Tree Plantation in Agriculture Field: भारत के किसान अब कम जोखिम वाली खेती की तरकीबों पर जोर दे रहे हैं, जिससे फसलें के साथ-साथ दूसरे कामों से भी अतिरिक्त आमदनी हो सके. फसल विविधिकरण (Crop Diversification)  और सह-फसल खेती  (Co-cropping Farming) भी कुछ ऐसी ही आधुनिक खेती की तरकीबें हैं, जिनके तहत एक ही खेत में अलग-अलग फसलें उगाकर दोगुना आमदनी हासिल कर सकते हैं. पिछले दिनों खेती के साथ-साथ वृक्षारोपण (Tree Plantation)  को भी बढ़ावा दिया जा रहा है, जिससे मिट्टी का कटान रोककर जलवायु परिवर्तन (Climate Change) के जोखिमों को कम किया जा सकता है.


इनमें से कई पेड़ ऐसे भी है, जो प्राकृतिक संरक्षण ( Save Nature) के साथ-साथ किसानों को सालों साल मुनाफा लेने में मदद करते हैं. सही मायनों में इन पेड़ों को किसानों के लिये वन टाइम इनवेस्टमेंट (One Time Investment Farming) का सौदा कह सकते हैं, जिनसे जरूरत पड़ने पर किसान अच्छा लाभ ले सकते हैं.




चंदन के पेड़ (Sandalwood Tree)
दुनियाभर में सालोंसाल चंदर की लकड़ी मांग बनी रहती है. इस खुशबूदार लकड़ी को औषधियां, इत्र, साबुन, कॉस्मेटिक और तेल जैसी कई उपयोगी चीजें बनाने में इस्तेमाल किया जाता है, इसलिये बाजार में ये लकड़ी ऊंचे दामों पर बिकती है. चंदन की करीब एक किलो लकड़ी ही बाजार में 27,000 रुपये के दाम पर बिकती है. चंदन के एक ही पेड़ से 17 से 18 किलो तक लकड़ी का उत्पादन ले सकते हैं. यही कारण है कि चंदन का पेड़ लगाने पर जरूरत के समय लाखों रुपये की आमदनी ले सकते हैं.


सागवान के पेड़ (Teak Tree)
फर्नीचर मार्केट में सागवान के पेड़ की काफी मांग रहती है. मानसून में सागवान के पेड़ की खेतों की मेड़ पर रोपाई कर सकते हैं, जिससे कुछ सालों बाद पेड़ के परिपक्व होने पर अच्छी आमदनी मिल सके. बता दें कि सागवान के पेड़  हर प्रकार की जलवायु को सहन कर लेता है. जोखिम की इतनी कम संभावना वाले पेड़ की टिकाऊ खेती करने पर  कम लागत में ही डबल मुनाफा हो सकता है. इसकी लकड़ी बाजार में काफी महंगी बिकती है. रिपोर्ट्स की मानें तो 12 साल की उम्र वाले पेड़ की कीमत 25 से 30 हाजर रुपये तक होती है.


गम्हार के पेड़ (Gmelina Arborea Tree)
गम्हार एक औषधीय पेड़ है, जिसकी इमारती लकड़ी के साथ औषधीय पत्तियां भी अच्छे दाम पर बिकती है. बता दें कि गम्हार की लकड़ी से औषधीय दवा बनाई जाती है, जो अल्सर जैसी बीमारियों का रामबाण इलाज है. इसके अलावा गम्हार के पेड़ लगाने पर खेत और आस-पास की मिट्टी में नाइट्रोजन और फास्फोरस की आपूर्ति भी होती रहती है, जिससे किसानों को फसल की बेहतर पैदावार लेने में मदद मिलेगी. कम बारिश वाले पहाड़ी इलाकों में ये पेड़ खूब पनपते हैं. उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, राजस्थान और महाराष्ट्र के कई इलाकों में इसकी कई एकड़ में वृक्षारोपण खेती भी की जाती है.


सफेदा के पेड़ (Eucalyptus Tree)
सफेदे का पेड़ भारतीय किसानों की पहली पसंद है क्योंकि कम पानी में भी ये पेड़ तेजी से बढ़ता है और मौसम की मार को भी आसानी से झेल लेता है. आमतौर पर सफेदे की लकड़ी से फर्नीचर, ईंधन और कागज का लुगदी बनाई जाती है. इसके पेड़ के परिपक्व होने में करीब 8 से 10 साल का समय लग जाता है. इसके पेड़ से गोंद और पत्तों से निकला औषधीय तेल कई बीमारियों से छुटकारा दिलाने के काम आता है.


महोगनी के पेड़ (Mahogany Tree)
कुछ-कुछ चंदन जैसी दिखने वाली लाल-भूरे रंग की महोगनी (Mahogany Tree)भी किसानों को खूब मालामाल कर सकती है. जहां इसकी लकड़ी बेचकर मुनाफा होता है, तो इसके बीजों से औषधी और पत्तियों से जैविक खाद (Organic Fertilizer from Mahogany Leaves) बनाई जाती है, जो खेती में भी चार चांद लगा देती है,  तक हर चीज खेती के काम आ जाती है.  इसे पेड़ को परिपक्व होने में करीब 12 साल लग जाते हैं, इस बीच हर पांच साल में इसके पेड़ से 5 किलो बीज मिलते रहते हैं, जो बाजार में 1000  रुपये किलो के भाव बिकते हैं। बाजार में महोगनी की लकड़ी ही 2000 से 2500 रुपये किलो को भाव पर आसानी से बिक जाती है.


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