Kumbh Mela 2019: जानिए कैसा है कुंभ के बाद रहस्य बन जाने वाले नागा साधुओं का छिपा संसार
गुफाओं और पहाड़ियों में रहने वाले नागा साधुओं को भस्म और रुद्राक्ष धारण करना होता है, ये साधु अपने सारे बालों का त्याग कर देते हैं. उन्हें एक समय भोजन करना होता है. वो भोजन भी भिक्षा मांग कर मिला हो. नागा साधु सोने के लिए पलंग, खाट या अन्य किसी साधन का उपयोग वर्जित होता है. यहां तक कि नागा साधुओं को गादी पर सोने की भी मनाही होती है. नागा साधु केवल पृथ्वी पर ही सोते हैं. Photo- API
जो बात सबसे ज्यादा हैरान करती है वो ये कि अगली परीक्षा में साधूओं को मुंडन कराकर खुद का पिंडदान करना होता है. इसके बाद वह खुद को परिवार और सगे-संबधियों से अलग कर लेते हैं. वह खुद का श्राद्ध भी करते हैं. श्राद्ध के बाद उन्हें अखाड़े से नई पहचान मिलती है. अब उनकी पूरी जिंदगी अखाड़ों के लिए ही होती है. Photo- API
जब बात कुंभ की आती है तो कई सवाल जेहन में उठते हैं. जो सबसे पहला सवाल आता है वो नागा साधुओं के बारे में आता है कि आखिर कौन होते हैं ये नागा साधु और कहां से आते हैं और बाद में कहां चले जाते हैं? ये कुंभ मेलों में 13 अखाड़ों से आते हैं और कुंभ मेला खत्म होते ही रहस्य़ बन जाते हैं. Photo- API
नागा साधू बनना इतना आसान नहीं है. नागा साधु बनने वाला शख्स सबसे पहले किसी अखाड़ें के सानिध्य में चला जाता है. उसके बाद उसे कड़ी परीक्षा से गुजरना होता है. इस दौरान साधु को तप, ब्रह्मचर्य, वैराग्य, ध्यान, संन्यास और धर्म की दीक्षा दी जाती है. इनका ये सफर 6 महीने साल भर या फिर उससे लंबा भी हो सकता है. ये परीक्षा कब खत्म होगी इसको लेकर अखाड़ा निर्णय लेता है. Photo- API
'नागा' शब्द की उत्पत्ति के बारे में कुछ विद्वानों की मान्यता है कि यह शब्द संस्कृत के 'नागा' शब्द से निकला है, जिसका अर्थ 'पहाड़ से' होता है और इस पर रहने वाले लोग 'पहाड़ी' या 'नागा' कहलाते हैं. इसके अलावा 'नागा' का अर्थ 'नग्न' रहने वाले लोगों से भी है. Photo- API
बता दें कि‘नागा’ शब्द बहुत पुराना है. भारत में नागवंश और नागा जाति का इतिहास भी बहुत पुराना है. भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र में ही नागवंशी, नागा जाति और दसनामी संप्रदाय के लोग रहते आए हैं. Photo- API