IFFCO NANO DAP: कृषि से बेहतर उत्पादन हासिल करने के लिए उर्वरकों का इस्तेमाल काफी बढ़ गया है, जिससे पर्यावरण प्रदूषण के साथ-साथ मिट्टी की उपजाऊ शक्ति भी प्रभावित हो रही है. इस समस्या का समाधान निकालने और उर्वरकों की खपत कम करने मे नैनो तकनीक फायदे का सौदा साबित हो रही है. लिक्विड फॉर्म में उर्वरकों को पेश करने वाले कंपनी इंडियन फार्मर्स फर्टिलाइजर कोओपरेटिव लिमिटेड (IFFCO) ने कुछ साल पहले ही नैनो यूरिया लॉन्च किया था, जिसे किसानों ने खूब पंसद किया. कभी उर्वरकों की बोरियां ढ़ोने वाले किसान अब 500 मिली की बोतल का इस्तेमाल कर रहे हैं.


बता दें कि ये उर्वरक लिक्विड यानी तरल फॉर्म में हैं, जिनका छिड़काव पानी के साथ किया जाता है. पिछले कुछ सालों में नैनो यूरिया फर्टिलाइजर से कृषि की उत्पादकता बढ़ाने और पर्यावरण की सुरक्षा में काफी मदद मिली है.


इसी कड़ी में अब केंद्र सरकार ने नैनो डीएपी लॉन्च करने की घोषणा कर दी है. सरकार ने नैनो पोटाश, नैनो जिंक और नैनो कॉपर उर्वरकों पर भी काम करने की बात कही है.


क्या है नैनो डीएपी फर्टिलाइजर
नैनो यूरिया की तरह ही नैनो डीएपी 'डाय-अमोनियम फॉस्फेट' का लिक्विड वर्जन है. अभी तक ये उर्वरक सूखा यानी पाउडर-गोलियों के तौर पर पीले रंग की बोरी में उपलब्ध करवाया जाता है, जिससे मिट्टी प्रदूषण के आसार रहते हैं.


कई बार किसान फसल की आवश्यकता से अधिक डीएपी उर्वरक का इस्तेमाल करते हैं, जिससे बाद में मिट्टी की सेहत प्रभावित होती है. यह एक फॉस्फेटिक यानी रसायनिक खाद है, जो पौधों में पोषण और उनके अंदर नाइट्रोजन और फास्फोरस की कमी को पूरा करती है.


इस उर्वरक में 18% नाइट्रोजन और 46% फास्फोरस होता है. इससे पौधों की जड़ों के विकास और उनके विभाजन में काफी मदद मिलती है. एक तरह से देखा जाए तो यह उर्वरक भी फसल की उत्पादकता को बढ़ाने में अहम रोल अदा करता है. 






नैनो डीएपी का चल रहा ट्रायल
नैनो डीएपी को आधिकारिक तौर पर लॉन्च करने से पहले कई जगहों पर इस उर्वरक का ट्रायल किया जा रहा है. कृषि विज्ञान केंद्र, कटिया (सीतापुर) के भी फार्म क्षेत्र पर भी नैनो डीएपी का ट्रायल चल रहा है. रबी सीजन की पांच फसलों- चना, मटर, मसूर, गेहूं, सरसों पर नैनो डीएपी का आवश्यकतानुसार छिड़काव किया जा रहा है.


यहां के प्रभारी अध्यक्ष, डॉ. डीएस श्रीवास्तव ने चना की फसल पर नैनो डीएपी के ट्रायल के शुरुआती परिणाम प्रस्तुत किए. उन्होंने दिखाया कि चना की जिस फसल पर नैनो डीएपी फर्टिलाइजर का इस्तेमाल हुआ था, उसमें रूट नोड्यूल यानी जड़ों में कांटों की संख्या ज्यादा थी. ये रूट नोड्यूल ही भोजन निर्माण का काम करते हैं.


इससे नाइट्रोजन फिक्सेशन का काम भी आसानी से हो ही रहा है, उर्वरकों की खपत भी 50% तक कम हुई है. इसी के विपरीत, जिस फसल में ट्रीटमेंट नहीं किया गया, उसकी जड़ों का विकास अच्छी तरह नहीं हुआ. इन पौधों में प्राकृतिक तौर पर नाइट्रोजन लेने की क्षमता भी कम रही, जिसके चलते जड़ें छोटी रह गईं और रूट नोड्यूल सही से नहीं निकल पाए. 


उत्पादन के लिए अच्छा है नैनो डीएपी
नैनो डीएपी लिक्विड फर्टिलाइजर की उपयोगिता और फायदों को समझाते हुए डॉ. डीएस श्रीवास्तव बताते हैं कि जब भी हम किसी भी फसल पर नैनो डीएपी से उपचार, ट्रीटमेंट या छिड़काव करते हैं तो ये हमारे उत्पादन और जड़ों की ग्रोथ पर काफी अच्छा असर छोड़ता है.


उन्होंने यह बताया कि नैनो डीएपी के प्रमाणीकरण को सिद्ध करने के लिए ही अलग-अलग फसलों पर इसका परीक्षण किया जा रहा है. कई बार किसानों के मन में नई तकनीकों को लेकर भ्रम होता है कि कहीं इससे फसल को नुकसान ना हो या इसका क्या असर होगा.


इन भ्रमों को दूर करने के लिए तमाम कृषि अनुसंधान केंद्रों पर नैनो डीएपी के ट्रायल किए जा रहे हैं. एक्सपर्ट्स बताते हैं कि नैनो डीएपी या दूसरी तकनीकों से भविष्य की चुौनतियों से निपटने में काफी मदद मिलेगी.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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