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बाबा विश्वनाथ के दरबार में 240 सालों के इतिहास में पहली बार शुरू हुआ ये विशिष्ट अनुष्ठान

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वाराणसी: काशी विश्वनाथ के मंदिर का जीर्णोद्वार करने के लिए इतिहास में पहली बार कुंभाभिषेक अनुष्ठान का आयोजन हो रहा है. ऐसा वर्तमान मंदिर के लगभग 240 सालों के इतिहास में पहली बार हो रहा है. इस मामले में धर्मगुरुओं का मानना है कि ऐसे आयोजन हर 12 साल में किए जाने चाहिए.
वाराणसी: काशी विश्वनाथ के मंदिर का जीर्णोद्वार करने के लिए इतिहास में पहली बार कुंभाभिषेक अनुष्ठान का आयोजन हो रहा है. ऐसा वर्तमान मंदिर के लगभग 240 सालों के इतिहास में पहली बार हो रहा है. इस मामले में धर्मगुरुओं का मानना है कि ऐसे आयोजन हर 12 साल में किए जाने चाहिए.
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अनुष्ठान के मुख्य आचार्य मद्रास के पिचाई शिवाचार्य हैं और काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य आचार्य श्रीकांत शर्मा इस कार्यक्रम में सहयोग कर रहे हैं. साथ ही सप्तर्षि पूजा के मुख्य आचार्य शशिभूषण तिवारी भी अनुष्ठान के दौरान उपस्थित रहेंगे. कुंभाभिषेक अनुष्ठान के चतुर्वेद परायण का नेतृत्व काशी के सुप्रसिद्ध विद्वान वेंकट रमन घनपाठी कर रहे हैं.
अनुष्ठान के मुख्य आचार्य मद्रास के पिचाई शिवाचार्य हैं और काशी विश्वनाथ मंदिर के मुख्य आचार्य श्रीकांत शर्मा इस कार्यक्रम में सहयोग कर रहे हैं. साथ ही सप्तर्षि पूजा के मुख्य आचार्य शशिभूषण तिवारी भी अनुष्ठान के दौरान उपस्थित रहेंगे. कुंभाभिषेक अनुष्ठान के चतुर्वेद परायण का नेतृत्व काशी के सुप्रसिद्ध विद्वान वेंकट रमन घनपाठी कर रहे हैं.
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काशी विश्वनाथ मंदिर में कुंभाभिषेक अनुष्ठान कांची कामकोटि पीठ के शंकाचार्य विजयेंद्र सरस्वती की देख-रेख में हो रहा है. इस अनुष्ठान के लिए विशेष तौर पर दक्षिण भारत के 200 ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया है.
काशी विश्वनाथ मंदिर में कुंभाभिषेक अनुष्ठान कांची कामकोटि पीठ के शंकाचार्य विजयेंद्र सरस्वती की देख-रेख में हो रहा है. इस अनुष्ठान के लिए विशेष तौर पर दक्षिण भारत के 200 ब्राह्मणों को आमंत्रित किया गया है.
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मंगलवार की शाम कुंभाभिषेक की दशाश्वमेध घाट से गंगा जल लेकर कलश यात्रा के साथ शुरुआत की गई. इसके लिए दक्षिण भारत से आए ब्राम्हणों ने पद-यात्रा कर गंगा तट पर पहुंच पारंपरिक अंदाज में पूजा-अर्चना की और कलश यात्रा का शुभारंभ किया.
मंगलवार की शाम कुंभाभिषेक की दशाश्वमेध घाट से गंगा जल लेकर कलश यात्रा के साथ शुरुआत की गई. इसके लिए दक्षिण भारत से आए ब्राम्हणों ने पद-यात्रा कर गंगा तट पर पहुंच पारंपरिक अंदाज में पूजा-अर्चना की और कलश यात्रा का शुभारंभ किया.
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उन्होंने ख़ुशी जताई कि काशी में पहली बार कुंभाभिषेक का आयोजन हो रहा है. साथ ही उन्होंने हर 12 साल पर कुंभाभिषेक की प्रक्रिया दोहराने की उम्मीद भी जताई.
उन्होंने ख़ुशी जताई कि काशी में पहली बार कुंभाभिषेक का आयोजन हो रहा है. साथ ही उन्होंने हर 12 साल पर कुंभाभिषेक की प्रक्रिया दोहराने की उम्मीद भी जताई.
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अनुष्ठान के अंतिम पांच जुलाई को स्वर्ण शिखर सहित बाबा विश्वनाथ के गर्भगृह का अभिमंत्रित और पूजित जल से कुंभाभिषेक किया जाएगा. इस अनुष्ठान को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से जोड़कर देखा जा रहा है. मंदिर के रख-रखाव के लिए भी इसका जीर्णोद्वार आवश्यक हो गया था, इसके लिए ही इस कुंभाभिषेक का आयोजन किया गया है.
अनुष्ठान के अंतिम पांच जुलाई को स्वर्ण शिखर सहित बाबा विश्वनाथ के गर्भगृह का अभिमंत्रित और पूजित जल से कुंभाभिषेक किया जाएगा. इस अनुष्ठान को काशी विश्वनाथ कॉरिडोर से जोड़कर देखा जा रहा है. मंदिर के रख-रखाव के लिए भी इसका जीर्णोद्वार आवश्यक हो गया था, इसके लिए ही इस कुंभाभिषेक का आयोजन किया गया है.
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उन्होंने कहा कि सनातन परम्परा में मंदिरों से ऊर्जा मिलती है. इस ऊर्जा का समय-समय पर नवीनीकरण करने के लिए कुंभाभिषेक अनुष्ठान की परंपरा रही है. उन्होंने कुंभाभिषेक को मंदिर के नवीनीकरण और अध्यात्मिक सशक्तिकरण की प्रक्रिया बताया.
उन्होंने कहा कि सनातन परम्परा में मंदिरों से ऊर्जा मिलती है. इस ऊर्जा का समय-समय पर नवीनीकरण करने के लिए कुंभाभिषेक अनुष्ठान की परंपरा रही है. उन्होंने कुंभाभिषेक को मंदिर के नवीनीकरण और अध्यात्मिक सशक्तिकरण की प्रक्रिया बताया.
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उन्होंने कुंभाभिषेक को उत्तर भारतीय ब्राह्मणों द्वारा अपनाई जाने वाली पूजा पद्धति से अलग बताया. उन्होंने इसे काशी विश्वनाथ मंदिर की पूजा परंपरा को बदलने का प्रयास करार दिया. जबकि इस ममाले में अखिल भारतीय संत समाज के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कुंभाभिषेक के अनुष्ठान का समर्थन किया है.
उन्होंने कुंभाभिषेक को उत्तर भारतीय ब्राह्मणों द्वारा अपनाई जाने वाली पूजा पद्धति से अलग बताया. उन्होंने इसे काशी विश्वनाथ मंदिर की पूजा परंपरा को बदलने का प्रयास करार दिया. जबकि इस ममाले में अखिल भारतीय संत समाज के राष्ट्रीय महामंत्री स्वामी जितेंद्रानंद सरस्वती ने कुंभाभिषेक के अनुष्ठान का समर्थन किया है.
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हालांकि उत्तर भारत में कुंभाभिषेक की शुरुआत को कई लोगों ने परंपरा के विपरीत बताया लेकिन ब्राह्मणों का कहना है कि किसी मंदिर के जीर्णोद्वार के लिए कुंभाभिषेक के आवश्यक प्रक्रिया है. काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने कुंभाभिषेक पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
हालांकि उत्तर भारत में कुंभाभिषेक की शुरुआत को कई लोगों ने परंपरा के विपरीत बताया लेकिन ब्राह्मणों का कहना है कि किसी मंदिर के जीर्णोद्वार के लिए कुंभाभिषेक के आवश्यक प्रक्रिया है. काशी विश्वनाथ मंदिर के महंत डॉ. कुलपति तिवारी ने कुंभाभिषेक पर सवाल खड़े कर दिए हैं.
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कुंभाभिषेक अनुष्ठान पांच जुलाई को को पूरा होगा. कुंभाभिषेक अनुष्ठान के दौरान गंगा जल से मंदिर के स्वर्ण शिखर का अभिषेक किया जा रहा है. इसके अलावा बाबा विश्वनाथ का 13 विधियों से पूजन किया जा रहा है.
कुंभाभिषेक अनुष्ठान पांच जुलाई को को पूरा होगा. कुंभाभिषेक अनुष्ठान के दौरान गंगा जल से मंदिर के स्वर्ण शिखर का अभिषेक किया जा रहा है. इसके अलावा बाबा विश्वनाथ का 13 विधियों से पूजन किया जा रहा है.
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अभी तक इस मंदिर के मरम्मत के लिए समय-समय पर छोटे-छोटे कार्य होते रहे हैं, लेकिन यह पहली बार है कि मंदिर के जीर्णोद्वार से पहले दक्षिण भारत में प्रचलित कुंभाभिषेक अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है. मंगलवार को शुरू हुआ कुंभाभिषेक गुरुवार 5 जुलाई को संपन्न होगा. इसके बाद काशी विश्वनाथ मंदिर के जीर्णोद्वार का काम शुरू होगा.
अभी तक इस मंदिर के मरम्मत के लिए समय-समय पर छोटे-छोटे कार्य होते रहे हैं, लेकिन यह पहली बार है कि मंदिर के जीर्णोद्वार से पहले दक्षिण भारत में प्रचलित कुंभाभिषेक अनुष्ठान का आयोजन किया जा रहा है. मंगलवार को शुरू हुआ कुंभाभिषेक गुरुवार 5 जुलाई को संपन्न होगा. इसके बाद काशी विश्वनाथ मंदिर के जीर्णोद्वार का काम शुरू होगा.
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कुंभाभिषेक अनुष्ठान अभी तक दक्षिण भारत के मंदिरों में हर 12 साल बाद किए जान की परंपरा रही है. लेकिन यह पहली बार है कि उत्तर प्रदेश में कुंभाभिषेक कर किसी मंदिर जीर्णोद्वार शुरू किया जाएगा.
कुंभाभिषेक अनुष्ठान अभी तक दक्षिण भारत के मंदिरों में हर 12 साल बाद किए जान की परंपरा रही है. लेकिन यह पहली बार है कि उत्तर प्रदेश में कुंभाभिषेक कर किसी मंदिर जीर्णोद्वार शुरू किया जाएगा.
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काशी विश्वनाथ के वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने 1780 में करवाया गया था. इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में 1000 किलोग्राम शुद्ध सोने से इसके शिखर का निर्माण करवाया था.
काशी विश्वनाथ के वर्तमान मंदिर का निर्माण महारानी अहिल्या बाई होल्कर ने 1780 में करवाया गया था. इसके बाद महाराजा रणजीत सिंह ने 1853 में 1000 किलोग्राम शुद्ध सोने से इसके शिखर का निर्माण करवाया था.
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