षित ढांचे में बेमौसमी सब्जियों की खेती भी की जा सकती है.
 


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