गर्मी के मौसम में पानी की कमी को दूर करने के लिए बावली का निर्माण किया जाता था

बावली या कुएं बनाकर इसमें बारिश के पानी को इकट्ठा किया जाता था

ताकि सूखा पड़ने पर बावली के पानी का इस्तेमाल किया जा सके

इसको बनाने के लिए काफी गहरा खोदा जाता था

पानी तक पहुंचने के लिए इसमें सीढ़ियां बनाई जाती थी

बावली को देश के अलग-अलग हिस्सों में इसे अलग-अलग नामों से पुकारा जाता है

गुजरात और मध्यप्रदेश में इसे बाव या बावली कहते हैं

राजस्थान में इसको बावड़ी या बेरी कहते हैं

कन्नड़ में कल्याणी या पुष्करणी कहते हैं

तो वहीं मराठी में बारव और अंग्रेजी में इसे स्टेप वेल कहते हैं

असल में बावली पानी का एक बहुत बड़ा कुंड है, जिसमें पानी तक जाने के लिए सीढ़ियां बनी होती हैं