पौराणिक कथा के अनुसार, ब्रह्मा जी ने संतानों की रक्षा

और वृद्धि के लिए देवी षष्ठी को उत्पन्न किया था.

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क अन्य मान्यता के अनुसार, जब प्रकृति देवी ने स्वयं को छह रूपों में विभाजित किया,

तो उनके छठे अंश को ही छठी मैया के रूप में जाना गया.

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मान्यता है कि वह भगवान सूर्यदेव की बहन हैं.

इसीलिए छठ पूजा में सूर्य देव के साथ-साथ उनकी भी पूजा होती है.

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छठी मैया बच्चों की विशेष रूप से रक्षा करने वाली देवी हैं.

व्रती संतान के लिए भी इस व्रत का अनुष्ठान करते हैं.

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शिशु जन्म के छठे दिन उनकी पूजा की जाती है, और छठ पर्व पर संतान की सुख,

अच्छे स्वास्थ्य और लंबी आयु की प्राप्ति के लिए उनकी आराधना की जाती है.

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एक कथा के अनुसार, पांडवों ने अपना राजपाट वापस पाने के लिए

द्रौपदी के साथ यह व्रत किया था.

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एक राजा-रानी की कहानी यह बताती है कि संतान सुख मिलने के

बाद इस व्रत की परंपरा शुरू हुई.

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छठ पूजा कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि

को होती है, इसलिए इसे ’सूर्य षष्ठी’ भी कहते हैं.

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मार्कण्डेय पुराण में छठी मैया को सर्वश्रेष्ठ मातृदेवी

और प्रकृति के छठे अंश के रूप में बताया गया है.

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