Organic Farming Maintain Enviorment Pollution: आज का दिन पूरी दुनिया विश्व पर्यावरण दिवस के रूप में मना रही है. पर्यावरण का सीधा ताल्लुक इंसान के जीवन से है, क्योंकि इससे सांस लेने के लिये हवा, पीने के लिये पानी, रहने के लिये जमीन और खाने के लिये अन्न मिलता है. मानव जीवन के लिये ये सभी चीजें ही बहुत जरूरी हैं, लेकिन हम ये नहीं समझ पाते कि ये सभी चीजों के बदले पर्यावरण को भी देखभाल की जरूरत होती है. इसलिये लगातार हमारे वैज्ञानिक धरती पर हरियाली बढ़ाने की सलाह देते हैं क्योंकि धरती पर हरियाली और पेड़-पौधों की तादाद ही इंसान के जीवन को बचा सकती है. शहरों में हरियाली लाने के लिये घरों पर ही बागवानी और आस-पास पार्कों में पेड़-पौधे लगा सकते हैं. लेकिन गांव की हरियाली पूरी तरह किसानों पर निर्भर है. इसलिये किसानों को जैविक खेती करने की सलाह दी जाती है. 


क्या है जैविक खेती
हमारे अन्नदाताओं को खेत-खलिहानों को स्वस्थ रखने और मिट्टी की उपजाऊ शक्ति को बढ़ाने के लिये जैविक खेती की सलाह दी जाती है. बता दें कि जैविक खेती के तहत मिट्टी को पोषण प्रदान करने के लिये जैव अपशिष्टों बनी खाद का इस्तेमाल किया जाता है. इसमें खेतों में बचा हुआ पौधों का कचरा और पशुओं का गोबर-मूत्र से बनी जैविक खाद, केंचुआ कंपोस्ट खाद आदि शामिल हैं. इससे पर्यावरण को तो फायदा पहुंचाता ही है, मिट्टी की सेहत में भी सुधार होता है.


बढ़ेगी मिट्टी की शक्ति
जैविक खेती करने के लिये जैविक खाद या वर्मी कंपोस्ट खाद का प्रयोग किया जाता है, जिससे मिट्टी को वो जीवाणु मिल जाते हैं, जो मिट्टी की सेहत को पोषण देकर फसल को ज्यादा उपजाऊ बनाने का काम करते हैं. फसल और मिट्टी के अलावा जैविक खेती से मिलने वाली पैदावार भी स्वस्थ होती है, इससे किसानों को अच्छी आमदनी भी हो जाती है और पर्यावरण संतुलन बनाये रखने में भी मदद मिलती है. 


जैविक खेती से पशुपालन को बढ़ावा
पशुपालन और जैविक खेती आपस में जुड़े हुये हैं, जहां खेतों में प्रयोग होने वाली जैविक खाद में पशुओं का गोबर और मूत्र जरूरी घटक होता है, तो वहीं पशुओं के आहार के रूप में खेतों से ही चारा मिल जाता है. ऐसे में खेती के साथ पशुपालन करके किसान जैविक खाद पर होने वाले खर्च को कम कर सकते हैं. और पशुओं से प्राप्त दूध से अतिरिक्त आमदनी भी प्राप्त कर सकते हैं. 


कम लागत में अधिक उत्पादन
विशेषज्ञों के मुताबिक खेती में बढ़ते रसायनों के इस्तेमाल से मिट्टी में प्रदूषण और किसानों पर खर्च का बोझ रहा है. वहीं जैविक खेती करने से कम खर्च में अच्छी पैदावार मिल जाती है और मिट्टी की सेहत बनाये रखने में भी काफी मदद मिलती है. इसकी मदद से खेतों में पड़े जैविक कचरे का भी प्रबंधन हो जाता है और प्रदूषण को नियंत्रित करने में भी मदद मिलती है. जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिये सरकार ने भी योजनाओं के जरिये आर्थिक अनुदान और किसानों के लिये ट्रेनिंग कार्यक्रम शुरू किये  हैं.


पानी की बचत
खेती में सिंचाई की अहम भूमिका होती है, लेकिन मिट्टी और फसलों में इस्तेमाल होने वाले रसायनिक उर्वरकों और कीटनाशक ही मिट्टी से ज्यादातर पानी को सोख लेते हैं. जिसके कारण जमीन का जल स्तर गिरता जा रहा है, लेकिन जैविक खेती की मदद से धरती में जल स्तर को बेहतर बनाये रखने में मदद मिलती है. क्योंकि जैविक खेती में नीम से बने बायोपेस्टिसाइड यानी कीटनाशक का प्रयोग किया जाता है, जो बहुत ही सस्ते और कारगर होते हैं. इसके इस्तेमाल से अधिक पानी की जरूरत भी नहीं पड़ती. जैविक खेती के लिये फसल में कम सिंचाई करने पर भी अच्छी उपज मिल जाती है.


 


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