माहे रमजान के तीसरे अशरे की 27वीं रात शब-ए-कद्र की रात होती है.

शब-ए-कद्र की रात में रोजेदार पूरी रात जागकर दुआ और इबादत करते हैं. इससे कई हजार गुना सवाब मिलता है.

शब-ए-कद्र की रात को सलामती की रात कहा जाता है.

रमजान के शब-ए-कद्र की रात ही मोमिन की रहनुमाई में कुरान पाक को आसमान से उतारा गया था.

शब-ए-कद्र की रात अल्लाह की इबादत करने वाले मोमिन के दर्जे बुलंद होते हैं और उनके गुनाह माफ हो जाते हैं.

शब-ए-कद्र की रात को इस्लाम में हजार महीने की रात से बेहतर और पाक माना गया है.

शब-ए-कद्र की रात दुआ करने के बाद मुसलमान सुबह अपने रिश्तेदारों, अजीजो-अकारिह की कब्रों पर जाकर उनके मोक्ष के लिए दुआ करते हैं.

शब-ए-कद्र की खास रात में की गई इबादत, तिलावत और दुआ कुबूल व मकबूल होती है.

शब-ए-कद्र की रात के बाद रमजान का पाक महीना अपने आखिरी दौर पर पहुंचता है कुछ ही दिनों में ईद होती है.

शब-ए-कद्र की दुआ- अल्लाहुम्मा इन्नक अफुव्वुन करीमुन, तू हिब्बुल-अफ्व, फअफु अन्नी.