Gram Cultivation: भारत को दलहन उत्पादन (Pulses Production) के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की कवायद की जा रही है. किसानों को भी दालों की खेती (Pulses farming) करके दलहन का उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहित किया जा रहा है. अब खरीफ सीजन की दलहनी फसलें तो पककर तैयार हो चुकी हैं, लेकिन कुछ किसान खरीफ सीजन में दलहनी फसलों की बुवाई नहीं कर पाए. उनके लिए रबी सीजन (Rabi Season 2022) में चना की खेती फायदे का सौदा साबित हो सकती है. बता दें कि चना को छोलिया या बंगाल ग्राम भी कहते हैं, जिसका इस्तेमाल अंकुरित सुपर फूड से लेकर मिठाई और कई तरह के व्यंजनों में भी किया जाता है.


भारत में मध्य प्रदेश, राज्यस्थान, उत्तर प्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र और पंजाब जैसे राज्यों के किसानों की मेहनत से आज भारत सबसे बड़े चना उत्पादक देश बना है. इस साल दुनियाभर में अंतर्राष्ट्रीय पोषक अनाज वर्ष भी मनाया जा रहा है. ऐसे में चना की खेती (Gram Cultivation) से किसानों को अच्छी आमदनी मिल सकती है. 


चने की उन्नत किस्में 


ये रबी सीजन किसानों के लिए खास हो सकते हैं. इसके लिए अभी से खेत की तैयारी से लेकर बीज-खाद, उर्वरक और सिंचाई की व्यवस्था, मिट्टी की जांच और मशीनों का इंतजाम भी करें, जिससे बुवाई का काम समय से हो जाए. कृषि विशेषज्ञों के मुताबिक, किसी भी फसल से अच्छी पैदावार के लिए उन्नत किस्म के बीजों का चयन करना बेहद जरूरी है. वैसे तो चना भी तीन तरह का होता है. ये किसानों के ऊपर निर्भर करता है कि वो किस चना की खेती करना चाहते हैं. 



  • काला चना- वैभव, जेजी-74, उज्जैन 21, राधे, जे. जी. 315, जे. जी. 11, जे. जी. 130, बीजी-391, जेएकेआई-9218, विशाल आदि.

  • काबुली चना- काक-2, श्वेता (आई.सी.सी.व्ही.- 2), जेजीके-2, मेक्सीकन बोल्ड आदि.

  • हरा चना- जे.जी.जी.1, हिमा आदि.



चना की खेती के लिए मिट्टी 


जाहिर है कि चना एक रबी सीजन की फसल है, इसलिए इसकी बिजाई अक्टूबर में ही शुरू हो जाती है. वैसे तो हर तरह की मिट्टी में चना का उत्पादन ले सकते हैं, लेकिन रेतीली और चिकनी मिट्टी में इसकी अच्छी पैदावार ले सकते हैं. इस बीच मिट्टी का पीएच मान 5.5 से 7 के बीच और खेत में अच्छी जल निकासी की व्यवस्था होनी चाहिए. मिट्टी की जांच के आधार पर ही चना की खेती के लिए बीज-खाद का प्रयोग करें. इससे खेती की लागत को कम करने में काफी मदद मिलेगी.


चना की बुवाई


चना की बुवाई से पहले खेत को गहरी जुताई लगातर तैयार करते हैं. इसके बाद खाद-उर्वरक डालकर मिट्टी में बीजों को लगाया जाता है. इसके लिए सीड ड्रिल का इस्तेमाल कर सकते हैं. 
बता दें कि चना की देसी प्रजातियों के लिए 15 से 18 किलो प्रति एकड़ बीजों से बुवाई की जाती है. वहीं काबुली चना के लिए 37 किलो बीज प्रति एकड़ काफी रहते हैं. 
वहीं 15 नवंबर के बाद चना की बुवाई करने पर 27 किलो बीज प्रति एकड़ और 15 दिसंबर से पहले बुवाई करने पर 36 किलो बीज प्रति एकड़ की दर से बुवाई करनी चाहिए.


चना फसल की देखभाल


चना एकख प्रमुख दलहनी फसल है. भारत में इसे उगाकर देश-दुनिया में निर्यात किया जाता है, इसलिए जलवायु परिवर्तन के बीच मौसम की मार और कीट-रोगों से सावधानी बरतना भी जरूरी है. ऐसे में समय-समय पर फसल में निगरानी करते रहे. 



  • चना की फसल में खरपतवारों के नियंत्रण के लिये बुवाई के 25 से 30 दिन बाद पहली निराई-गुड़ाई और 60 दिन बाद दोबारा यह काम किया जाता है.

  • नदीना रोग के कारण चना की पैदावार कम हो सकती है. इसकी रोकथाम के लिये निगरानी और छिड़काव करना चाहिए.

  • इसके लिए 1 लीटर पैंडीमैथालीन को 200 लीटर पानी में घोलकर प्रति एकड़ के हिसाब से बुवाई के 3 दिन बाद  छिड़काव करें.

  • चना की फसल से अच्छी पैदावार के लिये मिट्टी की जांच के आधार पर 13 किलो यूरिया और 50 किलो सुपर फासफेट प्रति एकड़ की दर से प्रयोग कर सकते हैं. 

  • चना की फसल 2 से 3 सिंचाई में ही तैयार हो जाती है. इसमें पहली सिंचाई बुवाई के 45 दिन बाद और दूसरी सिंचाई 75 दिनों बाद कर सकते हैं. 



चना फसल का उत्पादन


चना का पौधा सूख जाने के बाद ही फसल की कटाई (Gram Harvesting) की जाती है. इस समय चना की झाड़ के पत्ते लाल-भूरे रंग के दिखते हैं और पत्तियां भी झड़ना शुरू कर देती है. इस दौरान चना के पौधों की कटाई करके उन्हें 5 से 6 दिन धूप में सुखाया जाता है. इस तरह कुछ ही दिन के अंदर चना की फसल से पशु चारा और 20-25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक दाना की पैदावार (Gram Production) ले सकते हैं. 


Disclaimer: यहां मुहैया सूचना सिर्फ कुछ मीडिया रिपोर्ट्स और जानकारियों पर आधारित है. किसी भी जानकारी को अमल में लाने से पहले संबंधित विशेषज्ञ से सलाह लें.


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