Agri Export: भारत का देसी आलू पूरी दुनिया को खूब पसंद आ रहा है. इस साल अक्टूबर तक आलू का निर्यात 4.6 गुना बढ़ गया है. कई साल से निर्यात में तेजी से बढ़ोतरी हो रही है. यह आलू के किसानों के लिए अच्छा संकेत है. भारत में आलू की खेती सर्दियां आते ही शुरू हो जाती है. रबी सीजन आलू की खेती के लिए अनुकूल रहता है. किसान चाहें तो इस सीजन में आलू की बंपर पैदावार लेकर अपने खेत का आलू विदेश तक भेज सकते हैं. किसानों की मन में सवाल होगा कि अभी तक तो आलू मंडी में बेचते थे, अब इसे विदेश कैसे भेजा जाए तो आपको बता दें कि विदेशी में फूड प्रोडक्ट्स एक्सपोर्ट करने की पूरी प्रोसेस होती है, जिसमें कई फॉर्मेलिटी भी करनी होती हैं. आज हम आपको इसी बारे में जानकारी देंगे, ताकि आप भी अपने खेत का आलू विदेशियों को चखा सकें.


बोरों में भरकर निर्यात नहीं होता आलू
आलू को लोकल लेवल पर मंडियों में बेचना बेहद आसान होता है. खेत से हार्वेस्टिंग लेकर आलू को बोरों में भरिए और सीधा मंडी ले जाकर बेच दीजिए. भारत की मंडियों में आलू बेचने के लिए एक बोरे में करीब 50 किलो आलू भरे जाते हैं. इसके लिए प्लास्टिक या जूट का बोरा सस्ते दामों पर मिल जाता है, जिसे दोबारा इस्तेमाल करने की जरूरत भी नहीं पड़ती, जबकि इस तरीके से आप दूसरे देश को आलू नहीं भेज सकते.


इस तरह होती है आलू की पैकेजिंग
विदेश में आलू बेचने के लिए बोरों में भरकर नहीं दिया जाता, बल्कि किसी भी सब्जी को बोरे में भरकर विदेश नहीं भेजते. इसके लिए अच्छी पैकेजिंग का इंतजाम किया जाता है. सबसे पहले विदेश में जो आलू एक्सपोर्ट होना है, उसे एक खास तरीके से बने पैकेट में भरा जाता है. प्लास्टिक या जूठ के बोरे के मुकाबले इस पैकेट की कीमत 25 रुपये होती है. इसमें आलू भरने के बाद पैकेट को सिल दिया जाता है, जिसका चार्ज 1 रुपये आता है. आपको जानकर हैरानी होगी कि 25 रुपये के एक पैकेट में सिर्फ 25 किलो आलू ही भर सकते हैं.


कितना खर्चा आता है 
अगर आप भी विदेश में अपने खेत का आलू बेचना चाहते हैं तो सबसे पहले खर्च का हिसाब-किताब समझ लें. एक्सपर्ट की मानें तो दूसरे देशों को 1 किलो आलू बेचने के लिए 7 रुपये खर्च करने पड़ते हैं. भारत से ज्यादातर मुंबई और कोलकाता बंदरगाह से आलू का निर्यात होता है. यदि आप यूपी में रहते हैं तो इन बंदरगाहों तक आलू पहुंचाने के लिए 650 रुपये प्रति क्विंटल तक खर्च करना होगा. इसके अलावा, 25  रुपये के पैकेट में जो 25 किलोग्राम आलू भरे जाते हैं, उनकी लोडिंग के लिए भी 15 रुपये खर्च करने होते हैं. इसके अलावा भारत से दूसरे देशों के बंदरगाह तक आलू पहुंचाने के लिए एक टन आलू पर 2800 से 6600 रुपये की लागत आती है. 


आपको बता दें कि आलू के एक्सपोर्ट पर कस्टम ड्यूटी भी लगती है. उदाहरण के लिए यदि नेपाल आलू भेजना हैं तो 10 फीसदी कस्टम ड्यूटी देनी होगी. बांग्लादेश के लिए 12 फीसदी, दुबई के लिए 18 फीसदी, श्रीलंका के लिए 12 फीसदी, यूएई संयुक्त अरब अमीरात के लिए 18 फीसदी, शारजहां के लिए 18 फीसदी और रूस को आलू भेजना है तो 18 फीसदी कस्टम ड्यूटी अदा करनी होगी.


यह सर्टिफिकेट देना अनिवार्य है
यह तो बात हुई विदेश को आलू बेचने और किसान पर पड़ने वाले खर्च के बारे में, लेकिन क्या आप जानते हैं कि आलू के निर्यात के लिए क्वॉरेंटाइन सर्टिफिकेट भी लेना होता है. क्वॉरेंटाइन सर्टिफिकेट बनाने के लिए एक स्पेशल टीम भी होती है, जो आलू की जांच भी करती है. इस जांच में पता लगाया जाता है कि जो चीज विदेश को निर्यात की जा रही है, उसमें कोई बीमारी या कोई परेशानी तो नहीं है. यदि ये टेस्ट फेल हो जाता है तो किसी भी हालत में आलू निर्यात नहीं किया जाता. यहां कि जहाज का कैप्टन भी क्वारेंटाइन सर्टिफिकेट देखकर ही फूड प्रोडक्ट्स को जहाज पर चढ़ाते हैं.


एक्सपर्ट्स बताते हैं कि चाहे आलू हो या कोई दूसरी सब्जी या फूड प्रोडक्ट, मांस, दूध या फिर पशु-पक्षी ही क्यों ना हों. इन सब को एक्सपोर्ट करने से पहले क्वॉरेंटाइन सर्टिफिकेट लेना होता है. कोई भी मालवाहक जहाज क्वॉरेंटाइन सर्टिफिकेट की तर्ज पर ही कृषि उत्पादों को दूसरे देश ले जाता है.


Disclaimer: खबर में दी गई कुछ जानकारी मीडिया रिपोर्ट्स पर आधारित है. किसान भाई, किसी भी सुझाव को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह जरूर लें.


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