सनातन धर्म में साधु-संतों
को ईश्वर की प्राप्ति का माध्यम माना जाता है.


साधु-संतों की वेशभूषा अलग
होती है और वे भौतिक सुखों का त्याग कर सत्य व धर्म के मार्ग पर निकल पड़ते हैं.


लेकिन नागा साधु कभी भी
कपड़े नहीं पहनते हैं. वे कपकपाती ठंड़ में भी हमेशा नग्न अवस्था में ही रहते हैं.


नागा का अर्थ होता है ‘नग्न’.
नागा साधु आजीवन नग्न अवस्था में ही रहते हैं.


नागा साधु प्रकृति और प्राकृतिक
अवस्था को महत्व देते हैं. इसलिए भी वे वस्त्र नहीं पहनते.


नागा साधुओं का मानना है कि
इंसान निर्वस्त्र जन्म लेता है अर्थात यह अवस्था प्राकृतिक है.


इसी भावना का आत्मसात
करते हुए नागा साधु हमेशा निर्वस्त्र रहते हैं.


केवल नग्न अवस्था ही नहीं बल्कि
शरीर पर भस्म और जटा जूट भी नागा साधुओं की पहचान है.


नागा साधु हमेशा नग्न रहने और
युद्ध कला में माहिर के लिए जाने जाते हैं. विभिन्न अखाड़ों में इनका ठिकाना होता है.


नागा साधुओं के अखाड़े में
रहने की परंपरा की शुरुआत आदिगुरु शंकराचार्य द्वारा की गयी थी.