तवायफों को पुराने समय में नाच गाने के लिए शाही परिवारों में बुलाया जाता था. इन्हें मनोरंजन का साधन समझा जाता था



इतिहास में कुछ तवायफ ऐसी भी हैं, जिन्होंने भारत की आजादी की लड़ाई में भी योगदान दिया. इनमें से एक हैं हुस्ना बाई



जवाहर लाल यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर लता सिंह ने अपनी रिसर्च में स्वतंत्रता संघर्ष में तवायफों के योगदान के बारे में लिखा है



लता सिंह के अनुसार, तवायफ हुस्ना बाई ने गांधी जी के 1920-1922 के बीच नॉन कॉपरेशन मूवमेंट में सहयोग दिया था



हुस्ना बाई ने अन्य तवायफों के साथ मिलकर तवायफ सभा बनाई, जो स्वतंत्रता की लड़ाई में गांधी जी के साथ थीं



अवध के आखिरी नवाब वाजिद अली शाह की बीवी हजरत महल शादी से पहले तवायफ थीं. वह देश को आजादी दिलाने के लिए अंग्रेजों के सामने डटकर खड़ी हो गई थीं



हुस्ना बाई के अलावा अजीजुनबाई, हुसैनी, बेगम हजरत महल, गौहर जान और विद्याधर बाई जैसी और भी तवायफ हैं, जिन्होंने इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान दिया है



‘माय नेम इज गौहर जान’ के राइटर विक्रम संपथ लिखते हैं कि महात्मा गांधी के कहने पर गौहर जान ने एक कार्यक्रम किया और उससे जो पैसा इकट्ठा हुआ, वो आजादी में योगदान के लिए बनाए गए स्वराज फंड में भेजा



अमृतलाल नागर की किताब 'ये कोठेवालियां' (1958) में तवायफ विद्याधर बाई के एक पत्र का भी जिक्र है



विद्याधर बाई के लैटर में उन्होंने लिखा कि गांधी जी के विचार पर तवायफों ने राष्ट्रीय गानों पर प्रस्तुति देना शुरू किया. पत्र में तवायफों के गाए पहले राष्ट्रीय गाने 'चुन चुन के फूल ले लो' का भी जिक्र शामिल है



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