15 साल की उम्र में ही मुन्ना बजरंगी ने रख दिए थे अपराध की दुनिया में कदम, उठा लिए थे हथियार
इस वारदात के बाद वह मुंबई में अधिक वक्त गुजारने लगा था. वो अब खुद सत्ता में आना चाहता था जिसके कारण उन नेताओं से भी उसके रिश्ते खराब होने लगे थे जिनके आशीर्वाद की वजह से वो माफिया बना था
इसके बाद 29 नवंबर 2005 में मुन्ना बजरंगी ने कृष्णानंद राय का कत्ल कर दिया. लखनऊ हाइवे पर जा रहे कृष्णानंद राय की गाड़ी पर एके 47 से 400 गोलियां मारी गई थीं. इस हमले में विधायक के साथ 6 अन्य लोग भी मारे गए थे.
वाराणसी के मडुआडीह, रामपुर थाने और जौनपुर के लाइनबाजार थाने में उसके खिलाफ हत्या और लूट के मामले दर्ज हैं. वाराणसी के लंका इलाके में उसने एक साथ 4 कत्ल कर दिए. इनमें एसपी की पूर्व उम्मीदवार सुनील राय भी शामिल थे.
पुलिस को पता था कि उसके पास एके47 और एके56 जैसे हथियार हैं. 11 सितंबर 1998 को एसटीएफ के साथ उसकी मुठभेड़ भी हुई, उसे गोलियां भी लगीं लेकिन वो भाग कर अस्पताल पहुंच गया.
माना जाता है कि 90 के दशक में वो मुख्तार अंसारी गैंग में भी रहा. सरकारी ठेकों के लिए होने वाली जंग में नेता मुन्ना जैसे शोहदों का इस्तेमाल करते थे. बीजेपी के विधायक कृष्णानंद राय से मुन्ना को चुनौती मिलने लगी थी. मुख्तार के दुश्मन ब्रजेश सिंह का हाथ राय पर था.
इसके बाद वो खुद को कानून से ऊपर समझने लगा. उसके संपर्क में दिल्ली और मुंबई के अपराधी भी थे. पुलिस की फाइलों में वो इंटरस्टेट गैंगस्टर बन गया था. कई राज्यों की पुलिस उसकी तलाश में थी लेकिन मुन्ना उनके हाथ नहीं लग पा रहा था.
1984 में उसके खिलाफ हत्या और लूट का मामला दर्ज हुआ. वो 8वीं तक भी नहीं पढ़ा था लेकिन जब उसकी हिस्ट्रीशीट खुली तो वो पहले नंबर पर था. 1993 में उसने ब्लॉक प्रमुख रामचंद्र सिंह की हत्या कर दी.
1995 में वाराणसी के कैंट इलाके में उसने दो लोगों का कत्ल कर दिया. अब वो कोई छोटा मोटा गुंडा नहीं रह गया था, वो गैंगस्टर बन गया था. 24 जनवरी 1995 में उसने ब्लॉक प्रमुख कैलाश दुबे की हत्या कर दी.
29 अक्तूबर 2009 में मुंबई के मलाड इलाके से उसे गिरफ्तार किया गया था. कहा तो ये भी जाता है कि उसे अपने एनकाउंटर का डर था और इसी वजह से उसने खुद को गिरफ्तार कराया था. इसके बाद से ही मुन्ना अलग-अलग जेलों में रहा था.
इसके बाद हुई जेल जहां से वो 2001 में निकला. उसकी दहशत बहुत थी लिहाजा वो रंगदारी वसूलने लगा. 2002 में उसने फिर से वाराणसी में दो लोगों का कत्ल कर दिया. इसके बाद चेतगंज में भी उसने एक कत्ल किया. 2002 में दारोगा अभय सिंह की हत्या में भी मुन्ना का नाम आया.
मुन्ना बजरंगी का जन्म 1967 में उत्तर प्रदेश के जौनपुर जिले के पूरेदयाल गांव में हुआ था. वो गांव का टपोरी था जो अपराध की राह पर चल कर माफिया डॉन बन गया. 1998 में एसटीएफ के साथ उसकी मुठभेड़ हुई लेकिन वो बच गया. इस चूक का अफसोस एसटीएफ को हमेशा रहा.
15 साल की उम्र में ही मुन्ना बजरंगी ने अपराध की दुनिया में कदम रख दिए थे. 1982 में उसके खिलाफ जौनपुर के सुरेरी थाने में पहला मुकदमा दर्ज हुआ था. इस मुकदमे से बेपरवाह बजरंगी ने 10 दिन बाद ही लूट की एक घटना को अंजाम दिया था.