आज होली से एक दिन पहले यानी होलिका दहन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक माना जाता है

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होलिका दहन का इतिहास प्रहलाद और होलिका से जुड़ा हुआ है जिसमें होलिका जलकर भस्म हो गई थीं

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होलिका दहन फाल्गुन महीने की पूर्णिमा तिथि को मनाया जाता है

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पूरे देश में होलिका दहन को बुराई पर अच्छाई की जीत मानकर मनाया जाता है

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हालांकि, कुछ स्थानों पर होलिका दहन नहीं किया जाता है जो स्थानीय परंपराओं और आस्थाओं से जुड़ा है

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मध्य प्रदेश के हथखोह गांव में 400 वर्षों से होलिका दहन नहीं किया गया है

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हथखोह गांव के लोग इसे देवी के श्राप से जोड़ते हैं और वहां कभी भी होलिका दहन नहीं किया जाता

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इस गांव में झारखंडन माता का एक प्राचीन मंदिर स्थित है जिसे लोग श्रद्धा से पूजते हैं

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गांव के लोग मानते हैं कि होलिका दहन के दौरान एक बार आग ने पूरे गांव को अपनी चपेट में ले लिया था

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तब से लेकर आज तक गांव के लोग होलिका दहन से बचते हुए देवी की शरण में रहते हैं.

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