छत्तीसगढ़ के कवर्धा जिले में स्थित भोरमदेव मंदिर ऐतिहासिक और आध्यात्मिक रूप से बेहद खास है

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यह मंदिर मैकल पर्वतों की गोद में हरियाली के बीच स्थित है जो शांति का अनुभव कराता है

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11वीं शताब्दी में नागवंशी राजा गोपाल देव द्वारा भगवान शिव की पूजा के लिए यह मंदिर बनवाया गया था

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मंदिर की दीवारों पर की गई नक्काशी नागर शैली की उत्कृष्ट मिसाल है

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इसकी मैथुन मूर्तियां खजुराहो मंदिर की याद दिलाती हैं, इसलिए इसे छत्तीसगढ़ का खजुराहो कहा जाता है

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मंदिर के गर्भगृह में स्थापित प्राचीन शिवलिंग श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है

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करीब 5 फीट ऊंचे चबूतरे पर बने इस मंदिर की लंबाई 60 और चौड़ाई 40 फीट है

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मंडप में लगे 12 खंभे स्थापत्य कला और संतुलन को दर्शाते हैं

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पास में बना प्राचीन तालाब इस जगह की ऐतिहासिकता और सुंदरता को और बढ़ाता है

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तालाब में बोटिंग की सुविधा भी है, जिससे यह स्थल घूमने और शांति पाने दोनों के लिए आदर्श बन गया है

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