ईरान से भागे पारसी 8वीं सदी में भारत के पश्चिमी तट पर पहुंचे थे



यहां आने पर इन्हें कुछ शर्तों के तहत रहने की अनुमति मिली थी, लेकिन उससे पहले जानते हैं कि इन्हें ईरान छोड़ना क्यों पड़ा



ईरान को पहले फारस कहा जाता था और यहां का आधिकारिक धर्म जोरास्ट्रियन धर्म था, इसे मानने वाले लोग पारसी कहलाते हैं



7वीं सदी में इस्लामिक साम्राज्य के दूसरे खलीफा उमर ने फारस पर हमला किया और यहां अरबों का कब्जा हो गया. धार्मिक उत्पीड़न से बचने के लिए पारसी लोगों ने पलायन शुरू कर दिया



किस्सा ए संजान किताब में जिक्र है कि पारसी लोगों का जत्था 8वीं सदी में भारत पहुंचा था और 19 साल तक दीव में रहने के बाद गुजरात पहुंचे



गुजरात के शासक जादी राणा इन्हें चार शर्तों के साथ शरण देने को मान गए, ये शर्त थीं- स्थानीय रीति रिवाज अपनाएंगे, सभी पारसी स्थानीय भाषा बोलेंगे



तीसरी और चौथी शर्त थी, पारसी स्थानीय लोगों जैसे कपड़े पहनेंगे और हथियार इकट्ठा नहीं करेंगे



गुजरात पहुंचने के दौरान पारसियों को काफी तूफान का सामना करना पड़ा, तब उन्होंने सलामती की मन्नत मांगी और आतिश बहरम की अगियारी यानी मंदिर बनाने को कहा



जोरास्ट्रियन धर्म में आतिश बहरम पवित्र आग को कहा जाता है. शर्तें मानने के बाद ये गुजरात में रहने लगे और संजान नाम का अलग शहर बसा लिया



मन्नत पूरी होने के बाद इन लोगों ने आतिश बहरम की अगियारी यानी मंदिर भी बनवाया



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